SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्वास्थ्यरक्षणाविकारः भावार्थ:-उमडते हुए जिनप्रवचनरूपी अमृतसमुद्रके बीचमें उठा हुआ जो तरंग है उससे निकली बूंदोंके समान जो है ऐसे समस्त प्राणियोंको हित उत्पादन करने के लिए अद्वितीय स्थान ऐसे, अन्वर्थनामसे युक्त कल्याणकारक नामक ग्रंथको हम कहेंगे इस प्रकार आचार्य प्रतिज्ञा करते हैं ॥ ११ ॥ ग्रंथरचनाका उद्देश नैवातिवाक्पटुतया न च काव्यदर्पाअवान्यशास्त्रमदभंजनहेतुना वा किंतु स्वकीयतप इत्यवधार्य वर्य माचार्यमार्गमधिगम्य विधास्यते तत् ॥ १२ ॥ भावार्थ:-अपने वाक्चातुर्यको दिखाने के लिए या काव्यके अभिमानसे या दूसरे विद्वानोंकी विद्वत्ताके मदको भंग करनेके लिए मैं इसकी रचना नहीं कर रहा हूं। परंतु मैं ग्रंथरचना को एक अपना तप समझता हूं। इसलिए पूर्वाचार्योंकी सरणिको समझकर इसका निरूपण किया जायगा ॥ १२ ॥ स्वाध्यायमाहुरपरे तपसां हि मूलं मन्ये च वेद्यवरवत्सलताप्रधानम् तस्मात्तपश्चरणमेव मया प्रयत्ना दारभ्यते स्वपरसोख्यविधायि सम्यक् ॥ १३ ॥ भावार्थ:-महर्षिगण स्वाध्यायको तपश्चरण का मूल कहते हैं । वैद्योंके प्रति, वात्सल्य भावसे ग्रंथरचना करना, इसको भी मैं प्रधान तपश्चरण मानता हूं । इसलिए समझना चाहिए कि मेरे द्वारा यह स्वपरकल्याणकारी तपश्चरण ही यत्नपूर्वक प्रारम्भ किया जाता है ॥ १३ ॥ दुर्जननिंदा। अत्रापि संति बहवः कुटिलस्वभावा दुर्दृष्टयो द्विरसनाः कुमतिपयुक्ताः छिद्राभिलाषनिरताः परबाधकाच घोरोरैगरुपमिताः पुरुषाधमास्ते ॥॥१४॥ भावार्थ:-लोकमें सर्प महाभयंकर होते हैं, उनकी गति कुटिल हुआ करती है, उनकी दृष्टि से ही मनुष्योंको अपाय होता है, उन्हे दो जिव्हा होती हैं, सदा कुबुद्धि रहती है, सदा बिलमें घुसनेकी अभिलाषामें रहते हैं एवं दूसरोंको बाधा पहुंचाते हैं, इसी प्रकार लोकमें जो नाच मनुष्य हैं वे भी भयंकर हुआ करते हैं, उनका स्वभाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy