SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 334
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपदेशसंग्रह-१ २३९ नहीं देता; यों यह सब काला है, मात्र एक सत्पुरुष ही उजले हैं। चंद्रमें कलंक है यह सभी कहते हैं, पर 'तवेको कोई नहीं कहता। 'आणाए धम्मो आणाए तवो' इसीमें सब आ गया है, कुछ शेष नहीं रहता । परमकृपालुदेवकी साधुसंबंधी सभी बातोंसे हमें संतोष हुआ है। साधु कौन? 'आत्मज्ञान त्यां मुनिपणुं।' ता. २५-१-३६, सबेरे पत्रांक ७२७का वाचन “अल्प आयु और अनियत प्रवृत्ति, असीम बलवान असत्संग, पूर्वकी प्रायः अनाराधकता, बलवीर्यकी हीनता ऐसे कारणोंसे रहित कोई ही जीव होगा। ऐसे इस कालमें, पूर्वकालमें कभी भी न जाना हुआ, प्रतीत न किया हुआ, आराधित न किया हुआ और स्वभावसिद्ध न हुआ हुआ ऐसा 'मार्ग' प्राप्त करना दुष्कर हो इसमें आश्चर्य नहीं है । तथापि जिसने उसे प्राप्त करनेके सिवाय दूसरा कोई लक्ष्य रखा ही नहीं वह इस कालमें भी अवश्य उस मार्गको प्राप्त करता है।" प्रभुश्री-जीवको विचार आया ही नहीं । काम बना दे इतना सब कुछ है, फिर भी इस स्थान पर कुछ करे तो अभी करने योग्य है। मात्र इस जीवकी ही भूल है। अब बोलियेगा नहीं। इतना समझने योग्य है। यदि इसने कुछ किया तो बस; यही चाबी है। यह बात बहुत जोरदार है। तैयार हो जा, तेरी देरमें देर है, अब क्या है? ऐसा वैसा कथन नहीं है। मरते हुएको जीवित करता है। सत्पुरुषोंने मरे हुएको जीवित किया है। हिंमत न हारें। १. मुमुक्षु-हिंमत हारनी नहीं है। अब तो मरजिया होना है। आपने कहा था कि सिर पर सत्पुरुष हैं, साथमें हैं और उनकी हिम्मत है, तब फिर हिम्मत किसलिये हारें? प्रभुश्री-यही कर्तव्य है। हिम्मत नहीं हारनी चाहिये। २. मुमुक्षु-वीतराग मार्गमें प्रवृत्ति है, तब हिंमत क्यों हारे ? प्रभुश्री-गिर गये तो खड़े हो जाइये, फिर कैसे चल नहीं पायेंगे? चल पायेंगे। पता नहीं है। कोई यदि गिरे तो उसे खड़ा हो जाना चाहिये। अब क्या है? पड़ा रहना ही नहीं है। खड़ा हो जा। भूला वहींसे फिर गिन, समझा तभीसे सबेरा, पुनः जुट जा न? स्वच्छंदने बुरा किया है। अन्य किसीका दोष नहीं है। बैठा है वहाँसे अब खड़ा हो जा। अभी जो दशा है वह तो तू गिरा हुआ है, वहाँसे खड़ा होना है। जागृत हुए बिना छुटकारा ही नहीं है। “सद्गुरुना उपदेश वण, समजाय न जिनरूप; समज्या वण उपकार शो? समज्ये जिनस्वरूप.'' चमत्कार है! यह तो चिंतामणि है! किसीको पता नहीं है। 'ओहो! इसमें क्या है?' ऐसा कहता है पर यह तो निधान है, सुनने योग्य है, रखने योग्य है। साहस रखने जैसा है। यह आ गया तो प्रकाश हो जायेगा, भव टल जायेंगे। चित्तमें कचरा है, कमी है। जीव तो भले हैं पर योग्यताकी कमी है। वही करेगा। इसके सिवाय अन्य कोई नहीं है। यह तो है ही, हाथ आ गया तो काम हो गया! 'तो' तेरह मनका है। आ जाये तो कुछ नहीं, देर नहीं लगेगी। दो बातकी १. मूल शब्द ‘कलाडो' है जिसका अर्थ मिट्टीका रोटी सेंकनेका तवा होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001941
Book TitleUpdeshamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShrimad Rajchandra Ashram Agas
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year2004
Total Pages594
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, sermon, & Rajchandra
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy