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________________ 76 : प्राकृत व्याकरण 'आली' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'ओली' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-८३ से 'आ' का 'ओ' होकर 'ओली' रूप सिद्ध हो जाता है। आली संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'आली' ही होता है।।१-८३।। हस्व संयोगे ॥ १-८४ ।। दीर्घस्य यथादर्शनं संयोगे परे हस्वो भवति। आत्। आम्रम्। अम्ब।। ताम्रम्। तम्ब।। विरहाग्निः। विरहग्गी।। आस्यम्। अस्स।। ईत्। मुनीन्द्रः। मुणिन्दो।। तीर्थम्। तित्थ।। ऊत्। गुरुल्लापाः गुरूल्लावा।। चूर्णः चुण्णो।। एत्। नरेन्द्रः। नरिन्दो॥ म्लेच्छः। मिलिच्छो।। दिठिक्क-थण-वटै।। ओत् अधरोष्ठः अहरूटुं।। नीलोत्पलम्। नीलुप्पल।। संयोग इतिकिम् आयासं। ईसरो। ऊसवो। अर्थः-दीर्घ स्वर के आगे यदि संयुक्त अक्षर हो तो; उस दीर्घ स्वर का हस्व स्वर हो जाया करता है। 'आ' स्वर के आगे संयुक्त अक्षर वाले शब्दों का उदाहरण; जिनमें कि 'आ' का 'अ' हुआ है। उदाहरण इस प्रकार है:- आम्रम्-अम्ब।। ताम्रम्=तम्ब।। विरहाग्निः-विरहग्गी।। आस्यम्-अस्सं। इत्यादि।। ___ 'ई' स्वर के आगे संयुक्त अक्षर वाले शब्दों के उदाहरण; जिनमें कि 'ई' की 'इ' हुई है। जैसे कि-मुनीन्द्रः- मुणिन्दो।। तीर्थम् तित्थं।। इत्यादि।। 'ऊ' स्वर के आगे संयुक्त अक्षरों वाले शब्दों के उदाहरण; जिनमें कि 'ऊ' का 'उ' हुआ है। जैसे कि-गुरूल्लापाः-गुरुल्लावा।। चूर्णः चुण्णो।। इत्यादि। 'ए' स्वर के आगे संयुक्त अक्षर वाले शब्दों के उदाहरण; जिनमें कि 'ए' का 'इ' हुआ है। जैसे नरेन्द्रः नरिन्दो।। म्लेच्छ: मिलिच्छा।। दृष्टेक स्तन वृत्तम् दिट्ठिक्क-थण-वद।। 'ओ' स्वर के आगे संयुक्त अक्षर वाले शब्दों के उदाहरण; जिनमें कि 'ओ' का 'उ' हुआ है। जैसे अधरोष्ठः अहरुटुं।। नीलोत्पलम् नीलुप्पलं।। ___ संयोग अर्थात् 'संयुक्त अक्षर' ऐसा क्यों कहा गया है ? उत्तर-यदि दीर्घ स्वर के आगे संयुक्त अक्षर नहीं होगा तो उस दीर्घ स्वर का हस्व स्वर नहीं होगा। जैसे-आकाशम् आयासं। ईश्वर-ईसरो और उत्सवः ऊसवो। वृत्ति में यथा दर्शनं शब्द लिखा हुआ है; जिसका तात्पर्य यह है कि यदि शब्दों में दीर्घ का हस्व किया हुआ देखा जावे तो हस्व कर देना; और यदि दीर्घ का हस्व नहीं किया हुआ देखा जावे तो हस्व नहीं करना; जैसे-ईश्वरः ईसरो; और उत्सवः ऊसवो। इनमें 'ई' और 'ऊ' दीर्घ है; किन्तु इन्हें हस्व नहीं किया गया है। 'आम्रम्: संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'अम्ब होता है। इसमें सूत्र संख्या १-८४ से 'आ' का 'अ'; २-५६ से 'म्र' का 'म्ब'; ३-२५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; १-२३ से प्राप्त 'म' का अनुस्वार होकर 'अम्ब रूप सिद्ध हो जाता है। ताम्रमः संस्कृत शब्द है; इसका प्राकृत रूप तम्बं होता है; इसमें सूत्र-संख्या १-८४ से 'ता' के 'आ' का 'अ'; २-५६ से 'म्र का 'म्ब'; ३-२५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर तम्बं रूप सिद्ध हो जाता है। विरहाग्निः संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप विहग्गी होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-८४ से 'आ' का अ; २-७८ से 'न' का लोप; २-८९ से 'ग' का द्वित्व 'ग्ग' और ३-१९ से प्रथमा के एकवचन में स्त्रीलिंग से 'सि' प्रत्यय के स्थान पर हस्व स्वर दीर्घ होकर 'विरहग्गी' रूप सिद्ध हो जाता है। आस्यम्: संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप अस्सं होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-८४ से 'आ' का 'अ'; २-७८ से 'य्' का लोप; २-८९ से 'स' का द्वित्व स्स'; ३-२५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर अस्सं रूप सिद्ध हो जाता है। मुनीन्द्रः संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप मुणिन्दो होता है। इसमें, सूत्र-संख्या-१-८४ से 'ई' की 'इ'; १-२२८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001942
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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