________________
३९०
उपदेशामृत नहीं। दिन भी हुए। बुढ़ापा भी आया । जन्म-मरणका विकल्प न करें। जन्म-मरण तो व्यवहार है। जन्म-मरण हो तो भी क्या? न हो तो भी क्या? यह तो कर्म है। आत्मासे क्या संबंध? आत्मा तो भिन्न है। निश्चयसे आत्मा जैसा है वैसा है। उसमें कुछ भेद पड़ा है? ऐसा है, फिर क्या बात है? कुछ नहीं।
जो मिले हों वो.याद आते हैं। क्षेत्र-स्पर्शना । यह स्थान मिला तो यह, नासिक तो नासिक । हे प्रभो! मुंबईको तो नमस्कार, गजब किया है! न जाने कहाँसे इतने सारे लोग आये होंगे, स्टेशन पर । पर सबको समझ कहाँ है?
- समझदार तो जो होते हैं वे ही होते हैं। समझ ही काम करती है। समझ लेना है। हे भगवान! मैं क्या करूँ? मैं तो थक गया, मैं कुछ भी नहीं जानता; गुरुका ही प्रताप है। अतः कदापि दुःख हो तो भी क्या? न हो तो भी क्या? समझ चाहिये । हे भगवान! मैं कुछ भी नहीं जानता। 'एक विठ्ठलवरका वरण करें।' बस हो गया। वह जो है सो है। - आत्माके सिवाय अन्यको कुछ कहा जा सकता है? आत्माके सिवाय अन्य कोई उसे मान सकता है? समझ तो जितनी भी हो, आत्माको ही कहा जाता है। दूसरेको कहा जायेगा या वह मान्य करेगा? चाहे जितना क्षयोपशम हो, पर उसमें भी भेद-क्षयोपशमसे क्या पता चलेगा? क्षयोपशम आत्मा नहीं है, उसे आत्मा मान बैठते हैं। वे तो सब संयोग हैं। आत्मा गुड्डे-गुड्डीका खेल नहीं है।
फिर संकल्प-विकल्प क्यों आते हैं? संकल्प-विकल्प तो आते हैं, कर्म हो तब तक आते हैं, वे कर्मके हैं, आत्माके नहीं। कर्म न हो तो कुछ नहीं, कर्म हों तो हों-सबको भोगने ही पड़ेंगे। कर्म जो भी होंगे उन्हें सबको भोगना ही पड़ेगा। जितनी लेन देन शेष हो वह करनी ही पड़ेगी। छप्पन कोटि यादवोंने भी चित्रविचित्र देखा, भोगा! उस ओर देखें ही नहीं। एक आत्मा ही देखें। अन्य तो 'थावं होय ते थाजो, रूडा राजने भजीओ।'
__ साता असाता जो पूर्वबद्ध है, वह जीवको आती रहती है, जैसे दिन और रात आते रहते हैं। जैसे दिन है वह दिन ही है, दिन रात नहीं होता और रात दिन नहीं होती। वैसे ही साता असाता वह आत्मा नहीं और आत्मा वह साता-असाता नहीं-कर्मका भोग है। जीव उसे अपना मान बैठा है। कोई एक सद्गुरु मिले और बाणसे बींधकर मारे तो अंतरमें आरपार उतर जाय ।
"अगोहं णस्थि मे कोई, नाहं अन्नस्स कस्सइ। एवं अदीणमणसो अप्पाणमणुसासइ ॥ एगो मे सस्सदो अप्पा णाण-दसणलक्षणो।
सेसा मे बाहिरा भावा सव्वे संजोगलक्खणा ॥" आत्मा शाश्वत है, यह कोई इसके नहीं हैं यह निश्चय जानें। इस आत्माको तो सम्यग्दृष्टि समदृष्टि ज्ञानीपुरुषोंने जाना है। उन ज्ञानीपुरुषोंने जो बताया है, दिखाया है, वह सत्य है। जड़ तो जड़ है और चेतन चेतन है। जड़ चेतन नहीं हो सकता और चेतन जड़ नहीं हो सकता। यह निश्चित जानें।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org