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________________ उपदेशामृत हमें तो आत्मभाव ही सच्चा संबंध लगता है। हे प्रभु! सद्गुरुका भी वचन है कि-"सर्वात्ममां समदृष्टि द्यो, आ वचनने हृदये लखो।" ऐसी भावनाकी समझ है। हमारा अंतरंगभाव किसीके दोष देखनेकी दृष्टिवाला नहीं है। हे प्रभु! गुण देखनेकी दृष्टि रहती है। ___कृपालुकी कृपासे जब तक आयुष्यरूपी कैद है, तब तक काल व्यतीत किये बिना छुटकारा नहीं है। मनुष्यभव दुर्लभ है। १५३ श्रीमद् राजचंद्र आश्रम, अगास ता.८-५-३४ १"प्रभु पद दृढ मन राखीने, करवो सौ वे वार; विरति विवेक वधारीने, तरवो आ संसार." मधुर वचनसे एकता बढ़ती है और पुण्यबंध होता है। अतः समझदार व्यक्तिको अपनी स्थितिका विचारकर, सबको प्रिय लगे वैसे वचन बोलनेकी आदत डालनी चाहिये तथा आलस्य छोड़कर उद्योगमें अधिक प्रवृत्ति करनी चाहिये।। ___ बचपनमें काम सीखनेकी आदत डाले, उपयोगी कामोंमें समय बितानेका ध्यान रखें, वह भविष्यमें बड़े काम कर सके वैसा चतुर होता है। किन्तु यदि बचपनसे मौज-शौककी और आलसी बनकर गप्पें मारनेकी आदत पड़ जाय या ताशके खेल, नाटक, सिनेमा, सरकस या जूआ आदिकी लत लग जाये तो उसे कुछ बड़ा काम करनेकी शक्ति प्राप्त नहीं होती। उल्टा फिजूलखर्ची बनकर यौवनका समय दुःखमें बिताता है और वृद्धावस्थामें गरीबी और रोगके दुःखसे दुगुना दुःखी होता है तथा परभवमें अधोगतिमें जाता है। 'जिसको जैसा संग, रंग वैसा ही बैठे' ऐसी कहावत है, अतः जिसकी संगतिसे हम अच्छे बन सकें अर्थात् कार्यशील, भक्तिवान बन सकें उसकी संगति अधिक रखें, परंतु जिसकी संगतिसे चाय पीने, शराब पीने, तूफान करने, नाटक देखने, जुआ खेलने, अविवेकी व्यवहार करावे ऐसे वचन बोलने, चाहे जहाँ घूमने-फिरने, विषय-विकार एवं गानतानसे आनंद करनेकी आदत पड़े ऐसी संगतिको दूरसे ही छोड़ दें; चाहे कितनी ही अच्छी क्यों न लगती हो तो भी वैसी संगतिको विषके समान समझकर उससे दूर रहें। जिनकी संगति करनेसे हमारी प्रगति हो सके, हम सत्यवक्ता बनें, न्याय-नीति सीखें, हमारा यश बढ़े, विचार करना सीखें, साहस बढ़े, सद्गुण बढ़े, और शिक्षा मिले उनकी संगति ढूँढें । ऐसे अच्छे लोगोंकी, बड़े लोगोंकी संगतिसे बहुत लाभ है। पर नीच लोग तो उल्टा हमें निंदित कराते हैं और उनकी संगतिसे बुरी आदतें पड़ती है। अतः विदेशमें रहनेवालोंको अच्छी संगतिका बहुत ध्यान रखना चाहिये। अच्छी संगति न मिले तो 'भावनाबोध' या 'मोक्षमाला' जैसी पुस्तकें पढ़नेकी आदत डालें । अन्य भी कोई सुनना चाहे तो सुन सकता है। अन्यको हमारा रंग लगे वैसा व्यवहार करें, पर अन्यके छंदमें बह न जायें। मधुर और नम्र वचन बोलें, सादे और स्वच्छ वस्त्र पहनें तथा किसीका भी काम कर दें, सेवा करें। किसीका बुरा न सोचें । छलकपट या चोरी न करें। आलसी और उडाऊ न बनें । कोई कटु वचन बोल दे तो सहन करें। कोई अच्छी शिक्षा दे तो उसे माने। धर्म समझनेकी भावना रखें । सत्संग करें और कुसंगका त्याग करें। १. अर्थ-प्रभुके चरणमें (आश्रयमें) दृढ़ मन रखकर संसारमें सर्व प्रवृत्ति करे और विरति (त्याग) और विवेकको बढ़ाये तो जीव संसारसे तर जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001941
Book TitleUpdeshamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShrimad Rajchandra Ashram Agas
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year2004
Total Pages594
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, sermon, & Rajchandra
File Size13 MB
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