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136 : प्राकृत व्याकरण
तृतीय रूप उववासो में वैकल्पिक - विधान संगति होने से सूत्र - संख्या १ - २३१ से 'प' का 'व्' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर तृतीय रूप उववासो भी सिद्ध हो जाता है । ।। १-१७३ ।।
उमो निषण्णे ।। १-१७४ ।।
निषण्ण शब्दे आदेः स्वरस्य परेण सस्वर व्यञ्जनेन सह उम आदेशो भवति ।। णुमण्णो णिसण्णो ।।
अर्थः- 'निषण्ण' शब्द में स्थित आदि स्वर 'इ' सहित परवर्ती स्वर सहित 'ष' व्यञ्जन के स्थान पर अर्थात् 'इष' शब्दाशं के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'उम' आदेश की प्राप्ति हुआ करती है । जैसे- निषण्णः - णुमण्णो और णिमण्णो ।।
निषण्णः संस्कृत विशेषण रूप है। इसके प्राकृत रूप णुमण्णो और णिसण्णो होते हैं। इनमें से प्रथम रूप णुमण्णो में सूत्र - संख्या १ - २२८ से 'न' का 'ण'; १ - १७४ से आदि स्वर 'इ' सहित परवर्ती स्वर सहित 'ष' व्यञ्जन के स्थान पर अर्थात् 'इष' शब्दांश के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'उम' आदेश की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप णुमण्णो सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप णिसण्णो में सूत्र - संख्या १ - २२८ से 'न्' का 'ण्'; १ - २६० से 'ष' का 'स' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर द्वितीय रूप णिसण्णा भी सिद्ध हो जाता है। ।। १ - १७४ ।।
प्रावरणे अङ्ग्वाऊ ।। १-१७५ ।।
प्रावरण शब्दे आदेः स्वरस्य परेण सस्वर व्यञ्जनेन सह अड्गु आउ इत्येतावादेशी वा भवतः । पङ्गु रणं पाउरणं पावरणं ।।
अर्थः-'प्रावरणम्' शब्द में स्थित आदि स्वर 'आ' सहित परवर्ती स्वर सहित 'व' व्यञ्जन के स्थान पर अर्थात् 'आव' शब्दांश के स्थान पर वैकल्पिक रूप से और क्रम से 'अङ्गु' और 'आउ' आदेशों की प्राप्ति हुआ करती है। जैसे - प्रावरणम् = पङ्गुरणं, पाउरणं और पावरणं ।।
प्रावरणम् संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप पङ्गुरणं, पाउरणं और पावरणं होते हैं। इनमें से प्रथम रूप पङ्गुरणं में सूत्र - संख्या २- ७९ से 'र्' का लोप; १ - १७५ से आदि स्वर 'आ' सहित परवर्ती स्वर सहित 'व' व्यञ्जन के स्थान पर अर्थात् 'आव' शब्दारां के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'अड्गु' आदेश की प्राप्ति; ३ - २५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में नपुसंकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १ - २३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर प्रथम रूप पङ्गुरणं सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप पाउरण में सूत्र - संख्या २- ७९ से वैकल्पिक रूप से 'र्' का लोप; १ - १७५ से 'आव' शब्दांश के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'आउ' आदेश की प्राप्ति और शेष सिद्धि प्रथम रूप के समान ही होकर द्वितीय रूप पाउरण भी सिद्ध हो जाता है।
तृतीय रूप पावरणं में सूत्र - संख्या २- ७९ से 'र्' का लोप; और शेष सिद्धि प्रथम रूप के समान ही होकर द्वितीय रूप पावरणं भी सिद्ध हो जाता है। ।। १-१७५ ।।
स्वरादसंयुक्तस्यानादेः ।। १ - १७६ ।।
अधिकारोयम्। यदित ऊर्ध्वमनुक्रमिष्यामस्तत्स्वरात् परस्यासंयुक्तस्यानादेर्भवतीति वेदितव्यम्।।
अर्थः-यह सूत्र अधिकार-वाचक सूत्र है । अर्थात् इस सूत्र की सीमा और परिधि आगे आने वाले अनेक सूत्रों से संबंधित है। तदनुसार आगे आने वाले सूत्रों में लोप और आदेश आदि प्रक्रियाओं का जो विधान किया जाने वाला है;
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