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________________ 158 : प्राकृत व्याकरण उत्तरः क्योंकि यदि किसी शब्द में 'ट' वर्ण संयुक्त होगा; तो उस 'ट' का 'ड' नहीं होगा। जैसे:-खट्वा खट्टा।। प्रश्न:-अनादि रूप से स्थित हो; याने शब्द के आदि स्थान पर स्थित नहीं हो; ऐसा क्यों कहा गया है ? उत्तरः क्योंकि यदि किसी शब्द में 'ट' वर्ण आदि अक्षर रूप होगा; तो उस 'ट' का 'ड' नहीं होगा। जैसः-टक्कः टक्को।। किसी किसी शब्द में ऐसा भी देखा जाता है कि 'ट' वर्ण शब्द में अनादि और असंयुक्त है तथा स्वर से परे भी रहा हुआ है; फिर भी 'ट' का 'ड' नहीं होता है। जैसे:- अटति अटइ। नटः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत नडो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१९५ से 'ट' का 'ड' और ३-२ प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर नडो रूप सिद्ध हो जाता है। भटः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप भडो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१९५ से 'ट' का 'ड' और ३-२ प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर भडो रूप सिद्ध हो जाता है। ___ घटः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप घडो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१९५ से 'ट' का 'ड' और ३-२ प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर घडो रूप सिद्ध हो जाता है। _घटति संस्कृत सकर्मक क्रिया पद रूप है। इसका प्राकृत रूप घडइ होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१९५ से 'ट' का 'ड' और ३-१३९ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एकवचन में 'ति' प्रत्यय के स्थान पर 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर घडइ रूप सिद्ध हो जाता है। __ घण्टाः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप घंटा होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२५ से 'ण' का अनुस्वार होकर घंटा रूप सिद्ध हो जाता है। खट्वाः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत खट्टा होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७९ से 'व' का लोप; २-७९ से 'ट्' को द्वित्व 'ट्ट' की प्राप्ति; और संस्कृत व्याकरण के अनुसार प्रथमा विभक्ति के एकवचन में प्राप्त 'सि' प्रत्यय में स्थित 'इ' का इत्संज्ञानुसार लोप तथा १-११ से शेष 'स्' का लोप होकर खट्टा रूप सिद्ध हो जाता है। टक्कः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत टक्को होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर टक्को रूप सिद्ध हो जाता है। ___ अटति संस्कृत अकर्मक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत अटइ होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-१३९ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एकवचन में 'ति' प्रत्यय के स्थान पर 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर अटइ रूप सिद्ध हो जाता है।। १-१९५।। सटा-शकट-कैटभे ढः।। १-१९६।। एषु टस्य ढो भवति।। सढा। सयढो। केढवो।। अर्थः-सटा, शकट और कैटभ में स्थित 'ट' का 'ढ' होता है। जैसे:-सटा= सढा।। शकट:-सयढो।। कैटभः केढवो।। सटा संस्कृत स्त्रीलिंग रूप है। इसका प्राकृत रूप सढा होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१९६ से 'ट' का 'ढ'; संस्कृत व्याकरण के अनुसार प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त स्त्रीलिंग में प्राप्त 'सि' प्रत्यय में स्थित 'इ' का इत्संज्ञानुसार लोप और १-११ से शेष 'स्' का लोप होकर सढा रूप सिद्ध हो जाता है। __ शकटः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत सयढो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२६० से 'श' का 'स'; १-१७७ से 'क्' का लोप; १-१८० से लुप्त हुए 'क्' में स्थित 'अ' को 'य' की प्राप्ति; १-१९६ से 'ट'; का 'ढ' और ३-२ प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर सयढो रूप सिद्ध हो जाता है। केढवो रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१४८ में की गई है। १-१९६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001942
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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