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94 : प्राकृत व्याकरण
२-४५
से प्रथमा के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर तोण्डं रूप सिद्ध हो जाता है।
मुण्डम् संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप मोण्डं होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-११६ से आदि 'उ' का 'ओ'; ३-२५ से प्रथमा के एकवचन में नपंसुकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर मोण्डं रूप सिद्ध हो जाता है। _ 'पुष्कर संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'पोक्खरं' होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-११६ से आदि 'उ' का 'ओ'; २-४ से 'क' का 'ख'; २-८९ से प्राप्त 'ख' का द्वित्व 'ख्ख'; २-९० से प्राप्त पूर्व 'ख' का क्; ३-२५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय से स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर पोक्खरं रूप सिद्ध हो जाता है। ___'कुट्टिम संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'कोट्टिम' होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-११६ से आदि 'उ' का 'ओ'; ३-२५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'कोट्टिम रूप सिद्ध हो जाता है। 'पुस्तकः' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'पोत्थओ' होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-११६ से आदि 'उ' का ओ;
त' का 'थ'.२-८९ से प्राप्त 'थका दित्व 'थथ'. २-९० से प्राप्त पर्व 'थ' का 'त':१-१७७ से 'क' का लोप: और ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'पोत्थओ' रूप सिद्ध हो जाता है। __ 'लुब्धकः' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'लोद्धओ' होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-११६ से आदि 'उ' का 'ओ'; २-७९ से 'ब' लोप, २-८९ से शेष 'ध' का द्वित्व ध्ध', २-९० से प्राप्त पूर्व 'ध्' का 'द्', १-१७७ से 'क' लोप
और ३-२ से प्रथमा एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'लोद्धओ' रूप सिद्ध हो जाता है। ___ 'मुस्ता' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'मोत्था' होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-११६ से आदि 'उ' का 'ओ'; २-४५ से 'स्त' का 'थ'; २-८९ से प्राप्त 'थ' का द्वित्व 'थ्थ' ; और २-९० से प्राप्त पूर्व 'थ्' का 'त्' होकर 'मोत्था' रूप सिद्ध हो जाता है। ___ 'मुद्गरः' संस्कृत शब्द है; इसका प्राकृत रूप 'मोग्गरो' होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-११६ से आदि 'उ' का 'ओ'; २-७७ से 'द्' का लोप; २-८९ से शेष 'ग' का द्वित्व 'ग् ग'; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग मे 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर मोग्गरो रूप सिद्ध हो जाता है।
'पुद्गल' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'पोग्गलं' होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-११६ से आदि 'उ' का 'ओ'; २-७७ से 'द्' का लोप; २-८९ से 'ग' का द्वित्व 'ग्ग'; ३-२५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'पोग्गलं रूप सिद्ध हो जाता है। __ 'कुण्ठः' संस्कृत शब्द है, इसका प्राकृत रूप 'कोण्ढो' होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-११६ से आदि 'उ' का 'ओ'; १-१९९ से 'ठ' का 'ढ'; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय होकर 'कोण्ढो' रूप सिद्ध हो जाता है।
'कुन्तः' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'कोन्तो' होता है; इसमें सूत्र-संख्या १-११६ से आदि 'उ' का 'ओ'; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'कोन्तो' रूप सिद्ध हो जाता है।
न्युत्क्रान्तं संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप वोक्कन्तं होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७८ से 'य' का लोप; १-११६
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