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________________ उपदेशसंग्रह-२ ३०५ इस 'तत्त्वज्ञान'में बीस दोहें हैं उन्हें कण्ठस्थ करें और नित्य बोलें। बोलते हुए ऐसी भावना करे कि 'हे प्रभु! मैं तो अनंत दोषसे भरा हुआ हूँ-क्रोध, मान, माया, लोभ, विषय, प्रमाद आदिसे मैं तो भरा हुआ हूँ।' ऐसी दीनताकी भावना करे। ये बीस दोहे बहुत समझने योग्य हैं। सब मिलाकर दस-पंद्रह मिनिट बोलते लगेंगे। सब शास्त्रोंका सार इस पुस्तकमें समाया हुआ है। 'सत्पुरुषके चरणकमलका इच्छुक', 'मूल मार्ग' इन सबमें सत् चित् और आनंद कहो या ज्ञान-दर्शनचारित्र कहो, उसकी समझ है। इसमें ‘आत्मसिद्धि' नामक शास्त्र है वह भी बहुत समझने योग्य है। समागम रखते रहें। आप ब्राह्मण हैं ? मुमुक्षु-जी हाँ। प्रभुश्री-दो सगे ब्राह्मण भाई थे। उनमेंसे बड़ा भाई अविवाहित था। उसे धर्म पर विशेष प्रेम था अतः छोटे भाईको कहकर घर छोड़कर तीर्थयात्रा करने और किसी संतको ढूँढकर आत्मकल्याणका उद्यम करने निकल पड़ा । ढूँढनेवालेको संसारमें मिल ही जाता है। किसी पहाड़ी प्रदेशमें एक आत्मज्ञानी सच्चे महात्मा उसे मिल गये, उनकी सेवामें वह रह गया। उन महात्माकी कृपासे उसे आत्मज्ञान प्राप्त हुआ, जिससे उसे यह सब (संसार) स्वप्नके समान लगने लगा। ___एक बार उसे विचार आया कि गुरुकृपासे मुझे लाभ हुआ है, पर मेरा छोटा भाई बेचारा मौजशौकमें पड़ गया है। स्त्रीकी चमड़ी सफेद होनेके कारण उसके मोहमें उसके साथ ही उठनेबैठनेमें सारा समय बिता रहा है। अतः दया लाकर उसने उसे एक वैराग्यभरा पत्र लिखा और डाकमें डाल दिया। उसके भाईने भी भाईका पत्र समझकर ऊपर-ऊपरसे देखा, किन्तु विषयासक्तको वैराग्यकी बात कैसे रुचिकर हो? अतः पत्रको एक ताक पर फेंक दिया। उसका एक मित्र वहाँ आता था उसको वह पत्र बताया। उसके भाईने उसे वैसे अठारह पत्र लिखे एकके बाद एक, पर तो ऐसा लगता कि उसका तो लिखनेका ही काम है; अतः जो भी पत्र आते उन सबको वह ताकमें डाल देता। समय व्यतीत होने पर सभी संयोग अच्छे नहीं रहते। उसकी स्त्री मर गई जिससे वह तो पागल हो गया। सब लोग समझाते, पर वह तो न खाता, न पीता और ‘मरना ही है' ऐसा बोलने लगा। उसके सगे-संबंधी चिंतित हो गये और उसके मित्रको जाकर कहा कि सोमल एक सप्ताहसे खाना नहीं खा रहा है, तुम उसको थोड़ा समझाओ न । उसका मित्र आया तो सोमल रो पड़ा और सब वैभवकी बातोंका वर्णन करने लगा। उसके मित्रने पूछा कि तुम्हारे भाईके पत्र कहाँ रखे हैं? उसने ताक बता दिया। उसमेंसे निकाल निकालकर उसका मित्र एक एक पत्र पढ़ने लगा। कुछ निमित्त बदले तो चित्तको उसमें रोकना पड़ता है। एक समयमें दो क्रियाएँ साथमें हो सकती है? जितनी देर वे पत्र सुननेमें उसका मन रुका उतनी देर वह स्त्रीकी चिंता भूल गया। सब पत्र पढ़े जाने पर उसे समझमें आया कि उसके भाईके कथनानुसार संसार क्षणभंगुर और दुःखदायी है। यह विचार आते ही सब छोड़कर पत्रमें लिखे पते पर भाईको ढूँढने निकल पड़ा। उसका भाई जंगलमें पहाड़ी प्रदेशमें रहता था। वहाँ जाकर उसके चरणोंमें अपना सिर रखकर मोक्षमार्ग बतानेकी विनती की। उन दोनों भाइयोंने धर्माराधन किया और वह सोमल ब्राह्मण मरकर देव हुआ। शुक्रका तारा उदय-अस्त दिशामें जगमगाता दिखाई देता है वहीं उसका जीव है। वह उसका विमान है। Jain Education Cotional For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001941
Book TitleUpdeshamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShrimad Rajchandra Ashram Agas
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year2004
Total Pages594
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, sermon, & Rajchandra
File Size13 MB
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