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उपदेशसंग्रह - १
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यह बात है - 'हुं कोण छं ? क्यांथी थयो ? शुं स्वरूप छे मारुं खरुं ?' यह बात लक्ष्यमें नहीं है । कितनी भूल है ? यह ऐसी वैसी बात नहीं है । यह अवसर आया है इसलिये बात कही जा रही है । यह क्या साधारण अवसर है ? किसी भिखारीको खाना मिल जाय तो वह प्रसन्न होता है वैसा यह दृश्य है-ऐसा बन आया है ! देखिये न, बैठे हैं सभी ! निंदा नहीं करनी है - चुपचाप सुन रहे हैं। यहाँ तो पुत्रकी, स्त्रीकी, मकानकी चिंता; धन नहीं है उसकी चिंता । सारा संसार आशामें हैं - भीख, भीख और भीख ! तृष्णा है; तृष्णा मिटी नहीं । कल्पनाका थैला भरे बैठा है । इच्छा ही किया करता है । यही इसका धंधा है ! कल्पना, विकल्प, मान-बड़प्पनकी इच्छा; मनमें क्रोध भी आ जाय । अपना क्या है ? धिक्कार है उसे ! ज्ञानीका कथन भिन्न है । नाटक, सिनेमा आदि देखनेका शौक है इसलिये देखने जाता है। इससे तेरे जन्मको धिक्कार मिला ! कल वृद्ध हो जायेगा, कोई बात भी नहीं सुनेगा । मोहने बुरा किया है । सब पर मोह; महल, आभूषण, स्त्री, बच्चे देखे कि मोह, मोह और मोह ही है ! यह सब प्राप्त करनेका प्रयत्न करता है, पर यह सब तो सर्वथा नाशवंत है । ऐसी भावनाएँ करके अनर्थ कर डाला । जो वस्तु सत् है, जिसकी बात करनी है, वह नहीं करता । व्याख्यान सुनता है तो मानके लिये । सब मानके भूखे हैं । आप सेठ हैं न? आइये, आगे बैठिये । बड़े लोग हैं न? अतः आगे बैठते हैं, बातचीत करते हैं । इस मानने ही बुरा किया है, अन्यथा मोक्ष तो यहीं है। ज्ञानीपुरुषोंने बहुत बातें की हैं। हम भी बहुत बातें करते थे, ज्ञानी हाथ लग गये थे । आठ नौ साधु थे। छोटे बड़े सब समान नहीं होते। इस संसारमें सावधान किससे होना है ? किसीको पता है ? क्या है ? आप समझदार हैं, कहिये न ।
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मुमुक्षु - एक सम्यग्दर्शन प्राप्त कर लेना चाहिये ।
प्रभुश्री - यह तो ठीक है, इसको कौन मना कर सकता है ? जीवको यही करना है । अन्य है ' क्या ? सच है, सचको झूठ कैसे कह सकते हैं? यही करना है । इसके वर्तमानमें बहुत भेद हो गये हैं। यह मैंने माना सो सच है, यह नहीं । यह माना वह सच है ? स्थान स्थानपर सब मान बैठे हैं । ऐसा हो गया है । उसकी खोजमें तो कोई विरले ही होते हैं! तो वह कैसा होगा ?
मुमुक्षु - घरका समकित नहीं करना है । भगवानका हो वही कामका है। लोग मानते हैं पर अनुभव नहीं है तो वह नाम समकित है, भाव समकित नहीं है । ऐसे समकित नहीं होता । प्रभुश्री - यह सुगम है। अभी तो ऐसा (दुर्गम) कहा, अब सुगम कैसे हो गया ? ज्ञानीके वचन कैसे निकाल दें? आपके पास लाखों रुपया होनेसे समकित मिलेगा क्या? भाव और परिणामसे मिलेगा। यह आपके पास है । छोटा बड़ा नहीं देखना है । भाव और परिणाममें निहित है । यह तो सही है कि कारणके बिना कार्य नहीं होता - कारण और कार्य कहा जाता है; वह होगा तो कार्य होगा, अन्यथा नहीं । इसीकी कमी है। इसे प्राप्त करना चाहिये । यह कैसे मिलेगा ? पुरुषार्थसे ।
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मुमुक्षु - ' दान, शील, तप, भाव'
प्रभुश्री - सत्पुरुष समागमसे जो होता है वह सीधा होता है। जीव मरजिया होकर पुरुषार्थ करे तो मिथ्यात्व जाता है । पुरुषार्थ करे तो मिलता ही है । कुछ पुरुषार्थ करना चाहिये ।
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