________________
174 : प्राकृत व्याकरण
और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से डट्ठो और दट्ठो दोनों रूप सिद्ध हो जाते हैं। ___ दग्धः संस्कृत विशेषण है। इसके प्राकृत रूप डड्डा और दड्डो होते हैं। इसमें सूत्र-संख्या १-२१७ से 'द' का वैकल्पिक रूप से 'ड': २-४० से 'ग्ध' का 'ढ': २-८९ से प्राप्त 'ढ' का द्वित्व'ढ'का द्वित्व'ढढ': २-९० से प्राप्त पर्व'ढ' का 'ड' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से डड्डा और दड्डा दोनों रूप सिद्ध हो जाते हैं।
दोला संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप डोला और दोला होते हैं। इसमें सूत्र-संख्या १-२१७ से 'द' का वैकल्पिक रूप से 'ड' होकर क्रम से डोला और दोला दोनों रूप सिद्ध हो जाते हैं।
दंडः संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप डण्डो और दण्डो होते हैं। इसमें सूत्र-संख्या १-२१७ से 'द' का वैकल्पिक रूप से 'ड'; १-३० से अनुस्वार का आगे 'ड' होने से हलन्त 'ण'; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से डण्डो और दण्डो दोनों रूप सिद्ध हो जाते हैं। ___ दरः संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप डरो और दरो होते हैं। इसमें सूत्र-संख्या १-२१७ से 'द' का वैकल्पिक रूप से 'ड' और और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से डरो और दरो दोनों रूप सिद्ध हो जाते हैं।
दाहः संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप डाहो और दाहो होते हैं। इसमें सूत्र-संख्या १-२१७ से 'द' का वैकल्पिक रूप से 'ड' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ'! प्राप्ति होकर क्रम से डाहो और दाहो दोनों रूप सिद्ध हो जाते हैं।
दम्भः संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप डम्भो और दम्भो होते हैं। इसमें सूत्र-संख्या १-२१७ से 'द' का वैकल्पिक रूप से 'ड' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से डम्भो और दम्भो दोनों रूप सिद्ध हो जाते हैं।
दर्भः संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप डब्भो और दब्भो होते हैं। इसमें सूत्र-संख्या १-२१७ से 'द' का वैकल्पिक रूप से 'ड'; २-७९ से 'र' का लोप; २-८९ से भ' का द्वित्व 'भ्भ'; २-९० से प्राप्त पूर्व 'भ्' का 'ब्'; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर डब्भो और दब्भा दोनों रूप सिद्ध हो जाते हैं। ___ कदनम्: संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप कडणं और कयणं होते हैं। इसमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या १-२१७ से 'द' का वैकल्पिक रूप से 'ड' और द्वितीय रूप में सूत्र-संख्या १-१७७ से 'द्' का लोप तथा १-१८० से लोप हुए 'द' में से शेष रहे हुए 'अ' को 'य' की प्राप्ति; १-२२८ से दोनों रूपों में 'न' का 'ण'; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुसंकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर कडणं और कयणं दोनों रूप सिद्ध हो जाते हैं।
दोहदः संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप डोहलो और दोहला होते हैं। इसमें सूत्र-संख्या १-२१७ से 'द' का वैकल्पिक रूप से 'ड'; १-२२१ से द्वितीय 'द' का 'ल': और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर डोहलो और दोहलो दोनों रूप क्रम से सिद्ध हो जाते हैं। __ दर-दलितम् संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप दर-दलिअं होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१७७ से 'त्' का लोप; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुसंकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर दर-दलिअंरूप सिद्ध हो जाता है।।१-२१७।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org