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________________ प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 197 'घोषयति' संस्कृत सकर्मक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप 'घोसइ' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२६० से 'ष' का 'स'; ४-२३९ से संस्कृत धात्विक गण-बोधक विकरण प्रत्यय 'अय' के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति; और ३-१३९ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ति' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'घोसइ' रूप सिद्ध हो जाता है। ___'शेषः' संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप 'सेसा' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२६० से दोनों 'शकार', 'षकार' के स्थान पर 'स' और 'स' की प्राप्ति तथा ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'सेसो' रूप सिद्ध हो जाता है। ___'विशेषः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'विसेसा होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२६० से दोनों 'शकार', 'षकार' के स्थान पर 'स' और 'स' की प्राप्ति तथा ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'विसेसो' रूप सिद्ध हो जाता है। ।।१-२६०।। स्नुषायां ण्हो न वा ॥१-२६१।। स्नुषा शब्दे षस्य ण्हः णकाराक्रान्तो हो वा भवति ।। सुण्हा । सुसा ॥ अर्थः- संस्कृत शब्द 'स्नुषा' में स्थित 'ष' वर्ण के स्थान पर हलन्त 'ण' सहित 'ह' अर्थात् 'ह' की विकल्प से प्राप्ति होती है। जैसेः- स्नुषा-सुण्हा अथवा सुसा।। _ 'स्नुषा' संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप 'सुण्हा' और 'सुसा' होते हैं। इनमें सूत्र संख्या २-७८ से 'न्' का लोप; १-२६१ से प्रथम रूप में 'ष' के स्थान पर विकल्प से 'ह' की प्राप्ति और द्वितीय रूप में १-२६० से 'ष' का 'स' होकर क्रम से 'सुण्हा' और 'सुसा' दोनों रूपों की सिद्धि हो जाती है। ।।१-२६१। दश-पाषाणे हः ॥ १-२६२।। दशन् शब्दे पाषाण शब्दे च शषोर्यथादर्शनं हो वा भवति।। दह-मुहो दस मुहो।। दह-बलो दस बलो। दह-रहो दस रहो। दह दस। एआरह। बारह। तेरह। पाहाणो पासाणो।। ___ अर्थः- 'दशम्' शब्द में और पाषाण शब्द में रहे हुए 'श' अथवा 'ष' के स्थान पर विकल्प से 'ह' होता है। ये शब्द 'दशम्' और 'पाषाण' चाहे समास रूप से रहे हुए हों अथवा स्वतंत्र रहे हुए हों; तो भी इनमें स्थित 'श' का अथवा 'ष' का विकल्प से 'ह' हो जाता है। ऐसा तात्पर्य वृत्ति में उल्लिखित 'यथादर्शन' शब्द से जानना।। जैसेः- दश-मुखः-दह-मुहो अथवा दस मुहो।। दश-बलः दह बलो अथवा दस बलो।। दशरथः=दहरहो अथवा दसरहो।। दश-दह अथवा दस।। एकादश-एआरह।। द्वादश बारह।।तेरह-तेरह।। पाषाणः पाहाणो पासाणो।। 'दश-मुखः' संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप 'दह-मुहो' और 'दसमुहा' होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या १-२६२ से विकल्प से 'श' का 'ह' और द्वितीय रूप में १-२६० से 'श' का 'स'; १-१८७ से दोनों रूपों में 'ख' का 'ह' तथा ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की दोनों रूपो में प्राप्ति होकर क्रम से 'दह-मुहा' और 'दस-मुहो' रूपों की सिद्धि हो जाती है। ___ 'दश-बलः' संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप 'दह-बला' और 'दस-बलो' होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-२६२ से प्रथम रूप में विकल्प से 'श' का 'ह' और द्वितीय रूप में १-२६० से 'श' का 'स' तथा ३-२ से दोनों रूपों में प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त ल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से 'दह-बलो' एवं 'दस-बलो' रूपों की सिद्धि हो जाती है। "दशरथः' संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप 'दहरहो' और 'दसरहो' होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या १-२६२ से विकल्प से 'श' का 'ह' और द्वितीय रूप में १-२६० से 'श' का 'स'; १-१८७ से दोनों रूपों में थ' का 'ह' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001942
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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