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________________ [६८] आश्विन वदी १ आत्मसिद्धि-दिन और प्रभुश्रीजीके जन्मदिनपर भी उस वर्ष पर्युषण पर्वकी ही भाँति उल्लासपूर्वक बाहर गाँवसे आये लगभग चारसौ मुमुक्षुओंने भाग लिया, भक्ति महोत्सव चतुर्दशीसे दूज तक चार दिन चला। १५ परमकृपालु श्रीमद् राजचंद्र-जयंतीका महोत्सव सं.१९७६ कार्तिक सुदी पूर्णिमासे आठ दिन तक संदेसर गाँवमें मनानेका निश्चित हुआ। उस अवसरपर श्री लघुराज स्वामी भी चातुर्मास पूरा कर सीमरडासे संदेसर पधारे थे। जिस परम उल्लासभावसे उनकी उपस्थितिमें भक्ति हुई थी उसका वर्णन भाईश्री रणछोड़भाईके नामसे श्री रत्नराजको पत्रमें लिखा है, वह निम्न प्रकार है "...विशाल मण्डप बनाया गया था, जिसमें लगभग चार हजार लोग बैठ सकें ऐसी व्यवस्था थी। बीचमें चौक बनाकर चारों ओर प्रदक्षिणाके लिए खुला भाग रखा गया था। उसके चारों ओर आनेवाले मनुष्योंके बैठनेका स्थान था। पटेल जीजीभाईके खेतके बीच जो मंडपकी रचना की गयी थी उसे देखकर अनेक जीव आश्चर्यचकित होते थे। काँग्रेसके और वैसे ही प्रकारके मण्डप अन्य स्थानोंपर बने होंगे उन्हें जिन्होंने देखा था, वे भी इस मण्डपको देखकर चकित होते थे और कहते थे कि लाख रुपये खर्च करनेपर भी ऐसा मण्डप बनना संभव नहीं। ऐसा सरस मण्डप सत्पुरुषकी भक्ति-आत्मकल्याणके लिए, अपने आत्माके अंतरकी लगनसे भावपूर्वक काम करनेपर तैयार हुआ है जो हजारों लोगोंसे नित्य काम करवानेपर भी नहीं बन सकता जैसा कि चित्रकारका रंगभवन । लगभग पचास मुमुक्षु भाइयोंने पहलेसे आकर रातदिन अखण्ड परिश्रम कर और पू. छोटाभाई आदिने भक्तिभावसे परिश्रम कर तैयार किया था...रचना ऐसी हुई थी कि पूर्व कालमें देवता भगवानके समवसरणकी रचना करते थे ऐसा शास्त्रसे जाना था किन्तु वैसी रचना प्रत्यक्ष देखनेका अवसर सहज ही परमकृपालु स्वामीश्रीजीके योगबलसे नैसर्गिकरूपमें प्राप्त हुआ था। आत्मा, आत्मा और आत्मा ही झलक रहा था। ज्ञानीपुरुषकी दृष्टिसे देखा गया है जी। अधिक क्या कहें, प्रभु? उत्सवके समूहभोजमें लगभग एक हजार लोग होंगे। (सभी बाहर गाँवके ही थे)। मुमुक्षुमण्डलके लगभग पाँच-पाँचसौ व्यक्ति आठ दिन तक निरंतर भक्तिमें रहे थे। उसमें मुख्यतः मुंबई, डभोई, सूरत, मंडाला, मांगरोल, वडाली, खंभात, बोरसद, नडियाद, सोजित्रा, वसो, भादरण, ओड, सुणाव, बांधणी, वटामण, काविठा, गोधावी, अहमदाबाद, नरोडा, सीमरडा, नार आदि तथा आसपासके अनेक गाँवोंके भाई-बहनोंने भक्तिका लाभ लिया है। भक्तिके समय करीब पाँच हजार लोग इकट्ठे होते थे और आसपासके गाँवोंकी भक्तमण्डलियाँ तथा संदेशरमेंसे महाराजश्री प्रीतमदासकी मण्डली रातमें आती थी। प्रतिदिन पंचकल्याणक, नवपदकी तथा चौसठ प्रकारी पूजामेंसे तथा श्री आत्मसिद्धिकी पूजा पढ़ाई जाती थी। और, भक्तिभावके पद भी बोले जाते थे जिससे परम आनन्द होता था। रातमें महिलाएँ पूरे उल्लाससे सिरपर दीपकवाली मटकियाँ लेकर मण्डपमें गरबे गातीं। मण्डपमें गेसकी किट्सनलाइट थी जिससे पूरे प्रकाशमें बहुत ही-परम उल्लाससे भक्ति महोत्सव मनाया गया था।... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001941
Book TitleUpdeshamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShrimad Rajchandra Ashram Agas
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year2004
Total Pages594
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, sermon, & Rajchandra
File Size13 MB
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