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उपदेशामृत वह बेटवा! महत्वपूर्ण बात है। उसीकी बात, उसकी पहचानके लिये बोध और सत्संग चाहिये। यहाँ बैठे हैं तो ये बातें सुन रहे हैं, अन्य कहीं होते तो अन्य बातें होती। तुम्हारा आत्मा, 'बेटवा हो वह और कुछ देखे, करे और माने । जागते सोते, खाते-पीते, चलते-फिरते, बैठते-उठते एक आत्मा। उसका पता नहीं है। उसमें गुरुगम चाहिये। भेदीसे मिले तो काम बने। एक विश्वास आना चाहिये। यदि कहनेवाला मिले और सुनकर विश्वास करे तो काम बन जाय। उसीसे मुक्ति है। सिद्धांतका संक्षिप्त सार यही है। बोध और वैराग्यकी वासना हुई हो तदनुसार वेदन करता है। 'आओ आओ' कहनेसे और कुछ आयेगा क्या? उसकी पहचान होनी चाहिये, पहचानसे मुक्ति है। १. मुमुक्षु- “कर्म मोहनीय भेद बे, दर्शन चारित्र नाम;
हणे बोध वीतरागता, अचूक उपाय आम." (श्री आत्मसिद्धि) प्रभुश्री-वीतरागता कहीं भी नहीं। कहाँ है? ज्ञानीने वीतरागको देखा। आत्मा है, नित्य है, कर्ता है, भोक्ता है, मोक्ष है, मोक्षका उपाय है। अन्यको ‘ह्बीमें कंकड़।' श्रद्धा, प्रतीति, आस्था, मान्यता दुर्लभ है। वह करने तैयार हो जाना चाहिये। मनुष्यभवमें ही कहा जाता है; पेड़-पत्ते, कौवे कुत्ते आदिसे कहा जाता है क्या? सबको कहनेका यह अवसर आया है इसलिये कह रहे हैं। भूलें नहीं । दृढ़ता कर दें-'यह मेरा स्वामी' ऐसा मानना कर्तव्य है । 'रंजन धातु मिलाप' मिल जाये तो कहना नहीं है। मिलाप होनेके लिये कहना है । अतः यह न जाओ; धन-वैभव, पैसा-टका जाओ, पर यह न जाओ। अन्य सब किया। अभ्यास किया! पढ़ा पर गुना नहीं। __ मेहमान, भक्ति करना। 'सुनते-सुनते फूटे कान, तो भी न आया ब्रह्मज्ञान ।'
ता.१८-११-३५, सबेरे पत्रांक १६६ मेंसे वाचन
___ "अनादिकालके परिभ्रमणमें अनन्तवार शास्त्रश्रवण, अनन्तवार विद्याभ्यास, अनंतवार जिनदीक्षा और अनन्तवार आचार्यत्व प्राप्त हुआ है। मात्र 'सत्' मिला नहीं, 'सत्' सुना नहीं और 'सत्' की श्रद्धा की नहीं, और इसके मिलने, सुनने और श्रद्धा करनेपर ही छुटकारेकी गूंज आत्मामें उठेगी।"
['सत्' पर चर्चा हुई] प्रभुश्री-बात सब अच्छी की, मुझे अच्छी लगी, पर परिणाम क्या? परिणाम अर्थात् क्या? १. मुमुक्षु-आत्माके अपने भाव।
२. मुमुक्षु-द्रव्य, गुण, पर्याय–प्रत्येकके दो भेद, विभावपर्याय और स्वभावपर्याय । वस्तुकी एक समयकी अवस्था सो पर्याय, परिणाम, वस्तुका स्वरूप; जब तक जीवके परिणाम तथा भाव नहीं आते, तब तक तद्रूप नहीं हुआ जा सकता। पर्याय वस्तुसे (द्रव्यसे) भिन्न नहीं है। वस्तु इसी रूपमें है। विभावपर्यायमें विभाव आत्मा, स्वभावपर्यायमें स्वभाव आत्मा।
प्रभुश्री-परिणामकी बहुत अच्छी बात आई। वे परिणाम बदलते होंगे या नहीं? १. मूल गुजराती पाठ 'बेट्टो होय ते बीजुं जुओ'।
२. तूंबीमें कंकड़ डालकर कोई बजाये तब किस कंकड़की कैसी आवाज आती है उसका जैसे पता नहीं लगता, वैसे ही बोध सुना हो पर उसका सार न समझे तो वह तूंबीमें कंकड़ समान है।
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