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196 : प्राकृत व्याकरण
श - षोः सः ।।१ - २६०।।
शकार षकारयोः सो भवति । रा । सद्दो । कुसो । निसंसो । वंसो । सामा । सुद्धं । दस । सोहइ । विसइ ॥ ष।। सण्डो । निहसो । कसाओ । घोसइ ।। उभयोरपि । सेसो । विसेसो ॥
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अर्थः- संस्कृत शब्दों में रहे हुए 'शकार' का और 'षकार' का प्राकृत रूपान्तर में 'सकार' हो जाता है। 'श' से संबंधित कुछ उदाहरण इस प्रकार है:- शब्द:- सद्दो । कुशः = कुसो ।। नृशंसः - निसंसो ॥ वंश= वंसो।। श्यामा=सामा।। शुद्धम्-सुद्धं ।। दश= दस ।। शोभते = सोहइ । । विशति - विसइ । । इत्यादि । । 'ष' से संबंधित कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं:-षण्डः-सण्डो।। निकष:-निहसा।। कषायः-कसाआ।। घोषयति=घोसइ।। इत्यादि । यदि एक ही शब्द में आगे पीछे अथवा साथ में 'शकार' एवं ' षकार' आ जाय; तो भी उन 'शकार' और 'षकार' के स्थान पर 'सकार' की प्राप्ति हो जाती है। जैसे :- शेषः - सेसो और निशेषः- विसेसा । । इत्यादि । ।
'शब्दः ' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'सद्दो' होता है। इसमें सूत्र संख्या १ - २६० से 'श' का 'स', २-७९ से 'ब्' का लोप, २-८९ से 'द' का द्वित्व 'द्द' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'सद्दो' रूप सिद्ध हो जाता है।
'कुश: ' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'कुसा' होता है। इसमें सूत्र संख्या १ - २६० से 'श' का 'स' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'कुसो' रूप सिद्ध हो जाता है।
'निसंसो' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १ - १२८ में की गई है।
'वंश:' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'वंसो' होता है। इसमें सूत्र संख्या १ - २६० से 'श' का 'स' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'वंसा' रूप सिद्ध हो जाता है।
'श्यामा' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'सामा' होता है । इसमें सूत्र संख्या १ - २६० से 'श' का 'स', और २- ७८ से 'य' का लोप होकर 'सामा' रूप सिद्ध हो जाता है।
'शुद्धम्' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'सुद्ध होता है। इसमें सूत्र संख्या १ - २६० से 'श' का 'स', ३–२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १ - २३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'सुद्ध' रूप सिद्ध हो जाता है।
'दस' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १ - २१९ में की गई है।
'सोहइ' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १ - १८७ में की गई है।
'विशति' संस्कृत सकर्मक क्रिया पद का रूप है। इसका प्राकृत रूप 'विस' होता है। इसमें सूत्र संख्या १ - २६० से 'श' का 'स' और ३-१३९ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ति' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'विसइ' रूप सिद्ध हो जाता है।
'षण्डः' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'सण्डो' होता है। इसमें सूत्र संख्या १ - २६० से 'ष' का 'स' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय प्राप्ति होकर 'सण्डो' रूप सिद्ध हो जाता है।
'निहसो' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १ - १८६ में की गई है।
'कषायः' संस्कृत रूप है इसका प्राकृत रूप 'कसाओ' होता है। इसमें सूत्र संख्या १ - २६० से 'ष' का 'स'; १-१७७ से 'य' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'कसाओ' रूप सिद्ध हो जाता है।
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