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________________ प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 173 शिथिलः संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप सिढिलो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२६० से 'श' का 'स'; १-२१५ से 'थ' के स्थान पर 'ढ' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर सिढिलो रूप सिद्ध हो जाता है। प्रथमः संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप पढमो होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७९ से 'र' का लोप; १-२१५ से 'थ' के स्थान पर 'ढ' की प्राप्ति; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर पढमो रूप सिद्ध हो जाता है।।। १-२१५।। निशीथ-पृथिव्यो ।। १-२१६।। अनयोस्थस्य ढो वा भवति।। निसीढो। निसीहो।। पुढवी।। पुहवी।। अर्थः-निशीथ और पृथिवी शब्दों में स्थित 'थ' का विकल्प से 'ढ' होता है। तदनुसार प्रथम रूप में 'थ' का 'ढ' और द्वितीय रूप में 'थ' का 'ह' होता है। जैसे:-निशीथः निसीढो अथवा निसीहो और पृथिवी-पुढवी अथवा पुहवी।। निशिथः संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप निसीढो और निसीहो होते हैं। इसमें सूत्र-संख्या १-२६० से 'श' का 'स'; १-२१६ से प्रथम रूप में 'थ' के स्थान पर 'ढ' और १-१८७ से द्वितीय रूप में थ' का 'ह'; और ३-२ से दोनों रूपों में प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से निसीढो और निसीहो दोनों रूप सिद्ध हो जाते हैं। पुढवी रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-८८ में की गई है। पृथिवी संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप पुहवी होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१३१ से 'ऋ' का 'उ'; १-१८७ से 'थ' का 'ह'; और १-८८ से 'थि' में स्थित 'इ' को 'अ' की प्राप्ति होकर पुहवी रूप सिद्ध हो जाता है।। १-२१६।। दशन-दष्ट-दग्ध-दोला-दण्ड-दर-दाह-दम्भ-दर्भ-कदन-दोहदे दो वा डः।।१-२१७।। एषु दस्य डो वा भवति।। डसणं दसण।। डट्ठो हो।। डड्डो दलो। डोला दोला।। डण्डो दण्डो।। डरो दरो।। डाहो दाहो।। डम्भो दम्भो।। डब्भो दब्भो।। कडणं कयणं। डोहलो दोहलो॥ दर शब्दस्य च भयार्थवृत्ते रेव भवति। अन्यत्र दर-दलि।। ___ अर्थः-दशन, दष्ट, दग्ध, दोला, दण्ड, दर, दाह, दम्भ, दर्भ, कदन और दोहद शब्दों में स्थित 'द' का वैकल्पिक रूप से 'ड' होता है। जैसेः-दशनम् डसणं अथवा दसण।। दष्ट: डट्ठो अथवा दड्डो।। दग्धः डड्डो अथवा दड्ढो।। दोला-डोला अथवा दोला।। दण्डः= डण्डो अथवा दण्डो।। दरः डरो अथवा दरो।। दाहः=डाहो अथवा दाहो।। दम्भः डम्भो अथवा दम्भो।। दर्भः= डब्भो अथवा दब्भो।। कदनम्=कडणं अथवा कयण।। दोहदः डोहलो अथवा दोहलो।। 'दर' शब्द में स्थित 'द्' का वैकल्पिक रूप से प्राप्त होने वाला 'ड' उसी अवस्था में होता है; जबकि दर 'शब्द' का अर्थ 'डर' अर्थात् भय-वाचक हो; अन्यथा 'दर' के 'द' का 'ड' नहीं होता है। जैसे:-दर दलितम्-दर-दलि। तदनुसार 'दर' शब्द का अर्थ भय' नहीं होकर 'थोड़ा सा' अथवा 'सूक्ष्म अर्थ होने पर 'दर' शब्द में स्थित 'द्' का प्राकृत रूप में 'द' ही रहा है। न कि 'द' का 'ड' हुआ है। ऐसी विशेषता 'दर' शब्द के सम्बन्ध में जानना। दशनम् संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप डसणं और दसणं होते हैं। इसमें सूत्र-संख्या १-२१७ से 'द' का वैकल्पिक रूप से 'ड'; १-२६० से 'श' का 'स'; १-२२८ से 'न' का 'ण'; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुसंकलिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से 'म्' का अनुस्वार होकर क्रम से डसणं और दसणं दोनों रूप सिद्ध हो जाते हैं। दष्टः संस्कृत विशेषण रूप है। इसके प्राकृत रूप डट्ठो और 8ो होते हैं। इसमें सूत्र-संख्या १-२१७ से 'द' का वैकल्पिक रूप से 'ड'; २-३४ से 'ष्ट' का 'ठ'; २-८९ से प्राप्त 'ठ' का द्वित्व 'ट्ठ'; २-९० से प्राप्त पूर्व 'ठ्' का 'ट्'; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001942
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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