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124 प्राकृत व्याकरण
उत्सौन्दर्यादौ ।। १-१६०।।
सौन्दर्यादिषु शब्देषु औत उद् भवति ।। सुन्देरं सुन्दरिअं । मुञ्जायणो । सुण्डो । सुद्धोअणी । दुवारिओ । सुगन्धतणं । पुलोमी। सुवण्णिओ ।। सौन्दर्य । मौञ्जायन । शौण्ड । शौद्धोदनि । दौवारिक । सौगन्ध्य । पौलोमी । सौवर्णिक ।।
अर्थः-सौन्दर्य; मौञ्जायन; शौण्ड; शौद्धोदनि; दौवारिक; सौगन्ध्य; पौलोमी; और सौवर्णिक इत्यादि शब्दों में रहे हुए 'औ' के स्थान पर 'उ' होता है। जैसे- सौन्दर्यम् - सुन्दरं और सुन्दरिअ; मौञ्जायन:-मूञ्जायणो; शौण्डः =सुण्डो; शौद्धोदनिः=सुद्धोअणी; दौवारिक:- दुवारिओ; सौगन्ध्यम्-सुगन्धतणं; पौलोमी=पुलोमी; और सौवर्णिकः - सुवण्णिओ ।। इत्यादि।।
सुन्देरं रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या १-५७ में की गई है।
सौन्दर्यम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप सुन्दरिअं होता है। इसमें सूत्र - संख्या १ - १६० से 'औ' के स्थान पर 'उ' की प्राप्ति; २-१०७ से 'र्य' के पूर्व में 'इ' का आगम; २- ७८ से 'य्' का लोप; ३ - २५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में नपुसंकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १ - २३ से प्राप्त 'म्' प्रत्यय का अनुस्वार होकर सुन्दरिअं रूप सिद्ध हो जाता है।
मौञ्जायनः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप मुञ्जायणो होता है। इसमें सूत्र - संख्या १ - १६० से 'औ' के स्थान पर 'उ' की प्राप्ति; १-२२८ से 'न' का 'ण'; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर मुञ्जायणो रुप सिद्ध हो जाता है।
शौण्डः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप सुण्डो होता है। इसमें सूत्र - संख्या १ - २६० से 'श' का 'स'; १ - १६० से 'औ' के स्थान पर 'उ' की प्राप्ति; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर सुण्डो रुप सिद्ध हो जाता है।
शौद्धोदनिः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप सुद्धोअणी होता है। इसमें सूत्र - संख्या १ - २६० से 'श' का 'स'; १-१६० से 'औ' के स्थान पर 'उ' की प्राप्ति; १ - १७७ से 'द्' का लोप; १ - २२८ से 'न' का 'ण'; और ३-१९ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य ह्रस्व स्वर 'इ' की दीर्घ 'ई' होकर सुद्धोअणी रुप सिद्ध हो जाता है।
दौवारिकः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप दुवारिओ होता है। इसमें सूत्र - संख्या १ - १६० से 'औ' के स्थान पर 'उ' की प्राप्ति; १ - १७७ से 'क्' का लोप; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर दुवारिओ रुप सिद्ध हो जाता है।
सौगन्ध्यम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप सुगन्धतणं होता है। इसमें सूत्र - संख्या १ - १६० से 'औ' के स्थान पर 'उ' की प्राप्ति; २ - १५४ से संस्कृत 'त्व' प्रत्यय वाचक 'य' के स्थान पर 'तण' प्रत्यय की प्राप्ति; ३ - २५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में नपुसंकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १ - २३ से प्राप्त 'म्' प्रत्यय का अनुस्वार होकर सुगन्धतणं रूप सिद्ध हो जाता है।
पौलोमी संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप पुलोमी होता है। इसमें सूत्र - संख्या १ - १६० से 'औ' के स्थान पर 'उ' की प्राप्ति होकर पुलोमी रुप सिद्ध हो जाता है।
सौवर्णिकः संस्कृत विशेषण है। इसका प्राकृत रूप सुवण्णिओ होता है। इसमें सूत्र - संख्या १ - १६० से 'औ' के स्थान पर 'उ' की प्राप्ति; २- ७९ से 'र्' का लोप; २-८९ से 'ण' का द्वित्व 'ण्ण'; १ - १७७ से 'क्' का लोप; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर सुवण्णिओ रुप सिद्ध हो जाता है ।।१ - १६० ॥
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