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________________ हेम प्राकृत व्याकरण : Xv करते हैं। जिस बात को प्राचीन वैयाकरण चंड,वररुचि आदि ने संक्षेप में कह दिया था, हेमचन्द्र ने उसे न केवल विस्तार से कहा है. अपित अनेक नये उदाहरण भी दिये हैं। इस तरह प्राकत भाषा के विभिन्न स्वरूपों का सांगोपांग अनशासन हेमव्याकरण में हो सका है। ___ द्वितीयपाद के २१८ सूत्रों में संयुक्त व्यंजनों के परिवर्तन, समीकरण, स्वर भक्ति, वर्णविपर्यय, शब्दादेश, तद्धित, निपात और अव्ययों का निरूपण है। यह प्रकरण आधुनिक भाषाविज्ञान की दृष्टि से बहुत उपयोगी है। हेमचन्द्र ने संस्कृत के कई दयअर्थ वाले शब्दों को प्राकत में अलग-अलग किया है. ताकि भ्रान्तियाँ न हों। संस्कत के क्षण शब्द का अर्थ समय भी है और उत्सव भी । हेमचन्द्र ने उत्सव अर्थ में छणो (क्षणः) और समय अर्थ में खणो (क्षणः) रूप निर्दिष्ट किये हैं। इसी तरह हेम ने अव्ययों की भी विस्तृत सूची इस पाद में दी है। तृतीयपाद में १८२ सूत्र हैं, जिनमें कारक, विभक्तियों, कियारचना आदि सम्बन्धी नियमों का कथन किया गया है। शब्दरूप, कियारूप और कृत प्रत्ययों का वर्णन विशेष रूप से ध्यातत्व है। वैसे प्राकृतप्रकाश के समान ही इसका विवेचन हेम ने किया है, कारक व्यवस्था पर अच्छा प्रकाश डाला है। हेमप्राकृत व्याकरण का चतुर्थ पाद विशेष महत्वपूर्ण है इसके ४४८ सूत्रों में शौरसेनी, मागधी, पैशाची, चूलिका पैशाची और अपभ्रंश प्राकृतों का शब्दानुशासन ग्रन्थकार ने किया है। इस पाद में धात्वादेश की प्रमुखता है। संस्कृत धातुओं पर देशी अपभ्रंश धातुओं का आदेश किया है। यथा- संस्कृत कथ्, प्राकृत-कह को बोल्ल, चव, जंप आदि आदेश । मागधी, शौरसेनी एवं पैशाची का अनुशासन तो प्राचीन वैयाकरणों ने भी संक्षेप में किया था। हेम ने इनको विस्तार से समझाया है। किन्तु इसके साथ ही चूलिका पैशाची की विशेषताएँ भी स्पष्ट की हैं। इस पाद के ३२९ सूत्र से ४४८ सूत्र तक उन्होंने अपभ्रंश व्याकरण पर पहली बार प्रकाश डाला है। उदाहरण के लिए जो अपभ्रंश के दोहे दिये हैं, वे अपभ्रंश साहित्य की अमूल्य निधि हैं। आचार्य हेम के समय तक प्राकृत भाषा का बहुत अधिक विकास हो गया था । इस भाषा का विशाल साहित्य भी था । अपभ्रंश के भी विभिन्न रूप प्रचलित थे। अतः हेमचन्द्र ने प्राचीन वैयाकरणों के ग्रन्थों का उपयोग करते हुए भी अपने व्याकरण में बहुत-सी बातें नयी और विशिष्ट शैली में प्रस्तुत की हैं। हेम एवं अन्य प्राकृत वैयाकरण : आचार्य हेमचन्द्र के पूर्व कई प्राकृत वैयाकरण हो चुके थे। हेमचन्द्र ने यह स्वयं स्वीकार किया है कि उन्होंने प्राचीन ग्रन्थों का पर्याप्त उपयोग किया है। यद्यपि किसी का नाम नहीं लिया है। कश्चित्, केचित्, अन्यैः आदि शब्दों द्वारा इसकी सूचना दी है। प्राकृत व्याकरण के अनुशीलन से यह स्पष्ट हो जाता है कि चंड एवं वररुचि का उन पर पर्याप्त प्रभाव है। फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि हेमचन्द्र में कोई मौलिकता नहीं है। डा डौल्ची नित्ति के इस कथन को समर्थन नहीं दिया जा सकता है कि हेमचन्द्र ने प्राकृत व्याकरण की पूर्णता और प्रौढ़ता प्राप्त नहीं की है या उसमें कोई विशेष प्रतिभा नहीं है। । वस्तुतः हेमचन्द्र ने अपने प्राकृत व्याकरण में उस समय तक प्रचलित सभी अनुशासनों को सम्मिलित किया है तथा जहाँ नये नियमों व उदाहरणों की आवश्यकता थी उनको अपने ढंग से प्रस्तुत किया है। चंड के प्राकृत लक्षण सूत्र १७, १.८,१९, २३, २.४ हैमव्याकरण में ८३.२४,८३.७,८३९,८१.८ में उपलब्ध है। हेम ने आर्ष प्राकृत के उदाहरण वे ही दिये हैं, जो चंड ने। किन्तु स्वर और व्यंजन परिवर्तन के सिद्धान्त प्राकृत लक्षण में बहुत संक्षिप्त हैं, जिनका हेमचन्द्र ने बहुत विस्तार किया है। तद्धित, कृत प्रत्यय, धात्वादेश और अपभ्रंश व्याकरण का अनुशासन चंड की अपेक्षा हैमव्याकरण में नवीनता और विस्तार लिये हुए है। विषयक्रम और वर्णनशैली दोनो में हेमचन्द्र ने वररुचि का अनुकरण किया है। कुछ सिद्धान्त ज्यों के त्यों प्राकृतप्रकाश के उन्होने स्वीकार किये है। किन्तु अनेक बातों में हेमचन्द्र वररुचि से अपनी विशेषता रखते हैं। वररुचि ने धातुओं के अर्थान्तरों का कोई संकेत नहीं दिया है, जबकि हेम ने धातवोऽर्थान्तरेऽपि .... द्वारा धातुओं के बदलते हुए अर्थो का निर्देश किया है। ___ हेमचन्द्र ने यश्रुति का विधान किया है, जिसका वररुचि में अभाव है। सेतुबन्ध, गउडवहो आदि काव्यों में यश्रुति का प्रयोग है, जिसका हेम ने नियमन किया है। वररुचि ने जहां तीन-चार तद्धित प्रत्ययों का उल्लेख किया है, वहां हेम ने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001942
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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