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उपदेशसंग्रह-३
३४९ जेलमें पड़े हो, बंदी हुए हो, जैसे-तैसे समय पूरा कर रहे हो। बहुत दुःख है संसारमें। अब यदि आत्मज्ञान नहीं हुआ तो दुःख मिटनेवाला नहीं है। अतः प्राप्त योगको सफल बनानेके लिये जाग्रत हो जाओ। मोहनिद्राको दूर करो। इन्द्रियोंरूपी शत्रुओंको शत्रु समझकर उन्हें पराजित करो।
ज्ञान, ध्यान आत्मा है। विचार, ध्यान आत्मा है। सत्संगमें बोध श्रवण होता है, वहाँ जो लाभ होता है वह दिखायी नहीं देता। अभी हजार-दो हजार रुपयोंका लाभ हो तो वह दिखायी देता है। ऐसे लाभके लिये जीव दौड़कर जाता है। पर यहाँ कर्म नष्ट हो जायें, भव कट जायें, ऐसी कमाई है वह दिखायी नहीं देती। इसलिये जीवको सत्संगके प्रति विश्वास, प्रेम, उल्लास, अलौकिक भाव नहीं आता।
संकल्प-विकल्पने बुरा किया है। मन थोड़ी देर भी बेकार नहीं रहता। कर्मके ढेर बाँधता रहता है। कोई व्यापारी हो वह पत्र लिखे कि पचास मटके गुड़ भेजना, दोसौ-पाँचसौका अमुक माल भेजना। यों पूरा पत्र अमुक अमुक वस्तुएँ भेजनेके विषयमें भरा हो, किन्तु अंतिम पंक्तिमें लिख दे कि उपरोक्त कोई भी वस्तु मत भेजना, तो? पूरा लिखा हुआ पत्र बेकार हो गया। वैसे ही यह जीव संकल्प-विकल्पसे कर्मके ढेर बाँधता रहता है कि ऐसा करूँ और वैसा करूँ। ऐसेमें सत्संगमें सुना हुआ एक वचन यदि याद आ जाये तो मन वैसी कल्पनाएँ करनेमें मंद पड़ जाता है या उदासीन हो जाता है। वहाँ आत्मभावकी ओर मुड़े तो आस्रवमें संवर होता है। कमाईका ढेर लग जाता है। यों सत्संगमें सुना हुआ बोध जीवका अपूर्व हित करनेवाला है।
ता. १०-६-३४ उपयोग आत्मा है। अतः उसे पहचानो। सहज सुख आत्मामें है। उपयोगको आत्माकी ओर मोड़ने पर सहज सुख प्रकट होता है। अभी वह उपयोग शुभ या अशुभ है, शुद्ध नहीं है। जगतमें जहाँ-तहाँ परपदार्थों में, इन्द्रियविषयोंमें भटकता है, जिससे बंधन हुए हैं, भवभ्रमण हुए हैं। मन, वृत्ति जहाँ-तहाँ भटकती है। अतः मनको जीतो, वृत्तियोंको रोको । जगतके पदार्थों से उपयोगको आत्मामें लाओ। 'सहु साधन बंधन थयां ।' ___आत्मा देखो। हड्डी-चमड़ी लेकर सब घूम रहे हो; अतः हड्डी-चमड़ी आदि बाह्य पदार्थ न देखकर उन सबको देखनेवाले और जाननेवाले आत्माको देखेंगे तो लाभके ढेर लग जायेंगे, रागद्वेष नहीं होंगे।
__ मुमुक्षु-उपयोगको आत्मामें कैसे लाया जायें ? आत्माको तो जाना नहीं है। तब सबसे उठाकर उसे कहाँ लगायें ?
प्रभुश्री-उपयोगको आत्मामें लगायें-जब तक आत्माको नहीं जाना है तब तक जिसने आत्माको जाना है ऐसे ज्ञानीमें विश्वास रखें और फिर वैसे भेदी बतायें वहाँ (उपयोगको लगायें।)
पर कमी किसकी है? वैराग्यकी, बोधकी। प्रमाद, आलस्य और वृत्तियाँ भटकती है उन्हें रोकें । 'कर विचार तो पाम ।' 'जब जागेंगे आतमा, तब लागेंगे रंग।' मोहनिद्रामें सो रहा है, उसे जाग्रत करें।
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