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90 : प्राकृत व्याकरण
उतो मुकुलदिष्वत् ।। १-१०७।। मुकुल इत्येवमादिषु शब्देषु आदेरूतोत्वं भवति।। मउला मउलो। मउरं मउडं अगरूं। गरूई। जहुट्ठिलो। जहिट्ठिलो। सोअमल्ली गलोई।। मुकुल। मुकुर। मुकुट। अगुरू। गुर्वी। युधिष्ठिर। सौकुमाय। गुडूची। इति मुकुलादयः। क्वचिदाकारो वि। विद्रुतः। विद्दाओ।
अर्थः - मुकुल इत्यादि इन शब्दों में रहे हुए आदि 'उ' का 'अ' होता है। जैसे- मुकुलम् मडलं और मउलो। मुकुरम् मउरं। मुकुटम् मउड। अगुरुम् अगरूं। गुर्वी गुरुई। युधिष्ठिरः-जहुठ्ठिलो और जुहुठ्ठिलो। सौकुमार्यम् सोअमल्ला गुडूची-गलोई। इस प्रकार इन शब्दों को मुकुल आदि में जानना। किन्हीं किन्हीं शब्दों में आदि 'उ' का 'आ' भी हो जाया करता है। जैसे-विद्रुतः विद्दाओ। इस 'विद्दाओ' शब्द में आदि 'उ' का 'आ' हुआ है। ऐसा ही अन्यत्र भी जानना। ___ मुकुलम् संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप मउलं होता है। इनमें सूत्र-संख्या १-१०७ से आदि 'उ' का 'अ'; १-१७७ से 'क्' का लोप; ३-२५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्तिः और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'मउलं' रूप सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप से लिंग के भेद से पुल्लिग मान लेने पर ३-२ से प्रथमा के एकवचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर मउलो रूप सिद्ध हो जाता है। ___मुकुरं संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'मउर होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१०७ से आदि 'उ' का 'अ'; १-१७७ से 'क्' का लोप; ३-२५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'मउरं रूप सिद्ध हो जाता है। ___ मुकुटं संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'मउड' होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१०७ से आदि 'उ' का 'अ'; १-१७७ से 'क्' का लोप; १-१९५ से 'ट' का 'ड'; ३-२५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर मउडं रूप सिद्ध हो जाता है।
अगुरुं संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'अगरु' होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१०७ से आदि 'उ' का 'अ'; ३-२५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर अगरूं रूप सिद्ध हो जाता है।
गुर्वी संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'गरुई' होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१०७ से 'उ' का 'अ'; २-११३ से 'वी' का 'रूवी; १-१७७ से प्राप्त 'रूवी' में से 'व्' का लोप होकर 'गरुई रूप सिद्ध हो जाता है।
जहुठ्ठिलो और जहिढिलो शब्दों की सिद्धि सूत्र-संख्या १-९६ की गई है।
'सौकुमार्यम्' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'सोअमल्लं' होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१०७ से 'उ' का 'अ'; १-१७७ से 'क्' का लोप; १-१५९ से 'औ' का 'ओ; १-८४ से 'आ' का 'अ'; २-६८ से 'र्य' का द्वित्व 'ल्ल'; ३-२५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'सोअमल्ल' रूप सिद्ध हो जाता है।
गुडूची संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप गलोई होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१०७ से आदि 'उ' का 'अ'; १-१२४ से 'ऊ' का 'ओ'; १-२०२ से 'ड' का 'ल'; १-१७७ से 'च्' का लोप होकर 'गलोई रूप सिद्ध हो जाता है।
'विद्रुतः संस्कृत विशेषण है। इसका प्राकृत रूप 'विदाओ' होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७९ से 'र' का लोप; १-१०७ की वृत्ति से 'उ' का 'आ'; २-८९ से 'द' का द्वित्व 'द'; १-१७७ से 'त्' का लोप; और ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'विद्दाओ' रूप सिद्ध हो जाता है।||१-१०७।।
वोपरौ ॥ १-१०८।। उपरावुतोद् वा भवति। अवरिं। उवरि।।
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