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________________ 112 : प्राकृत व्याकरण विकल्प से 'रि'; १-२६० से 'ष' का 'स'; १-१८७ से 'भ' का 'ह'; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर रिसहो रूप सिद्ध हो जाता है। उसहो रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१३१ में की गई है। ऋतुः संस्कृत विशेषण है। इसके प्राकृत रूप रिऊ और उऊ होते है। इनमें सूत्र-संख्या १-४१ से 'ऋ' की विकल्प से 'रि'; १-७७ से 'त्' का लोप; और ३-१८ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में अथवा स्त्रीलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य हस्व स्वर 'उ' का दीर्घ स्वर 'ऊ' होकर रिऊ रूप सिद्ध हो जाता है। उऊ रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१३१ में की गई है। ऋषिः संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप रिसी और इसी होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १-१४१ से 'ऋ' की विकल्प से 'रि'; १-६० से 'ष' का 'स्'; और ३-१९ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य स्वर 'इ' की दीर्घ स्वर 'ई' रिसी रूप सिद्ध हो जाता है। इसी रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१२८ में की गई है।।१-१४१।। दृशः क्विप्-टक-सकः ॥ १-१४२ ।। क्किप् टव् सक् इत्येतदन्तस्य दृशे र्धातो ऋतो रिरादेशो भवति॥ सदृक् सरिवण्णो। सरि-रूवो। सरि-बन्दीण।। सदृशः। सरिसो। सदृक्षः। सरिच्छो॥ एवम् एआरिसो। भवारिसो। जारिसो। तारिसो। केरिसो। एरिसो। अन्नारिसो। अम्हारिसो। तुम्हारिसो।। टक्सक्साह-चर्यात् त्यदाद्यन्यादि {हे ०५-१} सूत्र-विहितः क्किबिह गृह्यते।। अर्थः-यदि दृश् धातु में 'क्विप्', 'टक्', और 'सक्' कृदन्त प्रत्ययों में से कोई एक प्रत्यय लगा हुआ हो तो 'द्दश्' धातु में रही हुई 'ऋ' के स्थान पर 'रि' का आदेश होता है। जैसे-सदृक्-सरि।। सदृश्-वर्ण:-सरि-वण्णो। सदृश्-रूपः सरि-रूवो। सदृश्-बन्दीनाम्-सरि-वन्दीण।। सदृशः सरिसो।। सदृक्षः सरिच्छो।। इसी प्रकार से अन्य उदाहरण यों है:-एतादृशः=एआरिसो। भवादृशः भवारिसो। यादृशः जारिसो। तादृशः तारिसो। कीदृशः केरिसो। इदृशः=एरिसो। अन्यादृशः अन्नारिसो। अस्मादृशः अम्हारिसो। युष्मादृशः-तुम्हारिसो।। इस सूत्र में 'टक्' और 'सक्' प्रत्ययों के साथ 'क्विप्' प्रत्यय का उल्लेख किया गया है; इस पर से यह समझा जाना चाहिये कि इस सत्र को 'त्यदाद्यन्यादि' (हे ५-१-१५२) सूत्र के साथ मिलाकर पढना चाहिये। जिसका तात्पर्य यह है कि 'तत्' आदि सर्वनामों के रूपों के साथ में यदि दृश् धातु रही हुई हो और उस स्थिति में 'दृश्' धातु में क्विप् प्रत्यय लगा हुआ हो तो 'दृश्' धातु की 'ऋ' के स्थान पर 'रि' का आदेश होता है। ऐसा तात्पर्य समझना। सदृक् संस्कृत विशेषण है। इसका प्राकृत रूप सरि होता है। इसमे सूत्र-संख्या १-१७७ से 'द्' का लोप; १-१४२ से 'ऋ' की 'रि' और १-११ से 'क्' का लोप होकर सरि रूप सिद्ध हो जाता है। वर्णः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप वण्णो होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७९ से 'र' का लोप; २-८९ से 'ण' का द्वित्व 'पण'; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर वण्णो रूप सिद्ध हो जाता है। सद्दक् रुप संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रुप सरिरुवो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१७७ से 'द्' और 'क्' का लोप; १-१४२ से 'ऋ' की 'रि'; १-२३१ से 'प' का 'व' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर सरिरुवो रुप सिद्ध हो जाता हैं। सदृक्-बन्दीनाम् संस्कृत रुप हैं। इसका प्राकृत रुप सरि बन्दीणं होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१७७ से 'द्' और 'क्' का लोप; १-४२ से 'ऋ' की 'रि'; बन्दीनाम् का मूल शब्द 'बन्दिन्' (चारण-गायक) (न कि बन्दी याने कैदी) होने से सूत्र-संख्या १-११ से 'न्' का लोप; ३-६ से षष्ठी विभक्ति के बहुवचन के प्रत्यय 'आम्' के स्थान् पर 'ण' की प्राप्ति; ३-१२ से प्राप्त 'ण' के पूर्व हस्व स्वर 'इ' को दीर्घ 'ई' की प्राप्ति; और १-२७ से प्राप्त 'ण' पर आगम रुप अनुस्वार की प्राप्ति होकर सरि-बन्दीणं रूप सिद्ध हो जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001942
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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