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पत्रावलि-१ +"तनधर सुखिया कोई न देखिया, जे देखिया ते दुखिया रे!"
"कायानी विसारी माया, स्वरूपे शमाया एवा,
निग्रंथनो पंथ, भव-अंतनो उपाय छे." लगभग सौ व्यक्ति आयंबिल तप कर रहे हैं, यह सहज जाननेके लिये लिखा है। तपोधन महापुरुषोंके प्रतापसे आश्रम भी तपोवन बन गया है। सत्संगका अचल प्रताप सकल जगतका कल्याण करें।
१"पुद्गल-खल संगी परे, सेवे अवसर देख; तनुशक्ति जिम लाकडी, ज्ञानभेद पद लेख."
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श्रीमद् राजचंद्र आश्रम, स्टे. अगास
__ चैत्र वदी ३०, गुरु, १९८७ विज्ञप्ति है कि आपको समाधि-शांति-भावनाके विचारसे प्रवृत्ति करनी चाहिये। मनको ढीला नहीं छोड़ना चाहिये। थोड़ा भी ढीला छोड़नेसे वह सत्यानाश कर देता है। उसका भरोसा-विश्वास रखने जैसा है नहीं, यों सोचकर जाग्रति, स्मृति, उल्लाससे आत्माको पुष्ट करना चाहिये। वृत्ति, मनको विभाव-परभावमें जाते रोककर आत्मभावमें लगायें, आत्माके विचारमें रहें। कभी कभी उदयके समय व्यापार या कार्यप्रसंगसे परभावमें वृत्ति चली जाती हो तो उसे थोड़ेमें ही निबटाकर, जैसे भी हो वैसे सद्वर्तनमें लौटा लेना चाहिये अथवा अन्यके साथ धर्मकी बातचीत करनेमें लगाना चाहिये । परायी बातके व्यवहारमें कोई चढ़ जाये तो उसे वापस मोड़कर, अगर वह सद्व्यवहारमें न आवें तो हमें तो अपने मनको सव्यवहारके स्मरणमें ही रखना चाहिये, किन्तु उसमें बह नहीं जाना चाहिये । धैर्यसे काल परिपक्व होता है। जिसकी दृष्टि सन्मुख है, उसका सब अच्छा ही होगा। जिसकी योग्यता है, सन्मुखदृष्टि है, उसे अवश्य प्राप्ति होगी, यह निःशंक मानें। आप गुणी हैं। धैर्यसे इसी सत्यधर्मकी भावनाके सिवाय अन्य कुछ भी इच्छा न करें, ऐसा ध्यानमें, समझमें रखें। गुरुकृपासे सब अच्छा होगा। किसी बातसे घबराने जैसा नहीं है।
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श्री अंधेरी ता.१९-५-३१
ज्येष्ठ सुदी १, मंगल, १९८७ विचारवान भाविक आत्माको ज्ञानी सद्गुरु सत्पुरुषके वचनामृत, बोध स्मृतिमें लाकर जिससे आत्महित हो और कर्मकी निर्जरा होनेका निमित्त प्राप्त हो वैसे जागृतिपूर्वक स्व-विचारमें भाव, परिणाम, धैर्य, समता धारण करने चाहिये। सहनशीलता रखनी चाहिये कि जिससे पूर्वकर्मसे मुक्त होनेका लाभ होता है और अन्य बंध नहीं होता।
___+ किसी शरीरधारीको सुखी देखा नहीं । जो है सो सभी दुःखी ही है। १. जीवको दुष्ट (दुःखकारी) जड़ पदार्थोंका संयोग हुआ है जो अवसर आनेपर अपना रंग दिखाते हैं। उस समय, निर्बल शरीरकी शक्तिका आधार जैसे लाठी है वैसे ही अबुध जीवके लिये जीवनका आधार भेदविज्ञानके द्वारा निजात्मपदकी प्राप्ति करना है।
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