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80 : प्राकृत व्याकरण
बिभीतकः संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप बहेडओ होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-८८ से 'इ' का 'अ'; १-१८७ से 'भ' का 'ह'; १-१०५ से 'ई' का 'ए'; १-२०६ से 'त' का 'ड'; १-१७७ से 'क्' का लोप; और ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' होकर बहेडओ' रूप सिद्ध हो जाता है।
हरिद्रा संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप हलिद्दी और हलिद्दा होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १-२५४ से असंयुक्त 'र' का 'ल'; २-७९ से द्र के 'र' का लोप; २-८८ से 'द' का द्वित्व 'द्द' ३-३४ से 'आ' की विकल्प से 'इ'; और ३-२८ से प्रथमा के एकवचन में स्त्रीलिंग में हलद्दी रूप सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप में हे ०२-४-१८ से प्रथमा के एकवचन में स्त्रीलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'आ' होकर 'हलद्दा' रूप सिद्ध हो जाता है।।१-८८।।
शिथिलेगदे वा।। १-८९।। __ अनयोरादेरितोद् वा भवति।। सढिला पसढिला सिढिलं। पसिढिल।। अङ्गुअं इङगुआ। निर्मित शब्दे तु वा आत्वं न विधेयम्। निर्मात निर्मित शब्दाभ्यामेव सिद्धेः।।
अर्थः- शिथिल और इंगुद शब्दों में आदि 'इ' का विकल्प से 'अ होता है। जैसे-शिथिलम्-सढिलं और सिढिलं। प्रशिथिलम्=पसढिलं और पसिढिलंइंगुदम् अंगुअं और इंगुआ। निर्मित शब्द में तो विकल्प रूप से 'इ' का 'आ' करने की आवश्यकता नहीं है। निर्मात संस्कृत शब्द से निम्माओ होगा; और निर्मित शब्द से निम्मिओ होगा। अतः इनमें आदि 'इ' का 'अ' ऐसे सूत्र की आवश्यकता नहीं है।
शिथिलमं संस्कृत विशेषण है। इसके प्राकृत रूप सढिलं और सिढिलं होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १-८९ से आदि 'इ' का विकल्प से 'अ'; १-२६० से 'श' का 'स'; १-२१५ से 'थ' का 'ढ'; ३-२५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर क्रम से सढिलं और सिढिलं रूप सिद्ध हो जाते हैं।
प्रशिथिलम् संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप पसढिलं और पसिढिलं होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या २-७९ से 'र' का लोप; १-८९ से आदि 'इ' का विकल्प से 'अ'; १-२६० से 'श' का 'स'; १-२१५ से 'थ' का 'ढ'; ३-२५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर क्रम से पसढिलं और पसिढिलं रूप सिद्ध हो जाते हैं।
इंगुदम संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप अंगुअं और इंगुअं होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १-८९ से 'इ' का विकल्प से 'अ'; १-१७७ से 'द्' का लोप; ३-२५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर क्रम से अंगुअं और इंगुअंरूप सिद्ध हो जाता है।।१-८९।।
तित्तिरौरः।।१-९०॥ तित्तिरिशब्दे रस्येतोद् भवति ।। तित्तिरो ।। अर्थ :-तित्तिरि शब्द में 'र' में रही हुई 'इ' का 'अ' होता है। जैसे-तित्तिरिः तित्तिरो ।। तित्तिरिः संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप तित्तिरा होता है। इसमें सूत्र-संख्या-१-९० से 'रि' में रही हुई 'इ' का ''; और ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ प्रत्यय होकर तित्तिरा रूप सिद्ध हो जाता है।।१-९०।।
इतो तो वाक्यादौ।। १-९१।। वाक्यादिभूते इति शब्दे यस्तस्तत्संबन्धिन इकारस्य अकारो भवति।। इअ जम्पि आवसणे। इअ विअसिअ-कुसुमसरो।। वाक्यादाविति किम्। पिओति। पुरिसो ति।।
अर्थ :-यदि वाक्य के आदि में 'इति' शब्द हो तो; 'ति' में रही हुई 'इ' का 'अ' होता है। जैसे इति कथितावासाने
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