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उपदेशसंग्रह-३
३९१ सभी दिन बिताते हैं। इतने वर्ष बीत गये और बीत रहे हैं। आत्मा तो वैसाका वैसा ही है। आत्मामें क्या कम-अधिक हुआ? देर कितनी है? समझ चाहिये।
“सद्गुरुना उपदेश वण, समजाय न जिनरूप;
समज्या वण उपकार शो? समज्ये जिन स्वरूप." समझ तो चाहिये ही। यह हमारा टूटा-फूटा बोलना होता है पर इसमें कुछ फेरफार न समझें। गुरुकृपासे, शरणसे समझमें आता है। आपका प्रश्न-"गुरुगम क्या है?" वह स्मृतिमें आता है। इसका अर्थ समझे बिना क्या पता चलेगा? यह समझ सद्गुरुका बोध सुननेसे आती है। बोध सुने उसे समझ आती है। योग्यतानुसार वह समझ लेता है, योग्यतावालेको समझमें आता है, अन्यको नहीं। जीवकी योग्यता हो उतना समझमें आता है। योग्यता चाहिये।
सबसे बड़ी बात यह है कि सत्संग और बोध-ये दो रखें। चाहे जैसे, चाहे जहाँसे ये दो प्राप्त करें। यही मुख्य काम है। इसीमें सब है, तभी समझमें आयेगा। आत्मा है, आत्माकी सत्ता है तो यह ज्ञात होता है, दिखायी देता है।
दुःख होता है वह कर्म है। कर्म तो चला जाता है, छूट जाता है, वह आत्मा नहीं है। पर समझमें नहीं आता, क्योंकि कमी है। बोध और समझकी जरूरत है। बोध चाहिये।
“एगं जाणइ से सव्वं जाणइ।' सद्गुरुसे एक आत्माको जाना तो बस है, सब जान लिया। आत्माको जान लें।
ये सब तो संयोग हैं, बाँधे हुए हैं। वीतरागमार्ग सबसे बड़ा है। कर्म तो जानेवाले हैं, जा रहे हैं-इनका स्वभाव यही है । आत्मा तो शाश्वत है। वह आत्मा जाता नहीं।
प्रारब्धानुसार इतना बोला गया, बात सुनायी गयी। अशक्ति इतनी है कि बोला नहीं जाता। आयुष्यकी डोरी हो तो बचे । कुछ भी अच्छा नहीं। देह तो छूट जायेगी, आत्मा शाश्वत है। हमें तो एक सद्गुरुकी शरण है, इसलिये आत्माकी बात करते हैं जिसमें कोई परिवर्तन नहीं होगा।
__ 'आणाए धम्मो आणाए तवो' सद्गुरुके वचन-परमकृपालुदेवके वचनामृतका ही आधार है। वे ही पढ़ें, विचार करें और हृदयमें उतार दें। आत्मा होकर आत्मा बोला, आराधन किया तो बस! किसे कहें? अधिकारीको कहा जाता है। आप दृष्टिवाले हैं तो मानेंगे, मान्य होगा। एक परमकृपालुदेवकी ही श्रद्धा, पकड़ कर लें, यही एक कर्तव्य है। यह न भूलें । यही पकड़ लेना है, सयाने हुए बिना। 'मैं कुछ भी नहीं जानता, मैं कुछ भी नहीं समझता, उन्होंने कहा वह सत्य है।' ऐसी पकड़ कर लें। यह प्राप्त हो और परिणत हो जाय तो काम बन जायेगा। बस यही। परमकृपालुदेवकी श्रद्धा कर लेवें। अन्य न माने। अन्य तो पर है, कर्म है, पर्याय है, आत्मा नहीं। सब छूट जायेगा, इसे मत छोड़ना। आप सब एकत्रित होकर परमकृपालुदेवके वचनामृत पढ़ें, विचार करें, वह सत्संग है। यही कर्तव्य है।
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