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उपदेशसंग्रह-१
२११ १. मुमुक्षु-तू चाहे जो धर्म मानता हो उसका मुझे पक्षपात नहीं है, पर जिससे आत्मा आत्मभावको प्राप्त करे वह आत्माका धर्म है।
प्रभुश्री-आत्मा है। तैयार हो जाना है। वह पुराना या नया नहीं है, चतुर या पागल नहीं है, और उसे पढ़ाना भी नहीं है । जो माना है उसे छोड़ना है। अब संक्षिप्त गिनती क्या है? है पता? हो तो कहो।
१. मुमुक्षु-समकित प्राप्त करना तथा श्रद्धा करना।
२. मुमुक्षु-"जिस जिस प्रकारसे आत्मा आत्मभावको प्राप्त करता है, वे वे धर्मके प्रकार हैं।" वह कर लेना है। शेष सब पररूप है।
प्रभुश्री-छोड़ना चाहे तो छोड़ा जा सकता है, छोड़े बिना मुक्ति नहीं, छोड़ेंगे तभी काम बनेगा।
२. मुमुक्षु-छूटते तो हैं किन्तु फिर नये बँधते हैं, यही दुःख है। हाथी, स्नान करके शुद्ध होता है और फिर अपने शरीर पर धूल डालकर मैला हो जाता है, वैसा ही है।
प्रभुश्री-ग्रहण करनेसे बंध होता है, उसे छोड़ दे।
३. मुमुक्षु-वसोमें कृपालुदेवको किसी व्यक्तिने कहा कि भगवान, आप हमारे सब कर्म ले लीजिये। तो कृपालुदेवने कहा कि, “हाँ, यदि फिरसे नये न बाँधो तो।" काविठामें भी ऐसा ही हुआ । एकने कहा कि अब मुझे मुक्त करें, तो कृपालुदेवने कहा कि एक ही स्थान पर बैठे रहो और भक्ति करो। बाहर अन्यत्र कहीं मत जाओ, खिड़कीमें भी जाकर न देखो। ऐसा हो सकेगा? तब उस व्यक्तिने कहा, “प्रभु, ऐसा तो कैसे हो सकता है कि कहीं न जायें?" कृपालुदेवने कहा, तब हो
चुका!
प्रभुश्री-बंध वह बंध है, मोक्ष वह मोक्ष है। जितना बंध है उसे छोड़ना पड़ेगा। छोड़नेमें देर कैसी? पर फिर ग्रहण न करे तो काम हो जाय । पर पहले तो वह ग्रहण करता है, तब क्या हो सकता है?
२. मुमुक्षु-जिस मान्यतासे कर्म बँधते हैं, वह मान्यता किस प्रकार जाती है? नये कर्म न बँधे वैसी मान्यता जब हो, तब सत्पुरुषका बोध समझमें आता है।
“सद्गुरुना उपदेश वण, समजाय न जिनरूप;
समज्या वण उपकार शो? समज्ये जिनस्वरूप." बाँधना नहीं है फिर भी बँध जाता है। ___ प्रभुश्री-पकड़ नहीं है, समझ नहीं है। वह हो तो सरल है। जीवको भाव नहीं हुआ है। वह आत्मभावमें हो तो बंध कहाँ है? इसीलिये ज्ञानियोंको बंध नहीं होता। वह कैसे होता होगा? उन्होंने क्या किया? पता हो तो कहो।
१. मुमुक्षु-जगतमें दो प्रकारके जीव हैं-ज्ञानी और अज्ञानी। अब उसमें से एक 'अ' को निकाल दें तो ज्ञानी हो जाये।
प्रभुश्री-ऐसा कहीं होता है? ऐसा कहा जाता है? निकालनेका तो 'मैं' और 'मेरा' हैं। उसे निकाला तो अज्ञान गया। उसे नहीं निकाला इसलिये अज्ञान है।
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