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________________ उपदेशसंग्रह-२ ३११ तुम क्या करोगे?" उसने कहा-"इसमें क्या? अपने पास तो लाख मत हैं। इस वृक्ष पर चढ़ जाऊँगा तो भी कुछ नहीं होगा।" खरगोश भाईसे पूछा तो उसने कहा, "मेरे पास तो सौ मत हैं। इस बिलमें घुस जाऊँ तो फिर आग क्या करेगी?" फिर सियारने सोचा कि मेरे पास तो छिपनेका कोई स्थान नहीं है और आग तो सुलगती हुई मेरे पास तक आ पहुँची है; अतः जिस ओर आग नहीं है उस ओर भाग जाऊँ-यह सोचकर वह एक-दो कोस दूर भाग गया। साँप तो ऊँचे वृक्ष पर चढ़ गया, खरगोश बिलमें घुस गया। दो दिन बाद आग शांत होने पर सियार मित्रोंका पता लगाने आया। उसने वृक्ष तो पहचाना, पर साँप नहीं मिला। ऊपर देखा तो शाखासे लिपटा हुआ साँपका मृत शरीर नजर आया। फिर खरगोशको ढूँढने बिलके पास गया, पर वहाँ तो राख थी। उसे दूर करके देखा तो बिलमें पूँछ जैसा दिखायी दिया। खींचकर निकाला तो झुलसा हुआ खरगोशका मुर्दा शरीर था। तब सियार बोला *"लाख मत लबडी. सो मत ससडी%B ___ एक मत आपडी के ऊभे मार्गे तापडी." यह तो परमार्थ समझनेके लिये दृष्टांत है। चाहे जहाँ नहीं घुस जाना चाहिये । एक सच्चे पुरुषके बताये हुए मार्ग पर ही लक्ष्य रखकर चलता जाय तो मोक्ष जाते कोई रोक नहीं सकता। एक प्रकारसे देखें तो मार्ग कितना सरल और सुगम है! फिर भी अनादिकालसे आज तक जो परिभ्रमण हुआ है वह मात्र बोधके अभावसे हुआ है। आप सब मनमें घबरा रहे थे कि क्यों कुछ बोलते नहीं ? यह पता तो लगता है, प्रभु! पर अब हमें तो कुछ भी नहीं करना ऐसा रहा करता है। मृत्युका कोई भरोसा है? किसीको कैसे लाभ होता है, और किसीको कैसे लाभ होता है; किसीको दूर रखनेसे लाभ होता है और किसीको पास रखनेसे लाभ होता है-ये सब भेद भी समझने योग्य हैं। अब शरीर पुराना छींका हो गया है तो इससे इच्छित काम कैसे हो सकता है? . मुमुक्षु-हमारे भी अंतरायकर्मका उदय है न प्रभु? प्रभुश्री-यह भी सच है। ता.१३-२-१९२६ (मिथ्यादृष्टि गुणस्थानके अंतमें कौन-कौनसी प्रकृतियोंकी व्युच्छित्ति होती है, इस विषयमें 'गोमट्टसार में से वाचनके प्रसंग पर) प्रभुश्री-अहा! मिथ्यात्व गया तो अब इतने भव परिभ्रमण नहीं होगा, ऐसा सरकारी पेंशन जैसा निश्चित हो जाता है। ___ मृत्युके समय कुछ भी भान नहीं रहता। कोई यों बुलायें कि भाई..., तो भी आँख ऊँची न करे ऐसा क्यों होता है? कुछ याद नहीं रहता इसका क्या कारण? चेतन कुछ जड़ थोड़े ही हो जाता है? पर उस समय मानो कुछ भी पता नहीं रहता! क्या वेदनासे घिर जाता होगा? क्या आवरण आ जाता होगा? समकितीको कैसे लगता होगा? १. मत-मति, बुद्धि । * लाख मत (मति) वाला साँप लटका (लबडी); सौ मतवाला खरगोश सेंका गया (ससडी); अपना (आपडी) एक मत था कि सीधे रस्ते पर भाग गया (तापडी) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001941
Book TitleUpdeshamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShrimad Rajchandra Ashram Agas
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year2004
Total Pages594
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, sermon, & Rajchandra
File Size13 MB
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