________________
92: प्राकृत व्याकरण
ऊत्सुभग-मुसले वा ।। १-११३।।
अनयोरादेरुत ऊद् वा भवति ।। सूहवो सुहओ । मूसलं मुसलं ।।
अर्थः- सुभग और मुसल इन दोनों शब्दों में रहे हुए आदि 'उ' का विकल्प से दीर्घ 'ऊ' होता है। जैसे - सुभगः सुहवो और सुहओ। मुसलम्=मूसलं और मुसलं ।।
'सुभगः ' संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप 'सूहवो' और 'सुहओ' होते हैं। इनमें सूत्र - संख्या १ - ११३ से आदि 'उ' का विकल्प से 'ऊ-; १-१८७ से 'भ' का 'ह'; १ - १९२ से प्रथम रूप में 'ऊ' होने पर 'ग' का 'व'; और द्वितीय रूप में 'ऊ' नहीं होने पर १ - १७७ से 'ग' का लोप; और ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से 'सूहवो' और 'सुहओ' रूप सिद्ध हो जाता है।
'मुसलं' संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप मूसलं और मुसलं होते हैं। इनमें सूत्र - संख्या १ - ११३ से आदि 'उ' का विकल्प से दीर्घ 'ऊ'; ३ - २५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर क्रम से 'मूसलं' और 'मुसलं' रूप सिद्ध हो जाता है।।।१-११३।। अनुत्साहोत्सन्नेत्सच्छे।। १-११४।।
उत्साहोत्सन्नवर्जिते शब्दे यौ त्सच्छौ तयोः परयोरादेरुत ऊद् भवति।। त्स। ऊसुओ। ऊसवो। ऊसित्तो। ऊसरइ ।। छ। उद्गताः शुका यस्मात् सः ऊसुओ । ऊससइ ।। अनुत्साहोत्सन्न इति किम् । उच्छाहो । उच्छन्नो॥
अर्थः- उत्साह और उत्सन्न इन दो शब्दों को छोड़ करके अन्य किसी शब्द में 'त्स' अथवा 'च्छ' आवे; तो इन 'त्स' अथवा 'च्छ' वाले शब्दों के आदि 'उ' का 'ऊ' होता है। 'त्स' के उदाहरण इस प्रकार है:
उत्सुकः-ऊसुओ। उत्सव:- ऊसवो। उत्सिक्तः - ऊसित्तो । उत्सरति - ऊसरइ । 'च्छं' के उदाहरण इस प्रकार है:- जहाँ सेतोता । (पक्षी विशेष) निकल गया हो वह 'उच्छुक' होता है। इस प्रकार उच्छुकः-ऊसुओ।। उच्छ्बसति=ऊससइ।। उत्साह और उत्सन्न इन दोनों शब्दों का निषेध क्यों किया ? उत्तरः- इन शब्दों में 'त्स' होने पर भी आदि 'उ' का 'ऊ' नहीं होता है अतः दीर्घ 'ऊ' की उत्पत्ति का इन शब्दों में अभाव ही जानना । जैसे- उत्साहः उच्छाहो। उत्सन्नः- उच्छन्नो ।।
उत्सुकः संस्कृत विशेषण है। इसका प्राकृत रूप 'ऊसुओ' होता है। इसमें सूत्र - संख्या १ - ११४ से आदि 'उ' का 'ऊ' २-७७ से 'तू' का लोप; १ - १७७ से 'क्' का लोप; और ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'ऊसुओं' रूप सिद्ध हो जाता है।
ऊसवो शब्द की सिद्धि सूत्र - संख्या १ - ८४ में की गई है।
‘उत्सिक्तः' संस्कृत विशेषण है। इसका प्राकृत रूप 'ऊसित्तो' होता है। इसमें सूत्र - संख्या १ - ११४ से आदि 'उ' का 'ऊ'; २-७७ से 'त्' और 'क्' का लोप; २-८९ से शेष द्वितीय 'त' का द्वित्व 'त्त'; और ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय होकर 'ऊसित्तो' रूप सिद्ध हो जाता है।
'उत्सरति' संस्कृत अकर्मक क्रिया पद है; इसका प्राकृत रूप 'ऊसरइ' होता है। इसमें सूत्र - संख्या १-११४ से आदि 'उ' का 'ऊ'; २-७७ से 'त्' का लोप; और ३-१३९ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एकवचन में 'ति' प्रत्यय के स्थान पर 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'ऊसरइ' रूप सिद्ध हो जाता है।
'उच्छुक'=(उत्+शुकः)–संस्कृत विशेषण है; इसका प्राकृत रूप 'ऊसुओं' होता है। इसमें सूत्र- संख्या १-११४ से आदि 'उ' का 'ऊ'; २-७७ से 'त्' का लोप; १ - २६० से 'श' का 'स' १-१७७ से 'क्' का लोप; और ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग से ‘सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर ऊसुओ रूप सिद्ध हो जाता है
उच्छ्वसति (उत्श्रसति)=संस्कृत सकर्मक क्रिया पद है। इसका प्राकृत रूप ऊससइ होता है। इसमें सूत्र - संख्या १ - ११४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org