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________________ प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 151 ,'थ' का, 'ध' का, अर्थः-'ख' का, 'घ' का, और 'भ' का प्रायः 'ह' उस समय होता है; जबकि ये वर्ण किसी भी शब्द में स्वर से पीछे रहे हुए हों; असंयुक्त याने हलन्त न हों तथा उस शब्द में आदि अक्षर रूप से नहीं रहे हुए हो || जैसे- 'ख' के उदाहरण:- शाखा - साहा; मुखम् - महं; मेखला - मेहला और लिखति लिहइ ।। 'घ' के उदाहरण: - मेघः = मेहो; जघनम्=जहणं; माघः=माहो और श्लाघते - लाह || 'थ' के उदाहरण:- नाथ:-नाहो, आवसथः = आवसहो, मिथुणं - मिहुणं, कथयति=कहइ।। 'ध' के उदाहरण :- साधुः - साहू; व्याधः = वाहो; बधिरः = बहिरो; बाधते - बाहइ और इन्द्र-धनुः-इन्द-हणू।। 'भ' के उदाहरण: - सभा - सहा; स्वभाव:- सहावो; नभम्-नहं; स्तन - भर: - थणहरो और शोभते सोहइ ।। प्रश्नः -'ख' 'घ' आदि ये वर्ण स्वर के पश्चात् रहे हुए हों 'ऐसा क्यों कहा गया है ? उत्तरः- क्योंकि यदि ये वर्ण स्वर के पश्चात् नहीं रहते हुए किसी हलन्त व्यञ्जन के पश्चात् रहे हुए हों तो उस अवस्था में इन वर्णों के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति नहीं होगी। जैसे:- 'ख' का उदाहरण शंखः संखो। 'घं' का उदाहरण - संघः = संघो । 'थ' का उदाहरण - कन्था = कंथा । 'ध' का उदाहरण बन्धः = बन्धो और 'भ' का उदाहरण-खम्भः=खंभो ।। इन शब्दों में 'ख' 'घ' आदि वर्ण हलन्त व्यञ्जनो के पश्चात् रहे हुए हैं; अतः इन शब्दों में 'ख' 'घ' आदि वर्णो के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति नहीं हुई है। प्रश्नः -' असंयुक्त याने हलन्त रूप से नहीं रहे हुए हो; तभी इन वर्णो के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति होती है' ऐसा क्यों कहा गया है ? उत्तर:- क्योंकि यदि ये 'ख' 'घ' आदि वर्ण हलन्त रूप से अवस्थित हों तो इनके स्थान पर 'ह' की प्राप्ति नहीं होगी। जैसे:- 'ख' का उदाहरण-आख्याति = अक्खाइ । 'घ्' का उदाहरण- अर्घ्यते= अग्घइ । 'थ्' का उदाहरण :- कथ्यते = कत्थइ । 'ध्' का उदाहरण- सिध्यक:- सिद्धओ । बद्धयते = बन्धइ और 'भ' का उदाहरण - लभ्यते = लब्भइ ।। प्रश्नः -'शब्द में आदि अक्षर रूप ये 'ख' 'घ' आदि वर्ण नहीं रहे हुए हो तो इन वर्णो के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति होती है; ऐसा क्यों कहा गया है ? उत्तरः- क्योंकि यदि ये 'ख' 'घ' आदि वर्ण किसी भी शब्द में आदि अक्षर रूप से रहे हुए हों तो इनके स्थान पर 'ह' की प्राप्ति नहीं होती है। जैसे:- 'ख' का उदाहरण-गर्जन्ति खे मेघाः- गज्जन्ते खे मेहा ।। 'घ' का उदाहरण- गच्छति घनः गच्छइ घणो ।। इत्यादि इत्यादि । प्रश्नः - ' प्रायः इन वर्णो के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति होती है' ऐसा 'प्रायः अव्यय का उल्लेख क्यों किया गया है ? | उत्तरः- क्योंकि अनेक शब्दों में 'स्वर से परे; असंयुक्त और अनादि' होते हुए भी इन वर्णो के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति होती हुई नहीं देखी जाती है। जैसे:- 'ख' का उदाहरण-सर्षप खलः सरिसवखलो। 'घ' का उदाहरण-प्रलय-घनः- पलय - घणो ॥ 'थ' का उदहारण- अस्थिरः = अथिरो ।। 'ध' का उदाहरण - जिन - धर्मः - जिण - धम्मो || तथा 'भ' का उदहारण-प्रणष्ट-भयः = पणट्ट - भओ और नभम् = नभं । । इन उदाहरणों में 'ख' 'घ' आदि वर्णो के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति नहीं हुई है || शाखा संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप साहा होता है। इसमें सूत्र- संख्या १ - २६० से 'श्' का 'स्'; और १- १८७ से 'ख' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति होकर साहा रूप सिद्ध हो जाता है। मुखम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप मुहं होता है। इसमें सूत्र - संख्या १- १८७ से 'ख' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति; ३ - २५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में नुपंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १ - २३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर मुहं रूप सिद्ध हो जाता है। मेखला संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप मेहला होता है। इसमें सूत्र - संख्या १- १८७ से 'ख' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति होकर मेहला रूप सिद्ध हो जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001942
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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