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________________ दुहओ रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या १ - ११५ में की गई है। सुहओ रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या १ - ११३ में गई है । । । १ - १९२ ।। प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 157 खचित-पिषाचयोश्चः स ल्लौ वा ।। १-१९३।। अनयोश्चस्य यथासंख्यं स ल्ल इत्यादेषो वा भवतः ॥ खसिओ खइओ । पिसल्लो पिसाओ । अर्थः खचित शब्द में स्थित 'च' का विकल्प से 'स' होता है। और पिशाच शब्द में स्थित 'च' का विकल्प से 'ल्ल' होता है। जैसे:- खचितः खसिओ अथवा खइओ और पिशाचः - पिसल्लो अथवा पिसाओ । खचितः संस्कृत विशेषण रूप है। इसके प्राकृत खसिओ और खइआ होते हैं। इसमें से प्रथम रूप में सूत्र - संख्या १ - १९३ से विकल्प रूप से 'च्' के स्थान पर 'स्' आदेश की प्राप्ति और द्वितीय रूप में वैकल्पिक पक्ष होने से सूत्र - संख्या १ - १७७ से 'च' का लोप; दोनों ही रूपों में सूत्र - संख्या १ - १७७ से 'त्' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से खसिओ तथा खइआ रूपों की सिद्धि हो जाती है। पिशाचः संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप पिसल्लो और पिसाओ होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र- संख्या १-८४ से 'आ' के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति; १ - २६० से 'श्' का 'स्' ; १ - १९३ से 'च्' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'ल्ल' आदेश की प्राप्ति और ३-२ प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप 'पिसल्लो' सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप पिसाओ में सूत्र - संख्या १ - २६० से 'शू' के स्थान पर 'स्' की प्राप्ति; १-१७७ से 'च्' का लोप और ३-२ से प्रथम रूप के समान ही 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर द्वितीय रूप पिसाओ भी सिद्ध हो जाता है । । १ - १९३ ।। जटिले जो झो वा ।। १-१९४।। जटिले जस्य झो वा भवति ।। झडिलो जडिलो ॥ अर्थः-जटिल शब्द में स्थित 'ज' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'झ' की प्राप्ति हुआ करती है। जैसे:- जटिल :- झडिलो अथवा जडिलो ।। : संस्कृत विशेषण रूप है। इसके प्राकृत रूप झडिलो और जडिलो होते हैं। इनमें सूत्र - संख्या १ - १९४ से 'ज' के स्थान पर विकल्प रूप से 'झ' की प्राप्ति; १ - १९५ से 'टू' के स्थान पर 'ड्' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर जडिलो रूप सिद्ध हो जाते हैं । । १ - १९४ ।। ।। टो डः १ - १९५ ॥ स्वरात् परस्यासंयुक्तस्यानादेष्टस्य डो भवति ।। नडो । भडो । घडो । घडइ ।। स्वरादित्येव । घंटा ।। असंयुक्तस्येत्येव। खट्टा।। अनादेरित्येव । टक्को ।। क्वचिन्न भवति । अटति ।। अटइ।। अर्थः-यदि किसी शब्द में 'ट' वर्ण स्वर से परे रहता हुआ, असंयुक्त और अनादि रूप हो; अर्थात् हलन्त भी न हो तथा आदि में भी स्थित न हो; तो उस 'ट' के स्थान पर 'ड' की प्राप्ति होती है। जैसे:- नटः-नडो । भटः = भडो।। घटः=घडो।। घटति = घडइ || Jain Education International प्रश्नः - " स्वर से परे रहता हुआ हो" ऐसा क्यों कहा गया है ? उत्तरः-क्योंकि यदि किसी शब्द में 'ट' वर्ण स्वर से परे रहता हुआ नहीं होगा; तो उस 'ट' का 'ड' नहीं होगा । जैसे घण्टा=घंटा ।। प्रश्नः=संयुक्त अर्थात् हलन्त नहीं होना चाहिये; याने असंयुक्त अर्थात् स्वर से युक्त होना चाहिये। ऐसा क्यों कहा गया है ? For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001942
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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