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[२८] यह ऊपर जानेका मार्ग तो बहुत विकट है, और अभीसे हम तो पीछे रहने लग गये हैं। वे तो बहुत तेजीसे ऊपर चढ़ रहे हैं।"
' श्रीमद्जी शीघ्र ऊपर पहुँचकर एक विशाल शिलापर बिराजमान हो गये, फिर सातों मुनि आकर सन्मुख बैठे। श्रीमद् बोले, “यहाँ निकट ही एक बाघ रहता है, किंतु आप सब निर्भय रहें।" सिद्धशिला और सिद्ध-स्वरूपकी चर्चा होनेके बाद श्रीमद्ने पूछा, "हम इतने ऊँचे बैठे हैं, यह कोई नीचेका मनुष्य तलहटीपरसे देख सकता है?"
श्री लल्लुजीने कहा, “ना, नहीं देख सकता।"
श्रीमद्जीने कहा, "इसी प्रकार नीचेकी दशावाला जीव ऊँची दशावाले ज्ञानीके स्वरूपको नहीं जान सकता। परंतु योग्यता प्राप्त हो, और उच्च दशामें आ जाय तो देख सकता है। हम पहाड़ पर उच्च स्थानपर होनेसे पूरा नगर और दूर तक देख सकते हैं, किन्तु नीचे भूमिपर खड़ा व्यक्ति मात्र उतनी भूमिको ही देख सकता है। इसीलिये ज्ञानी उच्च दशापर रहकर नीचेवालेको कहते हैं कि 'तू थोड़ा ऊपर आ, फिर देख; तुझे पता चलेगा।"
फिर श्रीमद्जीने सब मुनियोंसे कहा, "आप पद्मासन लगाकर बैठ जायें और जिनमुद्रावत् बनकर 'द्रव्यसंग्रह'की गाथाओंका अर्थ उपयोगमें लें।" तदनुसार सब बैठ गये। पश्चात् श्रीमद्जी 'द्रव्यसंग्रह'की गाथाएँ उच्च स्वरसे बोलने लगे और उसका अर्थ भी करते, फिर परमार्थ बताते । यों संपूर्ण 'द्रव्यसंग्रह' ग्रंथ पूरा सुनाया, समझाया तब तक सभी मुनि उसी आसनमें अचल बैठे रहे।
श्री देवकरणजी उल्लासमें आकर बोल उठे “अब तकका परमगुरुका जो जो समागम हुआ उसमें यह समागम, अहा! सर्वोपरि हुआ! जैसे मंदिरके शिखरपर कलश चढ़ाया जाता है वैसा इस प्रसंगसे हुआ है।"
फिर श्रीमद्जीने कहा, “ 'आत्मानुशासन' ग्रंथके कर्ता श्री गुणभद्राचार्य उस ग्रंथके अंतिम भागमें अति अद्भुत ज्ञानमें प्रवाहित हुए हैं; आत्माके स्वरूपका विशेष वर्णन स्पष्ट बताते हैं।" यों कहकर वह भाग भी पढ़ सुनाया। ___उस सांकेतिक आम्रवृक्षके नीचे श्रीमद्जीने मुनियोंसे कहा, "मुनियो! जीवकी वृत्ति तीव्रतासे भी गिर सकती है। अंबालालकी वृत्ति और दशा प्रथम भक्ति और वैराग्यादिके कारणसे उच्च होनेपर उन्हें ऐसी लब्धि प्रगट हुई थी कि हमने तीन-चार घण्टे बोध किया हो, उसे दूसरे दिन या तीसरे दिन लिखकर लानेको कहें तो वे संपूर्ण और हमारे शब्दोंमें लिखकर ले आते थे। वर्तमानमें प्रमाद और लोभ आदिके कारण वृत्ति शिथिल हुई है। यह दोष उनमें प्रगट होगा यह हम बारह मास पहलेसे ही जानते थे।"
यह सुनकर श्री लल्लजीको खेद हुआ, अतः श्रीमद्जीसे पूछा, “क्या यह ऐसा ही रहेगा?" श्रीमद्जीने कहा, "मुनि, खेद न कीजियेगा। जैसे नदीके प्रवाहमें बहता पत्ता एक जालेमें अटक जाय, किंतु फिर नदीमें बाढ़ आनेपर उसके प्रवाहमें जालेसे निकलकर महासमुद्रमें जा मिलता है, वैसे ही उनका प्रमाद भी हमारे द्वारा दूर होगा और वे परमपदको प्राप्त करेंगे।"
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