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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 149 कुब्जक संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप कुज्जय होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७९ से 'ब्' का लोप; २-८९ से 'ज' को द्वित्व 'ज्ज' की प्राप्ति; १-१७७ से द्वितीय ' का लोप और १-१८० से शेष 'अ'को 'य' की प्राप्ति होकर कुज्जय रूप सिद्ध हो जाता है।
कासितम् संस्कृत रूप है। आर्ष-प्राकृत में इसका रूप खासिअं होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१८१ की वृत्ति से 'क्' के स्थान पर 'ख' का आदेश; १-१७७ से 'त्' का लोप; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर खासिअंरूप सिद्ध हो जाता है। ___ कसितम् संस्कृत रूप है। आर्ष-प्राकृत में इसका रूप खसिअं होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१८१ की वृत्ति से 'क्' के स्थान पर 'ख' का आदेश और शेष सिद्धि उपरोक्त खासिअं रूप के समान ही जानना।। १-१८१।।
मरकत-मदकले गः कंदुके त्वादेः।। १-१८२।। अनयोः कस्य गो भवति, कन्दुकेत्वाद्यस्य कस्य।। मरगयं। मयगलो। गेन्दु।। अर्थः-मरकत और मदकल शब्दों में रहे हुए "क" का तथा कन्दुक शब्द में रहे हुए आदि 'क' का "ग" होता है। जैसेः=मरकतम् मरगय; मदकलः मयगलो और कन्दुकम्=गेन्दुआ। __ मरकतम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप मरगयं होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१८२ से "क" के स्थान पर "ग" की प्राप्ति; १-१७७ से त् का लोप १-१८० से शेष 'अ' को य की प्राप्ति ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में नपुंसकलिंग में "सि"प्रत्यय के स्थ
क स्थान पर"म् प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त "म्" का अनुस्वार होकर मरगयं रूप सिद्ध हो जाता है। मदकलः संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप मयगलो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१७७ से 'द्' का लोप १-१८० से शेष 'अ' को 'य' की प्राप्ति; १–१८२ से 'क' के स्थान पर 'ग' का आदेश; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर मयगलो रूप सिद्ध हो जाता है। गेन्दुअं रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-५७ में की गई है।।। १-१८२।।
किराते चः।। १-१८३।। किराते कस्य चो भवति।। चिलाओ।। पलिन्द एवायं विधिः। कामरूपिणि तु नेष्यते। नमिमो हर-किराय।।
अर्थः-'किरात' शब्द में स्थित 'क' का 'च' होता है। जैसे:-किरातः चिलाओ।। किन्तु इसमें यह ध्यान रखने की आवश्यकता है कि जब 'किरात' शब्द का अर्थ 'पलिन्द' याने भील जाति वाचक हो; तभी किरात में स्थित 'क' का 'च' होगा, अन्यथा नहीं। द्वितीय बात यह है कि जिसने स्वेच्छा पूर्वक 'भील' रूप धारण किया हो और उस समय में उसके लिये यदि 'किरात' शब्द का प्रयोग किया जाय तो प्राकृत भाषा के रूपान्तर में उस 'किरात' में स्थित 'क' का 'च' नहीं होगा। जैसे-नमामः हर किरातम्-नमिमो हर-किराय।।
किरातः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप चिलाओ होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-८३ से 'क' के स्थान पर 'च' की प्राप्ति; १-२५४ से 'र' के स्थान पर 'ल' की प्राप्ति; १-१७७ से 'त्' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर चिलाओ रूप सिद्ध हो जाता है।
नमामः संस्कृत सकर्मक क्रिया पद है। इसका प्राकृत रूप नमिमो होता है। इसमें सूत्र-संख्या ४-२३९ से हलन्त 'नम्' धातु में अ' की प्राप्ति; ३-१५५ से प्राप्त 'अ विकरण प्रत्यय के स्थान पर 'इ' की प्राप्ति; ३-१४४ से वर्तमानकाल के तृतीय पुरुष ( उत्तम पुरुष ) के बहुवचन में 'मो प्रत्यय की प्राप्ति होकर नमिमो रूप सिद्ध हो जाता है।
हर-किरातम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप हर-किरायं होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१७७ से 'त्' का लोप१-१८० से शेष 'अ' को 'य' की प्राप्ति; ३-५ से द्वितीया विभक्ति के एकवचन में प्राप्त 'अम्' प्रत्यय मे स्थित 'अ'का लोप और १-२३ से शेष 'म्' का अनुस्वार होकर अर किरायं रूप सिद्ध हो जाता है।।। १-१८३।।
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