________________
184 : प्राकृत व्याकरण
२-८९ से 'त' का द्विव्व 'त्त' ; १-२३६ से 'फ' का 'ह'; ३-२५ से प्रथम विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुसंकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर मुत्ताहलं रूप सिद्ध हो जाता है।
सफलम् संस्कृत विशेषण है। इसके प्राकृत रूप सभलं और सहलं होते हैं इनमें सूत्र-संख्या १-२३६ से क्रम से प्रथम रूप में 'फ' का 'भ' और द्वितीय रूप में 'फ' का 'ह'; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर क्रम से सभल और सहलं दोनों ही रूप सिद्ध हो जाते हैं।।
शेफालिका संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप सेभालिया और सेहालिया होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १-२६० से 'श' का 'स'; १-२३६ से 'फ' का क्रम से प्रथम रूप में 'भ' और द्वितीय रूप में 'फ' का 'ह; और १-१७७ से 'क्' का लोप होकर क्रम से सेभालिया और सेहालिया दोनों ही रूप हो जाते हैं।।
शफरी संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप सभरी और सहरी होते हैं; इसमें सूत्र-संख्या १-२६० से 'श' का 'स' १-२३६ से क्रम से 'फ' का 'भ'प्रथम रूप में और 'फ' का 'ह' द्वितीय रूप में होकर सभरी और सहरी दोनों रूप सिद्ध हो जाते हैं।।
गुफति संस्कृत सकर्मक किया पद का यप है। इसके प्राकृत रूप गुभई और गुहइ होते है। इनमें सूत्र-संख्या १-२३६ से क्रम से 'फ' का 'भ' प्रथम रूप में और 'फ' का 'ह' द्वितीय रूप में और ३-१३९ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ति' के स्थान पर 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से गुभइ और गुहइ दोनों रूप सिद्ध हो जाते हैं।।
गुम्फति संस्कृत सकर्मक क्रियापद का रूप है; इसका प्राकृत रूप गुंफइ होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२३ से 'म्' का अनुस्वार और ३-१३९ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ति' के स्थान पर प्राकृत में 'ई' प्रत्यय की प्राप्ति होकर गुंफइ रूप सिद्ध हो जाता है।
पुष्पम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप पुष्पं होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-५३ से 'प्प' का 'फ'; २-७९ से प्राप्त 'फ' का द्वित्व 'फ्फ'; २-९० से प्राप्त पूर्व'फ्' का 'प्'; ३-२५ से प्रथम विभक्ति के एकवचन से अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर पुप्फ रूप सिद्ध हो जाता है। चिट्ठई रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१९९ में की गई है।
कृष्ण संस्कृत विशेषण है। इसका प्राकृत रूप कसण होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१२६ से 'ऋ' का 'अ'; २-११० से हलन्त 'ए' में 'अ' की प्राप्ति; और १-२६० से प्राप्त ष का 'स' होकर कसण रूप सिद्ध हो जाता है।।१-२३६ ।।
व :।। १-२३७॥ स्वरात् परस्यासंयुक्तस्यानादेर्बस्य वे भवति।। अलाबू। अलावू। अलाऊ। शबलः। सबलो।।
अर्थ :- यदि किसी शब्द में 'ब' वर्ण स्वर से परे रहता हुआ असंयुक्त और अनादि रूप हो; अर्थात यह 'ब' वर्ण हलन्त याने स्वर रहित भी न हो एवं आदि में भी स्थित न हो; तो उस 'ब' वर्ण का 'व' हो जाता है। जैसे :- अलाबू अथवा अलावू अथवा अलाऊो शबलः-सबलो।।
. अलाबू संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप अलाबू और अलावू और अलाऊ होते हैं। इनमें से प्रथम रूप अलाबू में सूत्र-संख्या ३-१८ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में ऊकारान्त में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य दीर्घ स्वर 'ऊ' एवं विसर्ग का दीर्घ स्वर 'ऊ ही रह कर अलाब सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप में सूत्र-संख्या १-२३७ से 'ब' का 'व' और ३-१९ से प्रथम रूप के समान ही प्रथमा विभक्ति का रूप सिद्ध होकर अलावू रूप भी सिद्ध हो जाता है। तृतीय रूप अलाऊ की सिद्धि सूत्र-संख्या १-६६ में की गई है।
शबलः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप सबलो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२६० से 'श' का 'स', १-२३७ से 'ब' का 'व' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर सबलो रूप सिद्ध हो जाता है।।।१-२३७।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org