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________________ २८८ उपदेशामृत गुरु था वह कुत्ता रह जाता है, इस प्रकार जो बुराईको छोड़ देता है उसे लाभ होता है । बतानेवालेको चिपक नहीं जाना चाहिये, सच पर ही रहना चाहिये । समकितीके लक्षण १. पहले आत्मा देखें । २. किसी भी क्रियामें पहले दयाकी भावना रखें। ता. १९-१-२६ अंतरायकर्मकी परीक्षाके लिये महा मुनि क्या क्या करते हैं? अमुक प्रकारका आहार, अमुक दान देनेवाला, अमुक पात्रमें हो तो ही लेना आदि अभिग्रहका क्या तात्पर्य है ? इस देहको अपनेसे भिन्न समझकर उसकी पर्वाह नहीं करना, न चलने पर बद्धकर्मका उदय हो तो ही उसे पोषण देना । पर यह जीव तो उसके लिये कितने-कितने संकल्प - विकल्प, तृष्णा और अनर्थ- दंडसे कर्मबंध किया करता है? जिस सुखके लिये वह तड़फ रहा है वह तो अंतरायकर्मके टूटने पर ही प्राप्त होता है । उसके बिना तो भले ही शक्ति लगाकर मर जाय तो भी काम नहीं बनता । साता, वैभव, बाल-बच्चे, स्त्री, धन, कुटुंब, परिग्रह आदिके लिये जितनी तीव्र इच्छा करता है, वे सब बंधके कारण हैं । अंतराय टूटे बिना उनकी प्राप्ति नहीं होती, नासमझीसे व्यर्थ ही दंडित होता है । एक सत्पुरुषके सिवाय कहीं सुख नहीं है । उसने जाना वही सच्चा सुख है । उसकी शरण, उसकी भावना करनी चाहिये । योग, कषाय और इंद्रियाँ राक्षस जैसे हैं । उन्हें मारनेकी जरूरत है । श्रीकृष्ण महाराजने राक्षसोंको मारा उनमें से एक रह गया था उसीने यह सब तूफान किया, ऐसी यह कथा है । अनादि कालके इन शत्रुओंके साथ युद्ध कर उन्हें पराजित करना है। आत्माने ही यह सब किया है न ? कर्म किसने बाँधे हैं? किसी अन्यको दोष देनेकी जरूरत नहीं है । जब आत्मा शूरवीर होगा तभी काम बनेगा | ता. १७-१-२६ ['गोमट्टसार 'मेंसे लेश्या मार्गणाके गति अधिकारके वाचन प्रसंग पर] मृत्युका विचार किये बिना उद्यमशील हो जाना चाहिये । मृत्यु जैसे आनी हो वैसे भले आये । किया हुआ कुछ निष्फल जानेवाला है? एकेन्द्रियमेंसे आकर एक भवमें मोक्ष गये, उन जीवोंने कुछ कमाई की थी, कुछ भरकर रखा था, तभी तो फूट निकला न ? कोई कोई तो कितना संयम - पालन करके भी अंतमें हरिणके या ऐसे भवमें जाते हैं । मृत्युके समय वैसी लेश्या आनेसे या आयुष्य बंध Jain Education International ता.२०-१-१९२६ जब राम स्वर्ग सिधारनेवाले थे तब उन्होंने सभी अयोध्यावासियोंको गंगा किनारे आनेको कहा। सबके आनेके बाद नगरमें सेवकोंको भेजा कि जो कोई प्राणी अयोध्यामें रह गया हो उसे यहाँ ले आओ। मात्र वह कुत्ता नहीं आया था उसे राज्यसेवक नदी किनारे ले आये । किन्तु वह वापस चले जानेका प्रयत्न कर रहा था । तब रामने कहा कि इसे गंगामें डुबकी लगवाओ । इससे उसके सिरमें रहनेवाले कीड़ेरूप शिष्य बाहर निकल गये और रामके साथ स्वर्ग पधार गये; पर वह कुत्तारूपी गुरु यों ही रह गया । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001941
Book TitleUpdeshamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShrimad Rajchandra Ashram Agas
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year2004
Total Pages594
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, sermon, & Rajchandra
File Size13 MB
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