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सूर्यका उदय केवल पूर्व दिशामें होता है, परंतु चारों दिशाएँ प्रफुल्लित, प्रकाशित होती हैं, उसी प्रकार सं. १९१० में पिताकी मृत्युके बाद एक महाभाग्यशाली अतिप्रतापी पुरुषके जन्मसे चारों माताओंका वैधव्य दुःख विस्मृत होता गया । और निर्वंशके कलंकको दूर करनेवाले इस पुत्रके प्रति चारों माताओंका और पूरे गाँवका प्रेम बढ़ता गया । उनका नाम लल्लुभाई रखा गया। उस समय ग्राम्यस्तरकी पाठशालाएँ थीं, वहाँ लल्लुभाई पढ़ने जाते थे किन्तु अन्य बालकोंकी अपेक्षा उन्हें याद कम रहता और गणित या अंकोंमें उनकी बुद्धिका प्रवेश कठिनाईसे होता । पाठशालाके शिक्षक उनसे कंकड़ मँगवाते और दो-दो या तीन-तीनकी ढेरियाँ लगवाकर अंक सिखाते तब समझमें आता ।
जब थोड़ा-बहुत लिखना पढ़ना और गिनना आया तब दुकानपर बैठने लगे। पढ़ाई बंद कर दी। लेनदेन और नामेका काम मुनीम करता था । स्वयं तो मात्र देखरेख रखते। सभी प्रसन्न रहें इस प्रकार व्यवहार करते ।
स्वयं उनके द्वारा अपने बचपनकी कही गयी दो घटनाओंसे उनका संस्कारी स्वभाव प्रगट होता है । उसे समयमें छोटे बच्चोंके हाथोंमें चाँदीके कड़े पहनाये जाते थे। वैसे ही कड़े उन्हें भी पहनाये गये थे और उनके संबंधियोंके बच्चोंके हाथोंमें भी वैसे ही कड़े थे। एक दिन वे अन्य गाँवमें गये थे तब अन्य बच्चोंके साथ वे भी मंदिरमें गये थे। कई पीढ़ियोंसे स्थानकवासी होनेसे प्रतिमाको नहीं मानते थे, किन्तु कौतुकवृत्तिसे देखनेके लिए सभी बच्चे मंदिरमें गये थे । वहाँ अन्य बच्चोंने जिनप्रतिमाको कड़ोंकी ठेस मारकर तिरस्कार किया, किन्तु लल्लुभाईको यह अच्छा नहीं लगा । उन्होंने स्वयं वैसा कुछ नहीं किया । किन्तु अब उसका स्मरण होनेपर भी कँपकँपी छूटती है कि अज्ञानदशामें जीव कैसे कर्म बाँध लेता है ! ऐसा वृद्धावस्थाके समय अपने उपदेशमें वे कहते थे । पूर्वक शुभ संस्कारसे पापकृत्योंके प्रति विपरीत प्रसंगोंमें भी सहज अनिच्छा रहती है, उसका यह एक उदाहरण है।
एक बार उनके कोई संबंधी जो स्वामीनारायण सम्प्रदायके अनुयायी थे, किसी कामसे मेहमान बनकर लल्लुभाईके यहाँ आये थे । इस सम्प्रदायवाले जल्दी उठकर स्नान करते हैं, अतः उनकी मदद करने के लिए लल्लुभाई कुए पर गये। बच्चोंको मेहमान या नवागंतुकोंके प्रति सन्मान होता है और उनका कुछ काम कर देना उस उम्रमें अच्छा लगता है । बातचीतके दौरान उन मेहमानने कहा कि ‘स्वामीनारायण स्वामीनारायण' कहकर एक घड़ेसे स्नान करनेपर मोक्ष प्राप्त होता है । यह सुनकर लल्लुभाईकी वृत्ति मोक्षकी ओर तत्पर हुई और सर्दियोंकी ठण्डमें उन्होंने भी ठण्डे पानीका एक घड़ा अपने सिरपर डाल दिया । मोक्ष कोई उत्तम वस्तु है और उसे प्राप्त करनेका कोई साधन हो तो उसे करना चाहिए, ऐसी पूर्वसेवित भावनाके ये संस्कार बचपनमें भी दृष्टिगोचर होते हैं ।
गाँव के लोगोंमें उनकी प्रतिष्ठा अच्छी थी, जिससे अनेक गरासिया', पटलिया, अहीर तथा ब्राह्मण, बनिये आदि सबके साथ काम पड़ता था । उचित व्यवहारपूर्वक प्रवृत्ति करते हुए सबकी प्रसन्नता प्राप्त करनेकी कुशलता छोटी उम्र से ही उन्होंने प्राप्त कर ली थी ।
युवावस्थामें उनका विवाह हुआ । गर्भावस्थामें अधिक अमरूद खानेसे उनकी पत्नीका शरीर १. गरासिया = गुजरातमें राजपूतोंकी एक जाति
२. पटेल
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