SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 150 : प्राकृत व्याकरण शीकरे भ-हो वा।। १-१८४।। शीकरे कस्य महो वा भवतः।। सीभरो सीहरो। पक्षे सीअरो। अर्थः-शीकर शब्द में स्थित 'क' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से एवं क्रम से 'भ' अथवा 'ह' की प्राप्ति होती है। जैस-शीकरः=सीभरो अथवा सीहरो।। पक्षान्तर में सीअरो भी होता है। शीकरः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप सीभरो, सीहरो और सीअरो होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १-२६० से 'श्' के स्थान पर 'स्'; १-१८४ से प्रथम रूप और द्वितीय रूप में क्रम से एवं वैकल्पिक रूप से 'क' के स्थान पर 'भ' अथवा 'ह' की प्राप्ति; १-१७७ से तृतीय रूप में पक्षान्तर के कारण से 'क्' का लोप और ३-२ से सभी रूपों में प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से सीभरो, सीहरो और सीअरो रूप सिद्ध हो जाते हैं।। १-१८४॥ चंद्रिकायां मः॥ १-१८५॥ चंद्रिका शब्दे कस्य भो भवति।। चंदिमा।। अर्थः- चन्द्रिका शब्द में स्थित 'क्' के स्थान पर 'म्' की प्राप्ति होती है। जैसे:-चंद्रिका=चन्दिमा।। चन्द्रिका संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप चन्दिमा होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७९ से 'र' का लोप और १-१८५ . से 'क्' के स्थान पर 'म्' की प्राप्ति होकर चन्दिमा रूप सिद्ध हो जाता है। १-१८५|| निकष-स्फटिक-चिकुरेहः।। १-१८६।। एषु कस्य हो भवति।। निहसो। फलिहो। चिहुरो। चिहुर शब्दः संस्कृतेपि इति दुर्गः।। अर्थः-निकष, स्फटिक और चिकुर शब्दों में स्थित 'क' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति होती है। जैसे:-निकषः-निहसो। स्फटिकः-फलिहो। चिकुरः-चिहुरो।। चिहुर शब्द संस्कृत भाषा में भी होता है; ऐसा दुर्गकोष में लिखा हुआ है। निकषः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप निहसो होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७७ से 'क' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति १-२६० से 'ष' का 'स' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर निहसो रूप सिद्ध हो जाता है। स्फटिकः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप फलिहो होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-१७७ से 'स' का लोप; १-१९७ से 'ट् के स्थान पर 'ल' की प्राप्ति; १-१८६ से 'क' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर फलिहो रूप सिद्ध हो जाता है। चिकुरः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप चिहुरो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१८६ से 'क' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर चिहुरो रूप सिद्ध हो जाता है।।। १-१८६।। ख-घ-थ-ध-भाम्।। १-१८७।। स्वरात् परेषामसंयुक्तानामनादिभूतानां ख घ थ ध भ इत्येतेषां वर्णानां प्रायो हो भवति।। ख। साहा। मुहं। मेहला। लिहइ।। घ। मेहो। जहण। माहो। लाहइ। था नाहो। आवसहो। मिहुणं। कहइ।। धा साहू। वाहो। बहिरो। बाहइ। इन्द-हणू। भ। सहा। सहावो। नह। थणहरो। सोहइ।। स्वरादित्येव। संखो। संघो। कंथा। बंधो। खंभो। असंयुक्तस्येत्येव। अक्खइ। अग्घइ। कत्थई। सिद्धओ। बन्धइ। लब्भइ।। अनादेरित्येव। गज्जन्ते खे मेहा। गच्छइ घणो। प्राय इत्येव। सरिसव-खलो। पलय-घणो। अथिरो। जिण घम्मो। पणट्ठ भओ। नभ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001942
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy