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________________ १०६ उपदेशामृत शस्त्र है। यथाशक्य दुश्मनका भी भला चाहें। सदाचारका सेवन करें। मैत्रीभाव रखें। धैर्यपूर्वक मिलजुलकर आनंद मनायें। गुणग्राही बनें। किसीने हमारा उपकार किया हो तो उसका बदला चुकायें; मधुर वचनसे, नम्रतासे अच्छे वचन बोलकर उसका मन प्रसन्न हो वैसा करें। यह बात किसी समझदार जीवात्माको ही कही जाती है। सबसे बड़ी नम्रता है। लघुभाव रखकर व्यवहार करें। अहंकार और अभिमान आत्माके शत्रु हैं, उन्हें मनमें न लावें। अभिमान न होने दें। मनमें ऐसा न सोचें कि 'मैं समझता हूँ, यह तो कुछ भी नहीं जानता।' कहा है कि १"जाण आगळ अजाण थईए.तत्त्व लईएताणी. आगळो थाय आग तो आपणे थईए पाणी." यह सब आपको समझनेके लिये लिखा है। मनमें ऐसा न सोचें कि मैं तो समझता हूँ। कोई ना-समझ हो तो उसका भी मन न दुःखायें। उसे भी ‘अच्छा, अच्छा' कहकर उसका और अपना हित हो वैसा करें। १६३ श्रीमद् राजचंद्र आश्रम, अगास भाद्रपद सुदी ५, गुरु, सं.१९९० मरण बहुत याद आता है। आज तकमें जो-जो मरण हुए हैं वे बारंबार याद आते हैं और क्षणिकता, अनित्यता झलक आती है कि काँचकी शीशीके समान कायाको फूटते देर नहीं लगती। घबराहट होती है, कुछ भी अच्छा नहीं लगता। किसी स्थानमें बाहर जानेसे भी अच्छा नहीं लगता। यहाँ रहनेसे भी मन नहीं लगता। मरणका भय भी नहीं है, पर विचित्र कर्मके उदय दृश्यमान होते हैं। + १६४ श्रीमद् राजचंद्र आश्रम, अगास ता.२-१०-३४ किसीको क्रोध आये तब सबके साथ क्षमा, नम्रतासे बोलें। सामनेवालेसे जैसे अच्छा लगे वैसे बोलें । सामनेवालेको क्रोध आये, कषाय उत्पन्न हो वैसा न बोलें । मैत्री, करुणाभाव, प्रमोदभाव और मध्यस्थता-समभाव ऐसे वचन हृदयमें लाकर विचारकर सबके साथ बोलें । नम्रतासे, सामनेवालेको अच्छा लगे वैसा स्वभाव करनेका ध्यान रखें। अहंकार, अभिमानको वृत्तिमें न आने दें, नम्र हो जायें। सबको अच्छा लगे वैसा स्वभाव करें। 'सेठकी सलाह द्वार तक' ऐसा न करें। इस वचनको लक्ष्यमें रखकर 'मैं सबसे छोटा हूँ, मुझमें अल्पबुद्धि है' ऐसा मानकर सामनेवालेसे कुछ भी गुण ग्रहण करें। कोई हमारा तिरस्कार करें तो भी उससे धैर्यपूर्वक अच्छा लगे वैसा व्यवहार करें। 'आप समझदार हैं, आप सयाने हैं, आप ठीक कहते हैं' ऐसा कहकर जिस प्रकार क्रोध शांत होकर वह समतामें आवे उस प्रकार धैर्यसे, एकतासे, उसको अच्छा लगे वैसे बोलें। उसके साथ धैर्यसे बात करें। ‘पूछता नर पंडित' ऐसा स्वभाव रखें। अपने छोटे भाई शांतिके साथ नम्रतासे बोलकर १ अर्थ-कोई धर्मका ज्ञाता हो तो उसके आगे हमें नासमझ बनकर उससे तत्त्व खींच लेना चाहिये-ग्रहण कर लेना चाहिये-जैसे कि सामनेवाला अग्नि हो जाये-गुस्सा करे तो हमें पानीकी तरह शांति रखनी चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001941
Book TitleUpdeshamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShrimad Rajchandra Ashram Agas
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year2004
Total Pages594
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, sermon, & Rajchandra
File Size13 MB
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