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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 77
से 'न' का ‘णा'; २-७९ से 'र' का लोप; ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर मुणिन्दो रुप सिद्ध हो जाता है।
तीर्थम्: -संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप तित्थं होता है। इसमें सूत्र-संख्या-१-८४ से 'ई' की 'इ'; २-७९ से 'र' का लोप; २-८९ से 'थ' का द्वित्व 'थ्थ'; २-९० से प्राप्त 'थ्' का 'त्'; ३-२५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म् प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर तित्थं रूप सिद्ध हो जाता है।
गुरूल्लापा:- संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप गुरूल्लावा होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-८४ से 'ऊ' का 'उ'; १-२३१ से 'प' का 'व'; ३-४ से प्रथमा के बहुवचन मे पुल्लिग में 'जस्' प्रत्यय का लोप; ३-१२ से लुप्त जस्' के पूर्व में रहें हुए 'अ' का 'आ' होकर गुरूल्लावा रूप सिद्ध हो जाता है।
चूर्णः- संस्कृत शब्द है इसका प्राकृत रूप चुण्णो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-८४ से 'ऊ' का 'उ'; २-७९ से 'र का' लोप; २-८९ से 'णा' का 'पणा'; ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' होकर चुण्णो रूप सिद्ध हो जाता है।
नरेन्द्रः- संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप नरिन्दो होता है। इसमें सूत्र-संख्या-१-८४ से 'ए' की 'इ'; २-७९ से 'र' का लोप; और ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर नरिन्दो रूप सिद्ध हो जाता है।
म्लेच्छ;- संस्कृत शब्द है। इसका इसका प्राकृत रूप मिलिच्छो होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-१०६ से 'ल' के पूर्व में याने 'म्' में 'इ' की प्राप्ति ; १-८४ से 'ए' की 'इ'; ३-२ से प्रथम के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर मिलिच्छो रूप सिद्ध होता जाता है।
दृष्टैक (दृष्ट+एक) संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप दिटिक्क होता है इसमें सूत्र संख्या १-१२८ से 'ऋ' की 'इ'; २-३४ से 'ष्ट' का 'ठ'; २-८९ से प्राप्त 'ठ' का द्वित्व 'ट्ठ'; २-९० से प्राप्त पूर्व 'ठ' का 'ट्'; १-८४ से 'ए' की 'इ'; २-९९ से 'क' का द्वित्व 'क्क'; १-१० से 'ठ' में रहे 'अ' का लोप; और 'ठ' में 'इ' की संधि होकर दिट्ठिक्क रूप सिद्ध हो जाता है।
स्तन संस्कृत शब्द है; इसका प्राकृत रूप थण होता है इसमें सूत्र-संख्या २-४५ से 'स्त' का 'थ'; और १-२२८ से 'न' का 'ण' होकर 'थण' रूप सिद्ध हो जाता हैं
वृत्तम् संस्कृत शब्द है इसका प्राकृत रूप वढें होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१२६ से 'ऋ' का 'अ'; २-२९ से 'त्त' का 'ट'; २-८९ से शेष 'ट' का द्वित्व 'दृ'; ३-२५ से प्रथमा के एक वचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर वटै रूप सिद्ध हो जाता है। ___ अधरोष्ठः संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप अहरुटुं होता है। इसमे सूत्र संख्या -१-१८७ से 'घ'; का 'ह'; १-८४ से 'ओ' का 'उ'; २-३४ 'ष्ठ' का 'ठ'; २-८९ से प्राप्त 'ठ' का द्वित्व'ठ्ठ'; २-९० से प्राप्त पूर्व 'ठ' का 'ट'; ३-२५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'अहरुटुं रूप सिद्ध हो जाता है।
नीलोत्पलम् संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप नीलुप्पलं होता है इसमें सूत्र संख्या १-८४ से 'ओ' का 'उ'; २-७७ से 'त' का लोप: २-८९ से 'प' का द्वित्व 'प्प': ३-२५ से प्रथमा के एकवचन में नपसंकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर नीलुप्पलं रूप सिद्ध हो जाता है।
आकाशम् संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप आयासं होता है। इसमें सूत्र संख्या-१-७७ से 'क्' का लोप; १-८० से शेष 'अ' का 'य'; १-२६० से 'श' का 'स'; ३-२५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'आयासं रूप सिद्ध हो जाता है।
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