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________________ प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 123 और गउआ तथा गाओ।। हरस्य एषा गौ:- हरस्स एसा गाई ।। गउओ और गउआ इन दोनों शब्द रूपों की सिद्धि सूत्र - संख्या १-५४ में की गई है। गौः संस्कृत रूप (गो+सि) है। इसका प्राकृत रूप गाओ होता है। इसमें सूत्र - संख्या १ - १५८ से 'ओ' के स्थान पर 'आअ' का आदेश; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर गाओ रुप सिद्ध हो जाता है। हरस्य संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप हरस्स होता है। इसमें 'हर' मूल रूप के साथ सूत्र - संख्या ३- १० से षष्ठी विभक्ति के एकवचन का पुल्लिंग का 'स्स' प्रत्यय संयोजित होकर हरस्स रूप सिद्ध हो जाता है। 'एसा' सर्वनाम रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या १-३३ में की गई है। गाः संस्कृत रूप (गो+सि) है। इसका प्राकृत रूप गाई होता है। इसमें सूत्र - संख्या १ - १५८ से के स्थान पर 'आअ' आदेश की प्राप्ति; और ३-३१ से पुल्लिंग शब्द को स्त्रीलिंग में रूपान्तर करने पर 'अन्तिम-अ' के स्थान पर 'ई' की प्राप्ति; संस्कृत विधान से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में प्राप्त 'सि' प्रत्यय में स्थित 'इ' की इत्-संज्ञा; और १ - ११ से शेष 'स्' का लोप; होकर गाई रूप सिद्ध हो जाता है ।। १-१५८ ।। औत ओत् ।। १-१५९ ।। औकारस्यादेरोद् भवति।। कौमुदी कोमुई । यौवनम् जोव्वणं ।। कौस्तुभः कोत्थुहो । कौशाम्बी कोसम्बी ॥ क्रौञ्चः कोञ्चो ।। कौशिकः कोसिओ ।। अर्थः-यदि किसी संस्कृत शब्द के आदि में 'औ' रहा हुआ हो तो प्राकृत रूपान्तर में उस 'औ' का 'ओ' हो जाता है। जैसे-कौमदी=कोमुई।। यौवनम् = जोव्वणं । कौस्तुभः-कोत्थुहो।। कौशाम्बी-कोसम्बी। क्रौञ्चः कोञ्चो।। कौशिकः=कोसिओ।। इत्यादि।। कौमुदी संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप कोमुई होता है । इसमें सूत्र - संख्या १ - १५९ से 'औ' के स्थान पर 'ओ'; और १-१७७ से 'द्' का लोप होकर कोमुइ रूप सिद्ध हो जाता है। यौवनं संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप जोव्वणं होता है। इसमें सूत्र- संख्या १-१५९ 'औ' के स्थान पर 'ओ'; १-२४५ से ‘य' का ‘ज'; २-८९ से 'व' का द्वित्व 'व्व'; १-२८ से 'न' का 'ण'; ३ - २५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में नपुसंकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १ - २३ से प्राप्त 'म्' प्रत्यय का अनुस्वार होकर जोव्वणं रूप सिद्ध हो जाता है। कौस्तुभः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप कोत्थुहा होता है। इसमें सूत्र - संख्या १ - १५९ से 'औ' के स्थान पर 'ओ'; २-४५ से 'स्त' का 'थ'; २-८९ से प्राप्त 'थ' का द्वित्व ' थ्थ'; २-९० से प्राप्त पूर्व ' थ्' का 'त्'; १-१८७ से 'भ' का 'ह'; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर ओ रुप सिद्ध जाता है। शाम्बी संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप कोसम्बी होता है। इसमें सूत्र - संख्या १ - १५९ से 'औ' के स्थान पर 'ओ' ; १ - २६० से 'श' का 'स'; और १-८४ से 'आ' का 'अ' होकर कोसम्बी रूप सिद्ध हो जाता है। क्रोञ्चः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप कोचो होता है। इसमें सूत्र - संख्या १ - १५९ से 'औ' के स्थान पर 'ओ'; २-७९ से 'र्' का लोप; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर कोचो रुप सिद्ध हो जाता है। कौशिकः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप कोसिओ होता है। इसमें सूत्र - संख्या १ - १५९ से 'औ' के स्थान पर 'ओ'; १-२६० से 'श' का 'स'; १-१७७ से 'क्' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर कोसिओ रुप सिद्ध हो जाता है ।।१ - १५९।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001942
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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