________________
154 : प्राकृत व्याकरण
१-२३ की वृत्ति से 'म्' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में प्राप्त 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर खंभो रूप सिद्ध हो जाता है। ___आख्याति संस्कृत सकर्मक क्रिया पद रूप है। इसका प्राकृत रूप अक्खइ होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-८४ से आदि 'आ' के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति; २-७८ से 'य' का लोप; २-८९ से शेष 'ख' को द्वित्व 'ख्ख' की प्राप्ति; २-९० से प्राप्त पूर्श 'ख' को 'क्' की प्राप्ति; ४-२३८ से 'खा' में स्थित 'आ' को 'अ' की प्राप्ति और ३-१३९ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एकवचन में 'ति' प्रत्यय के स्थान पर 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर अक्खइ रूप सिद्ध हो जाता है।
अर्ध्यते संस्कृत कर्म भाव-वाच्य क्रिया पद रूप है। इसका प्राकृत रूप अग्घइ होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७९ से 'र' का लोप; २-७८ से 'य' का लोप; २-८९ से शेष 'घ' को द्वित्व 'घ्घ' की प्राप्ति; २-९० से प्राप्त पूर्व 'घ' को 'ग्' की प्राप्ति; ३-१३९ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एकवचन में 'ते' प्रत्यय के स्थान पर 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर अग्घइ रूप सिद्ध हो जाता है।
कथ्यते संस्कृत कर्म भाव-वाच्य क्रियापद रूप है। इसका प्राकृत रूप कत्थइ होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७८ से 'य' का लोप; २-८९ से शेष 'थ' को द्वित्व'थ्थ की प्राप्ति; २-९० से प्राप्त पूर्व'थ्' को 'त् की प्राप्ति; ३-१७७ से कर्म भाव-वाच्य प्रदर्शक संस्कृत प्रत्यय 'य' के स्थान पर प्राकृत में प्राप्तव्य ज्ज़ अथवा 'ज्जा' प्रत्यय का लोप और ३-१३९ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एकवचन में 'त्' प्रत्यय के स्थान पर 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर कत्थइ रूप सिद्ध हो जाता है।
सिघ्रकः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप सिद्ध होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७९ से 'र' का लोप; २-८९ से शेष 'ध' को द्वित्व'ध' की प्राप्ति; २-९० से प्राप्त पूर्व'ध्' को 'द्' की प्राप्ति; १-१७७ से 'क्' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर सिद्धओ रूप सिद्ध हो जाता है।
बन्ध्यते संस्कृत कर्म भाव-वाच्य क्रिया पद रूप है। इसका प्राकृत रूप बन्धइ होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-१७७ से कर्म भाव-वाच्य प्रदर्शक संस्कृत प्रत्यय 'य' के स्थान पर प्राकृत में प्राप्तव्य 'ज्ज' अथवा 'ज्जा' प्रत्यय का लोप; ४-२३९ से शेष हलन्त 'ध' में अकी प्राप्ति और ३-१३९ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एकवचन में 'ते' प्रत्यय के स्थान पर 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर बन्धइ रूप सिद्ध हो जाता है।
लभ्यते संस्कृत कर्म भाव-वाच्य क्रिया पद रूप है। इसका प्राकृत रूप लब्भइ होता है। इसमें सूत्र-संख्या ४-२४९ से कर्म भाव-वाच्य 'य' प्रत्यय का लोप होकर शेष 'भ' को द्वित्व 'भ्भ' प्राप्ति २-९० से प्राप्त पूर्व 'भ' को 'ब' की प्राप्ति; ४-२३९ से हलन्त 'भ' में 'अ' की प्राप्ति और ३-१३९ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एकवचन में 'ते' प्रत्यय के स्थान पर 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर लब्भइ रूप सिद्ध हो जाता है।
गर्जन्ति संस्कृत अकर्मक क्रियापद रूप है। इसका प्राकृत रूप गज्जन्ते होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७९ से 'र' का लोप: २-८९ से 'ज' को द्वित्व'जज' की प्राप्ति और ३-१४२ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के वचन में संस्कृत प्रत्यय 'न्ति' के स्थान पर 'न्ते' प्रत्यय की प्राप्ति होकर गज्जन्ते रूप सिद्ध हो जाता है।
खे संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप भी 'ख' ही होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-११ से सप्तमी विभक्ति के एकवचन में 'ङि' प्रत्यय के स्थान पर 'ए' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'खे' रूप सिद्ध हो जाता है।
मेघाः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप मेहा होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१८७ से 'घ' को 'ह' प्राप्ति और ३-४ से प्रथमा विभक्ति के बहु वचन में प्राप्त 'जस्' प्रत्यय का लोप तथा ३-१२ से प्राप्त होकर लुप्त हुए जस् प्रत्यय के कारण से अन्त्य 'अ' को 'आ' की प्राप्ति होकर मेहा रूप सिद्ध हो जाता है।
गच्छति संस्कृत सकर्मक क्रियापद रूप है। इसका प्राकृत रूप गच्छइ होता है। इसमें सूत्र-संख्या ४-२३९ से गच्छ् धातु के हलन्त 'छ' में विकरण प्रत्यय 'अ'की प्राप्ति; और ३-१३९ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एकवचन में 'ति' प्रत्यय के स्थान पर 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर गच्छइ रूप सिद्ध हो जाता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org