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उपदेशामृत ४. मुमुक्षु-कृपानाथने आपको हथेलीमें 'ब्रह्म' लिखकर बताया है। प्रभुश्री-कौन मना कर रहा है? पर उनका उनके पास । हमें तो समझना है ना? अब क्या करें? २. मुमुक्षु-ज्ञानीका पल्ला पकड़ें।
प्रभुश्री-किसने मना किया है? पर अभी हमारे हाथमें क्या है? अन्य सब पुद्गल और कर्मसंयोग, अब क्या करें?
५. मुमुक्षु-सत्पुरुषार्थ और सद्भाव करना बाकी है।
प्रभुश्री-सब किया है, पर अब अंतिम कहे देता हूँ : भाव और श्रद्धा । 'सद्धा परम दुल्लहा।' उन्होंने कहा उस पर श्रद्धा की तो फिर ताली! अभी आत्मभाव और श्रद्धा, ये दो बात हाथमें हैं। चेतो! चेतो! मेरा तो भाव, उसे मानूँ, अब अन्य न मानूं। 'बात है माननेकी' । यह बात आई है। भाव और श्रद्धा करनी पड़ेगी। अतः चेत जाओ।
[देववंदन करने आते समय तथा जाते समय] आत्मा है। उसे ज्ञानीने जाना है। छोटे-बड़े, स्त्री-पुरुष, सभीको यह देववंदन करना चाहिये । यह देववंदन तो प्रतिक्रमणके समान है। जीवको पता नहीं है, ऐसा कहाँ मिलता है?
ता.२१-११-३५, सबेरे
पत्रांक २४९ का वाचन
ॐ नमः “कराल काल होनेसे जीवको जहाँ वृत्तिकी स्थिति करनी चाहिये, वहाँ वह कर नहीं सकता। सद्धर्मका प्रायः लोप ही रहता है। इसलिये इस कालको कलियुग कहा गया है। सद्धर्मका योग सत्पुरुषके बिना नहीं होता, क्योंकि असत्में सत् नहीं होता।
प्रायः सत्पुरुषके दर्शन और योगकी इस कालमें अप्राप्ति दिखाई देती है। जब ऐसा है, तब सद्धर्मरूप समाधि मुमुक्षुपुरुषको कहाँसे प्राप्त हो? और अमुक काल व्यतीत होने पर भी जब ऐसी समाधि प्राप्त नहीं होती तब मुमुक्षुता भी कैसे रहे?
प्रायः जीव जिस परिचयमें रहता है, उस परिचयरूप अपनेको मानता है। जिसका प्रत्यक्ष अनुभव भी होता है कि अनार्यकुलमें परिचय रखनेवाला जीव अपनेको अनार्यरूपमें दृढ़ मानता है और आर्यत्वमें मति नहीं करता।
इसलिये महापुरुषोंने और उनके आधार पर हमने ऐसा दृढ निश्चय किया है कि जीवके लिये सत्संग, यही मोक्षका परम साधन है।
सन्मार्गके विषयमें अपनी जैसी योग्यता है, वैसी योग्यता रखनेवाले पुरुषोंके संगको सत्संग कहा है। महान पुरुषोंके संगमें जो निवास है, उसे हम परम सत्संग कहते हैं, क्योंकि इसके समान कोई हितकारी साधन इस जगतमें हमने न देखा है और न सुना है।
पर्वमें हो गये महापुरुषोंका चिंतन कल्याणकारक है; तथापि वह स्वरूपस्थितिका कारण नहीं हो सकता; क्योंकि जीवको क्या करना चाहिये यह बात उनके स्मरणसे समझमें नहीं आती। प्रत्यक्ष For Private & Personal Use Only
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