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उपदेशसंग्रह-२
२७७ जो कण्ठस्थ हो गया हो उसे गुनगुना लेते हैं, प्रतिक्रमण पड़पड़ कर लेते हैं, या उपयोग न रहे, कच्चा याद हो, बराबर याद न हो तो जो बोलना चाहिये उसके स्थान पर अन्य कुछ बोल जायें। ये दोनों बातें ठीक नहीं है। याद हो तो ऐसा होना चाहिये कि नींदमें हों और कोई सुनानेको कहे तो उठकर फौरन एक भी भूल किये बिना सुना दें। ध्यान रखकर बोला जाय-उपयोगशून्य उच्चारण न हो इसके लिये कभी कभी उलटे क्रमसे बोलना चाहिये, जैसे १, २, ३, ४ के स्थान पर ४, ३, २, १ की भाँति । जैसे आत्मसिद्धिका पाठ करना है और अच्छी तरह याद हो गई है तो अंतिम गाथासे आरंभकर पहली गाथा तक बोलना चाहिये। यों प्रयत्नपूर्वक अभ्यास करे तो उपयोगसहित बोला जा सकता है। .
मनको यदि थोड़ी देरके लिये भी ढीला छोड़ दिया तो वह अनर्थ कर डालेगा। अतः उसे कुछ न कुछ काममें लगाये रखना चाहिए। भगवानकी आज्ञा है कि समयमात्र भी प्रमाद नहीं करना।
ता.१४-६-२५
[पाँच समितिके विषयमें पत्रांक ७६७ का वाचन] इसमें अपूर्व बात कही गई है।
__ "प्रवचन अंजन जो सद्गुरु करे, देखे परम निधान जिनेश्वर।" इसमें प्रवचन-अंजन कहा है, वही बात इस पत्रमें है। तीन गुप्ति-मन, वचन और काया तथा पाँच समिति-आज्ञाके उपयोगपूर्वक बोलना, चलना, आहार ग्रहण करना, वस्त्र आदि लेना या रखना और निहार क्रिया (मलमूत्र त्याग आदि)-इन आठों ही कामोंमें आज्ञाका उपयोग रखकर व्यवहार करना उसे 'प्रवचन अंजन' कहा है। घटपट आदिके विषयमें बोलनेके पहले आत्माकी ओर उपयोग रहे। पहले आत्मा फिर अन्य कुछ। जहाँ दृष्टि जाये वहाँ आत्मा, आत्मा, आत्मा। रोमरोममें यही सत्य, सत्य, सत्य हो रहा है। __ अठारह दूषणसे रहित कैसा है वह देव! क्रोध नहीं, मान नहीं, माया नहीं, रति-अरति नहीं, आदि दोषोंसे रहित! वह कभी प्यासा हुआ है ? भूखा हुआ है ? रोगी है ? ब्राह्मण है? स्त्री है? पुरुष है? एकमात्र समझ बदल जाय तो चमत्कार हो जाय । “वहाँ मैं गया" कहता है वहाँ मिथ्यात्व है । 'मैं' और 'तू' भिन्न हुआ है उसे हुआ है । अन्य कुछ भी कहे तो अच्छा नहीं लगता। काशीके बड़े पंडित हों या अन्य कोई भी हों, पर एक सच्चे पुरुषकी मान्यता हो गई है, जिससे अन्य कोई अच्छा नहीं लगता। यही कर्तव्य है। ‘बात मान्यताकी है।' सत्पुरुषकी यथायोग्य प्रतीतिके बिना जीवाजीवका ज्ञान नहीं होता यह सत्य है । दूँढिया रातमें पानी नहीं रखते, आवश्यकता पड़ जाय तो मूत्र या राखसे काम चला लेते हैं। शास्त्रमें ऐसी संकुचितता क्यों रखी होगी? ऐसी शंका आचारांगका वाचन करते हुए हमें हुई थी। इसके विषयमें देवकरणजी और हमने पुछवाया था जिसका यह उत्तर है।
इसमें तो अपूर्व बातें भरी हुई हैं। तोड़फोड़ कर कही जाय तो असली मजा आये। बबूलको बाथ भींचकर कहे कि मुझे छुड़ाओ, मुझे कोई छुड़ाओ। छोड़ दे तो छूट जायेगा। सत्पुरुष तो कहकर चले जाते हैं। पंडित तो लग्न करा देगा, पर क्या वह घर भी बसा देगा?
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