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उपदेशामृत
१५८ श्रीमद् राजचंद्र आश्रम, अगास ता. १७-७-३४
इस कलिकालमें अच्छी संगति, सत्संग, सत्पुरुषका योग प्राप्त होना बहुत दुर्लभ है । महान पुण्यका उदय हो तब सत्पुरुषके दर्शन करनेका, बोध सुननेका योग मिलता है। न्यायनीति, सदाचारके अनुसार व्यवहार करे; सत्य, अच्छे, प्रिय लगें, एकता बढ़े वैसे वचन बोले या लिखे; अपनेको सौंपा हुआ कार्य भली प्रकार करे; बड़े लोगोंका विनय, सेवा - चाकरी करे, कोई बीमार आदि हो तो उसकी सहायता करे, भक्तिभजनके लिये नित्य नियमपूर्वक भक्ति करे; स्मरण करे, नमस्कार करे; दर्शन - सत्संग समागमकी भावना करे उसे पुण्यबंध होता है और पुण्यवान जीव सुखी होते हैं, यह हम जानते ही है ।
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" बहु पुण्यकेरा पुंजथी शुभ देह मानवनो मळ्यो;
तोये अरे ! भव चक्रनो आंटो नहि एक्के टळ्यो. "
ऐसा परमकृपालुदेवने लिखा है, तदनुसार कितना अधिक पुण्य एकत्रित होने पर मनुष्यभव मिलता है ! उसे सफल हुआ कब समझें कि जब प्रत्यक्ष सत्पुरुषकी कृपासे उनके वचन पर विश्वास कर जीव मोहनिद्रा छोड़ जागृत हो और जन्म, मरण, आधि, व्याधि, उपाधि तथा सर्व दुःखको दूर करनेवाला सम्यक्त्व प्राप्त करे अर्थात् आत्माकी पहचान और उसकी श्रद्धा अचल हो तब । इस भवका बड़ेसे बड़ा लाभ समकित प्राप्त करना है । संसारी जीव धन, स्त्री, पुत्र, घर, खेत, वस्त्र, आभूषण आदिकी इच्छा करता है । किन्तु इन वस्तुओंको तो छोड़कर सबको मर जाना है। अंतमें कुछ काम नहीं आयेगा । मात्र जीवने यदि धर्मकी पहचान की होगी, धर्माराधन किया होगा, तो वह परभवमें साथ चलेगा और उसे सुखी करेगा । अतः संसारके सुखकी इच्छा नहीं करनी चाहिये । परंतु आत्माका कल्याण कैसे हो उसकी चिंता रख, सत्संग समागममें जो कुछ शिक्षा मिली हो, उसे हृदयमें अंकित कर तदनुसार प्रवृत्ति करनेका पुरुषार्थ करना चाहिये । पूर्वप्रारब्धानुसार इस भवमें जन्म हुआ है । मनुष्यदेह, अच्छा कुल, सत्संग आदिका योग मिला है, अतः उसका सदुपयोग कर शीघ्रतासे आत्महितकी साधना कर लेनी चाहिये। ऐसा अवसर बारबार मिलना दुर्लभ है । अमूल्य क्षण बीता जा रहा है। गया हुआ समय वापस नहीं लौटता, अतः समय व्यर्थ नहीं गँवाना चाहिये । भक्ति, स्मरण, वाचनमें अवकाशका समय बितायें और धर्मके लिये सुबह शाम बीस दोहें, क्षमापनाका पाठ आदि जो करनेको कहा गया हो उसे चूकना नहीं चाहिये । आलोचना, सामायिक पाठ नित्य वाचनका अवकाश मिले तो वाचन करते रहें । हे भाई! इस जीवको ढीला न छोड़ दें । संसारके कामकाजमें प्रयोजन हो उतना, आवश्यक व्यवहारके लिये जितना समय देना पड़े उससे अतिरिक्त समयको अन्य खेलकूद, प्रतिकूल ऐशोआराममें न जाने दें। कुछ धार्मिक पुस्तक पढ़नेका निमित्त रखें। जीवको सँभाल रखनी चाहिये । विनय बड़ी चीज है ।
बहुत चेतने जैसा है। आपको जो शिक्षा दी है वह पुण्यबंधके लिये और पापसे छूटनेके लिये कर्तव्य है । हिम्मत न हारें । जैसा होना होगा वह होता रहेगा । सबको साहस बँधायें, घबरायें नहीं। धैर्य रखकर एकतासे काम करेंगे तो सुखी बनेंगे। पेट बड़ा रखें - गंभीरता रखना सीखें | जैसे भी हो अपने बड़े भाईका हित, शिक्षा और आपके प्रति प्रेम बढ़े वैसा करें। आत्मा अकेला आया है और अकेला जायेगा। सुख-दुःख, साता - असाता जीवको बंधके अनुसार आते हैं, वह किसीके वशमें
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