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उपदेशामृत
ता. २८-१-२५ पत्रांक ११७ का वाचन
"उस पावन आत्माके गुणोंका क्या स्मरण करें? जहाँ विस्मृतिको अवकाश नहीं है वहाँ स्मृति होना भी कैसे माना जाय?" प्रभुश्री-इसका क्या परमार्थ है ?
मुनि मोहन०-बोधबीजकी बात है। जहाँ मन और वाणीकी गति नहीं है वहाँ स्मृति, विस्मृति जो मनके कारण है, उसकी गति कैसे हो सकती है? आप कुछ कहिये ।
प्रभुश्री–नय अनंत हैं। नयकी अपेक्षासे मिथ्या नहीं है । पर उनकी शरणसे अभी जो स्मरणमें आता है वह बताता हूँ। सत्पुरुषके योगसे मार्ग मिल जाता है, वस्तु समझमें आ जाती है। उसे ग्रहण करके छोड़े नहीं, उसीके लिये जीये, ऐसा कुछ समकितका रंग है! जैसे किसी वस्तुको दाग लग जाय तो वह मिटता नहीं, वैसे ही यह भी विस्मृत नहीं होता।
___“एही नहीं है कल्पना, एही नहीं विभंग;
जब जागेंगे आतमा, तब लागेंगे रंग." ऐसा रंग सौभाग्यभाईको, जूठाभाईको, हमको लगा था। कागज पर लिखी ‘अग्नि' और सच्ची अग्निमें आकाश-पातालका अंतर है। एक बार उसका स्पर्श हो जाने पर फिर कैसे भी प्रसंग आये तब भी उसे अलगका अलग ही लगता है। जूठाभाईके यहाँ भी व्यापार, सगाई-संबंध आदिके अनेक प्रश्न आये, पर वे अपने नहीं हैं ऐसा ही मानते थे। आत्महितमें ही लक्ष्य रहता था, ऐसी दशाकी प्रशंसा की है।
"क्या इच्छत खोवत सबै, है इच्छा दुःखमूल ।"
ता. २५-५-२५ आप, आप और आप सब एकत्रित हुए हैं वे संस्कार ही हैं न? ऋणानुबंधके कारण सब मिलते हैं और अलग होते हैं। सच्चा वैराग्य ही कहाँ समझमें आया है! समझमें आयेगा तब तो एक घडी भी अच्छा नहीं लगेगा। हाथी, गाय, भैंसके बच्चेका जन्म होता है तब झिल्ली आती है। उसमेंसे बच्चेको बाहर निकालना पड़ता है, आँवलमेंसे बच्चेको अलग करना पड़ता है। वैसे ही बेचारा जीव कर्मकी झिल्लीमें लिपटा हुआ है। उसे वहाँ कैसे अच्छा लग सकता है? जो अच्छा लगे उसे अच्छा नहीं लगाना और जो अच्छा न लगे उसे अच्छा लगाना-ऐसा ज्ञानीपुरुषका वचन है। दुःख आये, मृत्यु आये, चाहे जो आये, भले ही उससे अधिक आये, जितना आना हो उतना आये! यह कहाँ आत्माका धर्म है? यह बुलानेसे नहीं आयेगा और 'मत आओ, मिट जाओ, अच्छा हो जाओ' कहनेसे कम होनेवाला नहीं है, तब फिर उससे डरना क्या? ज्ञानीपुरुषोंने जैसा देखा है वैसा मेरा स्वरूप है। उन्होंने जो माना है वह मुझे मान्य है। फिर अन्य चाहे जो आये। उसे मेरा मानूँ तब तो मुझे दुःख होगा न? एक सच्चे पुरुषके मिलनेसे यह समझमें आता है, अन्यथा कौन जाने आत्माका स्वरूप क्या और कैसा है ?
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