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उपदेशसंग्रह - १
२२१
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योगदृष्टि सब बोलते हैं, किन्तु बोलने-बोलनेमें भी भेद है । उसमें मिश्रण चाहिये। किसी वस्तुमें ऐसा मिश्रण डालते हैं कि जिससे बल-वीर्य सब बढ़ जाता है । वैसी यह वस्तु है । क्या वस्तु है ? किसके गीत गाने हैं ? महापुरुषोंने तो वह बात कर दिखाई है, पर उसमें भावना करना और मानना तो आपका काम है । बात समझने पर ही छुटकारा है । अन्य जो समझा है वह नहीं । यहाँ अन्य अलग ही समझना है । सद्गुरुकी आज्ञा और जिनदशा। आपकी देरमें देर है । यह सच है । वचन वापस नहीं लौटता। जिसे केवलज्ञान हुआ उसने जाना, वैसे ही यह वचन है ।
१. मुमुक्षु - 'हमारी देर में देर है' यह तो सच है, पर हमें किस प्रकार तैयार होना चाहिये ? प्रभुश्री - व्यवस्थापक है न ? कैसी बात करता है ?
१. मुमुक्षु - हमारी शक्ति नहीं है । कृपालुदेव ही तैयार करते हैं, पर हमें क्या करना चाहिये ?
प्रभुश्री - इस प्रश्नका उत्तर सुगम है - बात मान्यताकी है। उसकी देरमें देर है । तैयार होना चाहिये न ? व्यवहारमें जैसे किसीसे कहा हो कि जाना है, अतः तैयार होकर आना। फिर आकर कहे कि मैं तो अपनी गठरी भूल गया । फिर लेने जाये तो रह जाये । वैसे ही यहाँ भी बराबर तैयार होकर आये तो काम बन जाय, नहीं तो फिर राम राम! ऐसा ही है; विचार करने योग्य है । मात्र पढ़ना नहीं है, विचार करेंगे तो भीतरसे मार्ग मिलेगा। कृपालुदेव कहते थे कि विचार करो; किन्तु और कुछ नहीं कहते थे । अतः वह तो वही है ।
१. मुमुक्षु - इसी माहात्म्य है !
प्रभुश्री - भूतभाई जाने ! कौन मानेगा ? पर ज्ञानीकी गति तो ज्ञानी ही जानते हैं ।
ता. १३-१-३६, शामको
पत्रांक ८१९ का वाचन :
ॐ
"खेद न करते हुए शूरवीरता ग्रहण करके ज्ञानीके मार्ग पर चलनेसे मोक्षपट्टन सुलभ ही है।" १. मुमुक्षु - इस जीवको आर्त- रौद्र ध्यान रहता है, वही खेद है । संसारके अनेक कारणोंको लेकर खेद हो जाता है, वह आर्त्तध्यान है । ज्ञानी उससे बचाते हैं ।
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प्रभुश्री - वेदनाका दुःख कुछ कम है ? कोई वैद्य भी उस दुःखको मिटाने में समर्थ नहीं है । १. मुमुक्षु - वह तो कर्मका रोग है ! ज्ञानी महा वैद्य हैं, वे ही मिटायेंगे ।
प्रभुश्री - समझनेकी कमी है, पकड़नेकी भी । कोई दृष्टि हाथ लगी तो उसे पकड़ लेना चाहिये, छोड़ना नहीं चाहिये । दुःख व्याधि आदि देहमें होती है । अनेक प्रकारके रोग होते हैं जिन्हें मिटानेमें कोई समर्थ नहीं । कहिये, कोई मिटायेगा ?
२. मुमुक्षु - ज्ञानी कर्मरोग मिटायेंगे । रोग दो प्रकारके हैं- द्रव्यरोग और भावरोग । द्रव्यरोग शरीरमें होते हैं, भावरोग मनका है, वह तो अंत तक है। उसके गये बिना द्रव्यरोगकी शक्ति कम नहीं होती और उसके जानेके बाद द्रव्यरोगकी शक्ति टिक नहीं सकती । भावरोगको मिटानेवाले ज्ञानी है | अतः आप ही इसे मिटा सकते हैं, अन्य नहीं ।
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