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________________ 152 : प्राकृत व्याकरण ___ लिखति संस्कृत क्रिया-पद रूप है। इसका प्राकृत रूप लिहइ होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१८७ से 'ख' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३-१३९ से वर्तमान काल में प्रथम पुरुष के एकवचन में 'ति' प्रत्यय के स्थान पर 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर लिहइ रूप सिद्ध हो जाता है। मघः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप मेहो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१८७ से 'घ' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर मेहो रूप सिद्ध हो जाता है। ___ जघनम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप जहणं होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१८७ से 'घ' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति; १-२२८ से 'न' के स्थान पर 'ण' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में नुपंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर जहणं रूप सिद्ध हो जाता है। ___माघः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप माहो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१८७ से 'घ' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर माहो रूप सिद्ध हो जाता है। __ लाघते संस्कृत सकर्मक क्रिया-पद रूप है। इसका प्राकृत रूप लाहइ होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७७ से 'श्' का लोप; १-१८७ से 'घ' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३-१३९ से वर्तमान काल से प्रथम पुरुष के एकवचन में 'ते' प्रत्यय के स्थान पर 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर लाहइ रूप सिद्ध हो जाता है। नाथः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप नाहो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१८७ से 'थ' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर नाहो रूप सिद्ध हो जाता है। आवसथः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप आवसहो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१८७ से 'थ' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर आवसहो रूप सिद्ध हो जाता है। मिथुनम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप मिहुणं होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१८७ से 'थ' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति; १-२२८ से 'न' के स्थान पर 'ण' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में नुपंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर मिहुणं रूप सिद्ध हो जाता है। __कथयति संस्कृत क्रियापद रूप है। इसका प्राकृत रूप कहइ होता है। इसमें सूत्र-संख्या ४-२३९ से 'कथ्' धातु के हलन्त 'थ' में विकरण प्रत्यय 'अकी प्राप्ति: संस्कत-भाषा में गण-विभाग होने से प्राप्त विकरण प्रत्य प्राकृत-भाषा में गण-विभाग का अभाव होने से लोप; १-१८७ से 'थ' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति ३-१३९ से वर्तमान काल में प्रथम पुरुष के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ति' के स्थान पर 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर कहइ रूप सिद्ध हो जाता है। साधुः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप साहू होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१८७ से 'ध' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति ३-१९ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में उकारान्तः पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर हस्व स्वर 'उ' के स्थान पर दीर्घ स्वर 'ऊ' की प्राप्ति होकर साह रूप सिद्ध हो जाता है। ___ व्याधः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप वाहो होता है ? इसमें सूत्र-संख्या २-७८ से 'य' का लोप; १-१८७ से 'ध' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर वाहा रूप सिद्ध हो जाता है। बीधरः संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप बहिरो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१८७ से 'ध' के स्थान पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001942
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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