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________________ प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 91 अर्थः उपरि शब्द में रहे हुए 'उ' का विकल्प से 'अ' हुआ करता है। जैसे-उपरि =अवरिं और उवरि।। अवरि शब्द की सिद्धि सूत्र-संख्या १-२६ में की गई हैं 'उपरि' संस्कृत अव्यय है। इसका प्राकृत रूप 'उवरि' होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२३१ से 'प' का 'व'; और १-२६ से अनुस्वार की प्राप्ति होकर उवरि' रूप सिद्ध हो जाता है।।१-१०८।। गुरौ के वा ॥ १-१०९॥ गुरौ स्वार्थ के सति आदेरूतोद् वा भवति।। गुरुओ गुरुओ।। क इति किम्? गुरू।। अर्थः 'गुरु' शब्द में स्वार्थ-वाचक 'क' प्रत्यय लगा हुआ हो तो 'गुरु' के आदि में रहे हुए 'उ' का विकल्प से 'अ' होता है। जैसे:- गुरुकः गुरुओ और गुरुओ। 'क' ऐसा क्यों लिखा है? उत्तर:- यदि स्वार्थ-वाचक 'क' प्रत्यय नहीं लगा हुआ हो तो 'गुरु' के आदि 'उ' का 'अ' नहीं होगा। जैसे - गुरुः गुरू।। गुरुकः संस्कृत विशेषण है। इसके प्राकृत रूप गरुओ और गुरुओ होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १-१०९ से आदि 'उ' का विकल्प से 'अ'; १-१७७ से 'क्' का लोप; और ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय होकर क्रम से गरूओ और गुरूओ रूप सिद्ध हो जाते हैं। गुरुः संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'गुरु' होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-१९ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य ह्वस्व स्वर को दीर्घ स्वर होकर 'गुरु' रूप सिद्ध हो जाता है।।१०९।। इर्भु कुटौ।। १-११०॥ भृकुटावादेरूत इर्भवति।। भिउडी।। अर्थः- भृकुटि शब्द में रहे हुए आदि 'उ' की 'इ' होती है। जैसे भ्रुकुटिः भिउडी।। 'भृकुटि' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'भिउडी' होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७९ से 'र' का लोप; १-११० से आदि 'उ' की 'इ'; १–१७७ से 'क्' का लोप; १-१९५ से 'ट' का 'ड'; और ३-१९ से प्रथमा के एकवचन में स्त्रीलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य हस्व स्वर 'इ' की दीर्घ 'ई' होकर भिउडी रूप सिद्ध हो जाता है।।।१-११०।। पुरुषे रोः।। १-१११।। पुरुषशब्दे रोरूत इर्भवति। पुरिसो। पउरिसं।। अर्थः- पुरुष शब्द में 'रु' में रहे हुए 'उ' की 'इ' होती है। जैसे- पुरुष-पुरिसो। पोरुषम्=पउरिसं।। पुरिसो शब्द की सिद्धि सूत्र-संख्या १-४२ में की गई है। पौरुषं संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'पउरिसं होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१६२ से 'औ' का 'अउ'; १-१११ से 'रु' के 'उ' की 'इ'; १-२६० से 'ष' का 'स'; ३-२५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'पउरिसं रूप सिद्ध हो जाता है।।१-१११।। ईः क्षुते।। १-११२।। क्षुतशब्दे आदेरूत ईत्वं भवति ।। छीअं॥ अर्थः- क्षुत शब्द में रहे हुए आदि 'उ' की 'ई' होती है। जैसे -क्षुतम् छी। क्षुतं संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप छीअं होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-१७ से 'क्ष' का 'छ'; १-११२ से 'उ' -१७७ से 'त्' का लोप, ३-२५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'छीअं रूप सिद्ध हो जाता है।।१-११२।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001942
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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