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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 183
फो भ-हौ।। १-२३६।। स्वरात् परस्यासंयुक्तस्यानादेः फस्य भहौ भवतः।। क्वचिद् भः। रेफः। रेभो।। शिफा। सिभा। क्वचित्तु हः। मुत्ताहल।। क्वचिदुभावपि। सभलं सहलं। सेभालिआ सेहालिआ। सभरी सहरी। गुभइ गुहइ।। स्वरादित्येव। गुंफइ।। असंयुक्तस्येत्येव। पुप्फ। अनादेरित्येव। चिट्ठई फणी।। प्राय इत्येव। कसण-फणी।।
अर्थः-यदि किसी शब्द में 'फ' वर्ण स्वर से परे रहता हुआ असंयुक्त और अनादि रूप हो; अर्थात् वह 'फ' वर्ण हलन्त याने स्वर-रहित भी न हो; एवं आदि में भी स्थित न तो; हो उस 'फ' वर्ण का 'भ' और 'ह' होता है। किसी किसी शब्द में भी होता है। जैसे:-रेफ: रेभो। शिफा-सिभा।। किसी किसी शब्द में 'ह' होता है। जैसे:-मुक्ताफलम् मुत्ताहल।। किसी किसी शब्द में 'फ' का 'भ' और 'ह' दोनों होते हैं। जैसे:=सफलम्-सभलं अथवा सहल। शेफालिका-सेभालिआ अथवा सेहा-लिआ।। शफरी-सभरी अथवा सहरी।। गुफति-गुभइ अथवा गुहइ।।
प्रश्न :- 'स्वर से परे रहता हुआ हो' ऐसा क्यों कहा गया है?
उत्तर :- क्योंकि यदि किसी शब्द में 'फ' वर्ण स्वर में परे रहता हुआ नहीं होगा तो उस 'फ' वर्ण का 'भी' अथवा 'ह' नहीं होगा। जैसे:- गुम्फति =गुंफइ। इस उदाहरण में 'फ' वर्ण स्वर से परे रहता हुआ नहीं है; किन्तु हलन्त व्यंज्जन 'म्' के परे रहा हुआ है; अतः यहां पर 'फ' का 'भ' अथवा 'ह' नहीं हुआ है। ऐसा ही अन्य उदाहरणों में भी समझ लेना।।
प्रश्न :- 'संयुक्त याने हलन्त नहीं होना चाहिये; किन्तु असंयुक्त याने स्वर से युक्त होना चाहिये' ऐसा क्यों कहा गया है?
उत्तर :- क्योंकि यदि किसी शब्द में 'फ' वर्ण संयुक्त होगा -स्वर रहित होगा-हलन्त होगा; तो उस 'फ' वर्ण का 'भ' अथवा 'ह' नहीं होगा; जैसे:- पुष्पम्-पुप्फ।। (ग्रन्थकार का यह दृष्टान्त यहां पर उपयुक्त नहीं है; क्योंकि अधिकृत विषय हलन्त 'फ' का है; न कि किसी अन्य वर्ण का; अतः हलन्त 'फ' का उदाहरण अन्यत्र देख लेना चाहिये)।
प्रश्न :- अनादि रूप से स्थित हो; शब्द में प्रथम अक्षर रूप से स्थित नहीं हो; अर्थात् शब्द में आदि स्थान पर स्थित नहीं हो; ऐसा क्यो कहा गया है? __ उत्तर :- क्योंकि यदि किसी शब्द में 'फ' वर्ण आदि अक्षर रूप होगा; तो उस 'फ' वर्ण का 'भ' अथवा 'ह' नहीं होगा। जैसे:- तिष्ठति फणी-चिटुइ फणी; इस उदाहरण में 'फ' वर्ण 'फ' वर्ण 'फणी' पद में आदि अक्षर रूप से स्थित है; अतः यहां पर 'फ' का 'भ' अथव 'ह' नहीं हुआ है। इसी प्रकार से अन्य उदाहरणों में भी जान लेना चाहिए।
प्रश्नः- वृत्ति में 'प्रायः' अव्यय का ग्रहण क्यों किया गया है?
उत्तर :- 'प्रायः अव्यय का उल्लेख यह प्रदर्शित करता है कि किन्हीं-किन्हीं शब्दों में 'फ' वर्ण स्वर से परे रहता हुआ असंयुक्त और अनादि रूप होता हुआ हो तो भी उस 'फ' वर्ण का 'भ' अथवा 'ह' नहीं होता है। जैसे :कृष्ण-फणी कसण-फणी।। इस उदाहरण में 'फ' वर्ण स्वर से परे होता हुआ असंयुक्त और अनादि रूप है; फिर भी 'फ' वर्ण का न तो 'भ' ही हुआ है और न 'ह' ही। ऐसा ही अन्य शब्दों के संबंध में भी जान लेना चाहिए।।
रेफः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप रेभो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२३६ से 'फ' का 'भ' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर रेभो रूप सिद्ध हो जाता है।
शिफा संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप सिभा होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२६० से 'श' का 'स' और १-२३६ से 'फ' को 'भ' होकर सिभा रूप सिद्ध हो जाता है।
मुक्ताफलम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप मुत्ताहलं होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७७ से 'क्' का लोप ;
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