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पत्रावलि-१
१०३ नहीं है। अतः समता और धैर्य अधिक रखना सीखें। हलके मनुष्योंकी संगति न करें। उम्र छोटी होने पर भी वृद्ध समझदार मनुष्य जैसी बुद्धिसे व्यवहार करें और बड़े समझदार व्यक्तिसे मिलनेजुलनेका प्रसंग रखें, उनसे जान-पहचान बढ़ायें। सबके साथ मैत्रीभाव, नम्रतासे विनयसहित बोलचालका व्यवहार रखें। गरीबी (लघुता) रखकर व्यवहार करें। 'नम्यो ते परमेश्वरने गम्यो' (नम्रतासे परमेश्वर भी प्रसन्न होते हैं।) अहंकार न रखें।
"ज्ञान गरीबी गुरु वचन, नरम वचन निर्दोष;
इनकू कभी न छांडिये, श्रद्धा शील संतोष." इस दोहेको कण्ठस्थकर, इसके विचार शिक्षाको मनमें रखकर हमें व्यवहार करना चाहिये। अवकाशके समय धर्मका वाचन, विचार करें।
यह समझ इस भव, परभवके हितके लिये लिखी है। ऊपर लिखे अनुसार, जैसे आत्महित हो वैसा व्यवहार करना योग्य है। अपना बुरा किया हो उनका भी भला करनेका स्वभाव रखें । उनका तिरस्कार न करें। उन्हें अच्छा लगे वैसा मान देकर भला हो वैसा करें। 'आप समान बल नहीं, मेघ समान जल नहीं' ऐसी कहावत है, अतः अपनेसे हो उतना, इस संसारमें आयुष्य रहे तब तक भला हो वैसा करें। जैसे भी हो सद्वर्तन करें। विनय शत्रुको भी वशमें करता है। जो मिले उसमें संतोष रखें। समतासे सहन करें। झूठ बोलनेकी आदत कभी न डालें। नम्रतासे व्यवहार करें।
१५९ __श्रीमद् राजचंद्र आश्रम, अगास
ता.१९-७-३४,गुरु दंतालीवाले त्रिकमभाईका शरीर क्षयके कारण सूख गया है। वे अभी आश्रममें ही रहे हैं। परमकृपालुदेव पर श्रद्धा दृढ़ हो और शरीरकी ममता कम हो ऐसा बोध, पत्र आदि पढ़वाकर उन्हें सुनानेका निमित्त रखा है। इस रोगमें शरीर क्षीण हो जाने पर भी भान, सुधि अच्छी रहती है। वृद्धावस्था हो, बीमारी हो तो भी मनुष्यदेह है तब तक सत्संग आदि आत्महितका कारण बन सकता है। समकिती जीवको रोगके समय विशेष निर्जरा होती है। सामान्यतः दुःखके समय भगवान अधिक याद आते हैं और सुखके समय संसार याद आता है। अतः ज्ञानीपुरुष तो वेदनाके समय प्रसन्न होते हैं कि यह कर्मका बोझ हलका हो रहा है। यहाँ तक कि मृत्युबेलाको महोत्सव मानते हैं। जिस किसी जीवको सच्चे मनसे परमकृपालु देव पर आस्था हुई है उन सबका काम हो जायेगा। कमी मात्र बोधकी और जीवकी योग्यताकी है। उस कमीको पूरी करनेके लिये सत्पुरुषार्थ करना चाहिये।
आप तो अवसरके ज्ञाता हैं और ऐसे अच्छे निमित्त एकत्रित करते रहते हैं, अतः आपको क्या बताया जाय? आपको कुछ कहना नहीं है। 'खाते बचा सो बीज और मरते बचा सो बड्डा।' हमें तो आपके सत्संगका बड़ा आधार है। आपको क्या लिखें? आप अवसरको पहचाननेवाले हैं। 'समयं गोयम मा पमाए।' अनमोल क्षण जा रहा है। ऐसा काल व्यतीत करनेके लिये सद्गुरुकृपासे मिला है, वह काल व्यतीत करेंगे। सद्गुरुके बोधसे हित होता है; ऐसा सत्संग दुर्लभ है। जैसे भी हो उसे प्राप्त करनेकी भावना रखनी योग्य है। जैसे भी हो सत्पुरुषके बोधमें काल व्यतीत हो वह
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