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________________ ( XXIX) - अथ जंगमविषवर्णन ५०० ५०० ० ५०१ त्रयोदशविधकंदजविष व कालकूटलक्षण ४९३ कर्कट व कर्दमकविषजन्यलक्षण ४९३ सर्षपवत्सनाभविषजन्यलक्षण मूलकपुंडरीकविषजन्यलक्षण ४९४ महाविषसांभाविषजन्यलक्षण ४९४ पालकवैराटविषजन्य लक्षण ४९४ कंदजविषकी विशेषता ४९५ विषके दशगुण ४९५ दशगुणोंके कार्य दूर्षीविषलक्षण ४९६ दूषीविषजन्यलक्षण ५०१ ० ५०२ ४९५ ५०२ ४९६ ४९७ स्थावराविषके सप्तवेग प्रथमवेगलक्षण द्वितीयवेगळक्षण तृतीयवेगलक्षण चतुर्थवेगलक्षण पंचम व षष्टवेगलक्षण सप्तमवेगलक्षण जंगमविषके घोडशभेद दृष्टिनिश्वासदंविष ५०१ दंष्ट्रनखविष मलमूत्रदंष्टशुक्रलालविष स्पर्शमुखसंदंशवातगुदविष अस्थिपित्तविष शूकशनविष ५०२ जंगमविषमें दशगुण ५०२ पांचप्रकराके सर्प सर्पविषचिकित्सा ५०३ सर्पदंशके कारण ५०३ त्रिविधदंश व स्वर्पितलक्षण ५०४ रचित ( रदित ) लक्षण । ५०४ उद्विहित (निर्विष) लक्षण ५०४ सांगाभिहतलक्षण दकिरसर्पलक्षण .५०५ मंडलीसर्पलक्षण राजीमतसर्पलक्षण ५०५ सर्पजविषोंसे दोषोंका प्रकोप ५०६ वैकरंजके विषसे दोषप्रकोप व दर्वीकरदष्टलक्षण ५०६ मंडलाराजीमंतदष्टलक्षण ५०६ दकिरविषजसप्तवेगका लक्षण ५०६ मंडलीसर्पविषजन्यसप्तवेगोंके लक्षण ५०७ राजीमंतसर्पविषजन्यसप्तवेगोंका ,, ५०७ दंशमें विषरहनका काल व सप्तवेगकारण ५०८ सर्पदष्टचिकित्सा ५०५ ४९७ ४९८ ४९८ ४९८ विषचिकित्सा प्रथमद्वितीयवेगचिकित्सा तृतीयचतुर्थवेगचिकित्सा पंचमषष्टवेगचिकित्सा सप्तमवेगचिकित्सा गरहारीघृत उपविषारित दूषविषारिअगद ५०० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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