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________________ उपदेशसंग्रह-१ १९७ २. मुमुक्षु-समझ करनी रह गई। प्रभुश्री-अपेक्षासे वचन मिथ्या नहीं है। “पावे नहीं गुरुगम बिना, एही अनादि स्थित ।" जबकभी भी गुरुके बिना ज्ञान नहीं, गुरुके बिना ध्यान नहीं। फिर देर नहीं लगेगी। बड़े बड़े काम अंतर्मुहूर्तमें हो गये। अंतर्मुहूर्तमें केवलज्ञान! गुरु बिना आगे नहीं बढ़ा जा सकता। उसकी आवश्यकता है। २. मुमुक्षु-गुरुगम क्या है? कोई वस्तु है ? कहाँ रहता है ? प्रभुश्री-'पावे नहीं गुरुगम बिना' वह क्या है? . २. मुमुक्षु-व्याकरणके अनुसार कहता हूँ, उसका अर्थ-गुरु बताये वह । प्रभुश्री-इतना तो निश्चित करें। जगतमें दो वस्तु हैं : जड़ और चेतन। किसी समय, किसी स्थान पर सुना है कि जड़ जानता है? आत्मा क्या है? आत्मा है, उसके साथ बात होगी, दूसरेके साथ हो सकती है क्या? भाई कहें, दादा, मामा, पिता आदि कहें-बुरा हुआ कल्पनासे । क्षण क्षण कल्पना है। एक आत्माको जाना तो सब जान लिया। वह नहीं जाना तो कुछ नहीं जाना । बोलियेगा नहीं; ज्ञानी जानते हैं। वर्णन नहीं किया जा सकता। बड़ी बात भावकी है। भावके बिना कुछ नहीं किया जा सकता। यह मुख्य बात है। अभी तो आत्मा है, वही गुरुगम है। जड़को कुछ है? एक भाव है। भाव बिना सब फीका, राख जैसा है। नमक न डाला हो तो फीका लगे वैसा । अतः अपनेको तो एक ही भाव । सब-सबके भावके अनुसार काम होता है। राग, द्वेष, मोह, शांति, क्षमा जिसमें जिस प्रमाणमें हों, उस प्रमाणमें काम होता है। भावके बिना बात नहीं है। अन्यका परिणाम आवे तो क्या इसका नहीं? भावके अनुसार परिणाम आयेगा। अतः यह कर्तव्य है। “निर्दोष सुख निर्दोष आनंद ल्यो गमे त्यांथी भले; ए दिव्य शक्तिमान जेथी जंजीरेथी नीकळे." प्रमाद और आलस्यने जीवका बुरा किया है, यह विघ्न है। क्या बताया? सत्संगमें जाओ। चाहे जहाँ जाओ, एक मात्र सत्संग। इससे भला होगा। पापका बाप जानो। क्या निकला? इसको क्या जानना है? एक सत्, सत् और सत् । यह निकला-यह परिणाम आया। 'जागे तबसे सबेरा।' जागा नहीं है, यही कमी है। जगाना पड़ेगा। बड़ों बड़ोंने भी जगाने पर ही कार्य किया है, जैसे कुंभकर्णको नींदसे जगाया वैसे । इससे माँगो, उससे माँगो, अमुकसे माँगो, इससे काम नहीं चलेगा। एक यहाँ । “जब जागेंगे आतमा, तब लागेंगे रंग।" ये वचन ज्ञानीके हैं, बदल नहीं सकते। अतः करने योग्य है। ‘सांभळी सांभळी फूटयां कान, तोय न आव्युं ब्रह्मज्ञान ।' बार-बार यही बात क्यों? यह क्या है? उलाहना दे रहे हैं! बैठेंगे तो कुछ सुनाई देगा। कचास है, खामी है, बड़ा घाटा है। पैसेवाला खर्च करेगा; न हो वह क्या करेगा? ये कह रहे हैं। जाना नहीं है। जिसके पास हो वह कर सकता है। यह वस्तु सत्की है, गुरुगमकी है। गुरुके दर्शन तथा बोध प्राप्त नहीं हुए। यह बड़ी कमी है। अजब-गजब है! बात तो बहुत है। ज्ञानी, हे भगवान! अजब-गजब! अपूर्व बात है! मनुष्यभवमें जितना हो सके, कर लो। भूलना मत, चूकना मत । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001941
Book TitleUpdeshamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShrimad Rajchandra Ashram Agas
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year2004
Total Pages594
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, sermon, & Rajchandra
File Size13 MB
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